Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 40
________________ आत्मप्रतीति ३४ आदित्य आत्म प्रतीति-३३३६ अ । आत्मप्रत्यक्ष-१८१ ब-८६ । आत्मप्रदेश-परिस्पन्दन ३.३७५ अ, मन ३२७१ अ, शरीर से बाहर निर्गमन ४.३४२ ब । आत्मप्रभावना- ३.१३६ ब । आत्मप्रवाद-१२४३ ब, श्रुतज्ञान ४६६ अ। आत्मप्रशंता --२.५८७ ब । आत्मभूत-१२४३ ब, कारण २५४ अ, लक्षण ३४०६व। आत्ममुख (हेत्वाभास)-१.२४३ ब। आत्मयज्ञ-१.३५ ब, ३,३६६ ब । आत्मरक्ष -.१२४३ बा ज्योतिषी देव-निर्देश २ ३४६ अ । भवनवासी देव-निर्देश ३२०९ अ,जम्बू शाल्मली वृक्षस्थल में ३.४५८-४५६, पद्म आदि हृदो मे ३ ४५३४५४, आयु १२६५, व्यन्तर- निर्देश ३.६१३ ब, आयु १.२६४, वैमानिक-निर्देश ४.५१२, सुमेरू पर्वत की पुष्करिणियो मे ३४५०-४५१, आयू १.२६६। देवी---गणना ४५१३, आयु १२७० । आत्मरक्षित -३४६३ ब । आत्मरूप-सप्तभगी ४.३२४ ब, ४३२५ ब । आत्मवश-४५२२ अ । आत्मवाद-१२४३ ब, एकान्त १.४६५ अ। आत्मव्यवहार-१२४४ अ, मिथ्यादृष्टि ३.३०४ अ । आत्मश्रद्धान-मिथ्यादृष्टि ३.३०५ अ । आत्मसबोधन - इतिहास १३४६ अ । आत्मसंविति-३.३३६ अ। आत्मसंस्कार-१.२४४ अ, उपकार १.४१५ ब, काल २८० ब, सस्कार ४.१४६ ब । आत्मसमाधि-१८३ ब । आत्मसमुत्थ (दोष)-भिक्षा ३.२३३ अ। आत्मसात्--२ २७४ अ । अत्मसुख-अनुभव १.८१-८५ अ। आत्मस्वभाव-स्थय ४.४१५ ब । आत्मस्वरूप-अनुभव ४४३४ अ, प्राप्ति ३.३३६ अ, लीनता ४४१५ ब। आत्महत्या-१२४४ अ, आयु-अपवर्तन १.११७ ब, १२६१, दषि (सल्लखना) ४३८२ ब, सल्लेखना ४.३८२ ब, ४.३८३ ब । आत्महनन-कषाय २.३५ अ। आत्महित-४.५३७ अ। आत्मांगुल-१.२४४ अ, उपमा प्रमाण २२१८ अ, क्षेत्र प्रमाण २.२१५ अ। आत्मांजन-१२४४ अ। वक्षार गिरि-निर्देश ३.४६० अ, नामनिर्देश ३.४७१ अ, विस्तार ३४८२, ३.४८५अकन ३ ४४४, ३.४६४ के सामने, वर्ण ३४७५ । इस पर्वत का कूट तथा देव-निर्देश ३.४७२ ब, विस्तार ३.४८२, ३ ४८५, ३ ४८६, अकन ३.४४४। आत्मा--१२४४ अ, अग्र १३६ अ, आस्रव २४६१ अ, ईश्वर ३.२० ब, कर्ता १.४३४ ब, गुरु २२५२ अ, ज्ञान २.२६५, २२६७ अ-ब, जीव २.३३२ अ, २.३३३ अ, २३३५ अ, तल्लीनता ३३३६ अ, ४.४१५ अ, द्रव्यास्रव २.४६१ अ, ध्यान ३ ५७ ब, ध्येय २.५०१ ब, नैयायिक दर्शन २६३३ ब, पच परमेष्ठी ३.२३ अ, परमात्मा ३२० अ, प्रभु ३ १४० अ, प्रामाण्य ३१४२ अ, श्रमण २ ८६ अ, श्रुतज्ञान ४६० अ। आत्माधीनता-- २४५ अ, कर्म २२६ अ, कृति-कर्म २१३६ ब, वदना ३४६५ ब। आत्मानुभव-१२४५ अ, अनुभव १८६ अ, १.८१ ब ८७ अ, अनुभूति १.८१-८७ अ, उपलब्धि १.४३५ अ, ज्ञान १.८४ ब, ४.३५२ ब, तत्त्वश्रद्धान १.८२ ब, प्रतीति ३३३६ अ, प्रत्यक्ष १.८१-८७ अ, बोधि १८७ अ, मिथ्यादृष्टि ३ ३०५ अ, शुद्धोपयोग १४३१ अ, श्रद्धान १८२ ब, सवित्ति ३.३३६ अ, सम्यग्दृष्टि ४.३५३ अ-ब, सुख ४४३१ ब । आत्मानुशासन-१२४५ अ, इतिहास १३४१-३४२ अ । आत्माश्रय (दोष)-१२४५ अ। आत्मिक सुख-४.४३१ ब, ४.४३३ ब । आत्मीय स्वरूप ४ ३२४ अ। आत्मोत्पन्न-४.४२६ ब । आत्मोपलब्धि-१.४३५ अ । आत्रेय-१२४५ अ, मनुष्यलोक ३.२७५ अ, वेदान्त ३.५६५ ब। आदर-१२४५ अ, विनय ३.५५२ ब, जम्बूवृक्ष का देव-निर्देश ३४५८ अ, ३.६१३, ३.६१४ । आदाननिक्षेपण--१२४५ अ, अहिंसा १२१६ अ, समिति ४३४१ अ। आदानपद-उपक्रम १.४१६ ब, पद ३५ अ । आदि-१.२४५ अ. परमाण ३.१६ ब. श्रेणी गणित २.२२६ ब, २.२३० ब । आदितीर्थ-कृतिकर्म २१३४ ब, प्रतिक्रमण ३.११७ अ। आदित्य--१.२४५ अ, लोकान्तिक देव ३.४६३ ब, विद्या ३५४४ अ। अनुदिश स्वर्ग का इन्द्रक-निर्देश ४.५१८, विस्तार ४.५१८, अंकन ४.५१५-५१७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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