Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 254
________________ शुक्र (देव) २४८ शुद्धात्मानुभूति अवस्थान ४५२० ब, चिह्न आदि ४.५११ ब, विमान शुद्ध उपयोग---उत्सर्ग मार्ग १.१२१ अ, उपयोग १.४३० नगर व भवन ४५२०-५२१ । ब-१.४३१ ब, (गुणस्थान) १.४३४ अ, पद्धति शुक्र (देव)-प्ररूपणा-बध ३१०२, बधस्थान ३११३, ३८ ब। उदय १३७८, उदघस्थान १३६२ ब, उदीरणा १.४११ शुद्ध-उपलब्धि-उपलब्धि १.४३५ ब । अ, उदीरणास्थान १४१२, सत्व ४२८२, सत्वस्थान शुद्धवारित्र-धर्मध्यान (पचमकाल) २.४८४ ब, मोक्षमार्ग ४२६८, ४३०५, त्रिस मोगी भग १.४०६ ब । सत् ३३३५ ब। ४.१६२, सख्या ४६८, क्षेत्र २२००, सर्गन ४४८१, शुद्धचेतना-चेतना २२६७ अ। काल २१०४, अतर १.१०, भाव ३ २२० ब, अल्प- शुद्धता-उदयाभाव १.३६६ ब। बहुत्व ११४५। शुद्धदव्य -जय २५३१ अ-ब । शुक्र (स्वर्ग)-स्वर्ग-निर्देश ४५१४ ब, पटल ४५१८, शुद्वद्रव्य नैगमनय -जय २ ५३१ अ । इन्द्रक व श्रेणीबद्ध ४५१८,४५२०, दक्षिण विभाग शुद्धद्रव्य-नैगमाभास-नय २५३२ अ । ४५२१ अ, अवस्थान ४.५१४ ब, अकन ४५१५। शुद्धद्रव्य-व्यंजनपर्याय नैगमनय -नय २.५३१ ब । स्वर्गपटल -निर्देश ४.५१८, विस्तार ४५१८, अकन शुद्धद्रव्य-व्यंजनपर्याय नैगमाभास-नय २ ५३२ अ । ४.५१५ शद्धद्रव्याथंपर्याय नैगमानय-नय २५३१ ब । शुक्लध्यान-४.३१ अ, कालावध का अलबत्व १.१६१, शद्धद्रव्यार्थपर्याय नेगमाभास-नय २५३२ अ । धर्मध्यान २.४८१ अ, ध्याता २४६२ अ, २४६३ शुद्धद्रव्याथिक नय -नय २५४३ ब, नय (संग्रह) २५३४ ब, पद्धति ३६ अ, प्रतिक्रमण ३११७ ब, मोक्षमार्ग ३ ३२६ अ, विकल्प ३ ५२८ ब, शुद्धोपयोग १४३१ शुद्ध ध्यान-ध्यान २.४६६ अ । अ। शुद्ध नय-नय २.५२३ ब। शुक्लपक्ष-लवण सागर में जलवृद्धि ३ ४६० ब । शुद्ध निश्चयनय-नय २.५५३ ब । शुक्ल लेश्या-कालावधि का अल्पबहुत्व ११५६, लेश्या शद्ध परिणाम-उपयोग १.४३४ ब, परिणाम ३.३१ ब । ३४२३ ब, आयुबंध १.२५६ अ। प्ररूपणा-बंध शद्धपर्यायाथिक नय-नय (ऋजुसूत्र) २५३५ अ । ३.१०७, बधस्थान ३११३, उदय १३८४, उदय- शद्ध पारिणामिक भाव-उत्पादादि १.३५८ अ,गुण २२४१ स्थान १३६३ ब, उीरणा १४११ अ, उदीरणास्थान ब, २२४२ ब, ध्येय २.५०१ ब, परम ३१२ ब, १.४१२, सत्त्व ४२८४, सत्त्वस्थान ४३०१, ४.३०६, पारिणामिक ३५५ अ, भव्य ३ २१४ अ, भाव ३.२१९ त्रिसयोगी भग १४०७ ब । सत् ४२५१, सख्या अ, मोक्षमार्ग ३ ३३५ ब, ३.३३७ ब, ३.३३८ अ । ४.१०८, क्षेत्र २.२०६, सर्शन ४.४६०, काल शुद्ध भाव-उपयोग १४३० ब, धर्म २.४६७ अ, पद्धति २११६, अतर १.१८, भाव ३ २२१ ब, अल्पबहुत्व ३८ ब । ११५१ ब । शुद्धमति-४३८ ब, तीर्थंकर २.३७७ । शुचि-४.३८ अ, पिशाच जातीय व्यतरदेव ३.५८ ब । शुद्ध सद्भुत नय-य २५६० अ। शुचित्व-शुचि ४.३८ अ । शुद्धात्म ज्ञान-४.३८ ब, मोक्षमार्ग ३ ३३५ ब। शुचिदत्त-गणधर २.२१३ अ। शुद्धात्म-दर्शन-४३८ ब, मोक्षमार्ग ३ ३३५ ब। शुचिशाल- गणधर २.२१३ अ । शुद्धात्म-द्रव्य-मोक्षमार्ग ३ ३३६ अ । शुत ग-४.३८ अ। शद्धात्म-पठन--मोक्षमार्ग ३.३३६ अ। शुद्ध-४.३८ अ, अनशन १.६६ अ, अनुभव १.८२ ब, शद्धात्म-संवित्ति-पद्धति ३६अ। १.८४ ब, १.८६ ब, आहार १.२६२ ब, उपयोग १८६ शुद्धात्म-स्वरूप-४३८ ब, मोक्षमार्ग ३३३५ ब। अ, तत्त्व २.३५३ अ, नय २.५५१ अ, परम ३.१३ अ, शुद्धात्मा-तत्त्व २ ३५५ ब, ध्येय २५०१ ब, पद्धति श्रुतज्ञान ४.६० अ । सापेक्षधर्म-अनेकात १.१०६ ३६अ, सम्यग्दर्शन ४३५७ अ, ४.३५८ अ। अ, सप्तभंगी ४.३२३ ब । शुद्धात्मानुभव-अनुभव १८६ ब, मोक्षमार्ग ३ ३३६ अ, शद्ध अर्थ-पर्याय-पर्याय ३.४६ ब । स्वरूपाचरण ४.५०६अ। शब आहार-अपवाद मार्ग ११२१ अ, आहार १२८५ शद्वात्मानभति-मोक्षमार्ग ३.३३५ ब, ३.३३६ अ-ब, अ। सामायिक ४.४१९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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