Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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सम्यग्ज्ञानचद्रिका
२६६
सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति
दर्शन ४३५३ ब, सम्यग्दृष्टि ४३७५ ब,४.३७६ ब, संख्या ४१०८, क्षेत्र २ २०६, स्पर्शन ४.४६२, काल सिद्धो का अल्पबहुत्व १.१५४, सूख ४.४३२ अ, २११७, अतर १२०, भात्र ३.२२१ ब, अल्पबहत्व स्वसवेदन (अनुभव) १८१-८७ अ।
११५२, भागाभाग ४११४ । पंचशरीर स्वामित्वसम्यग्ज्ञानचंद्रिका-इतिहास १३४८ अ ।
निर्देश ४७, अल्पबहुत्व ११६० अ। षट्कर्म सभ्यग्दर्शन -४३४४ ब, अश (मिश्र) ३३१० अ, अध:- स्वामित्व ४.७ ।
करण २७ अ, अधिगमन १५१ अ, अनन्तानुबधी सम्यग्दर्शन वाक वचन ३४६७ ब । १६० ब, अनन्तानुबधी विसयोजन १.४३६ ब, । सम्यग्दर्शनार्य-आर्य १२७४ ब । अनिवृत्तिकरण (करण) २.१३ अ, अनुप्रेक्षा १.७८ सम्यग्दृष्टि--४ ३७३ ब, अनुभव १.८४ ब, अवधिज्ञान ब, अनुभव १८२ ब, अनुभाग क्षयोपशम) २१८६ ११६५ अ, आगमार्थ ग्रहण १.२३२ ब, आर्तध्यान अ, अत रकरण १२५ ब, अतर काल १.४ अ, अपूर्व- १२७४ ब, करणदशक २६ अ, कषाय २४० ब, करण (क. ण) २.११ ब, अभ्यास ११३१ ब, अवधि- काय २४५ ब, क्षायिक २१८६ ब, गर्हण २.२३८ ज्ञान ११६४ ब, ११६५ अ, आयु (बद्धायुष्क) ब, गुणस्थान २ २४६ ब, चेतना २२६७ ब, तीर्थंकर १२६२ ब, उपलब्धि १४३५ अ, उपशम १.४३७ ब- (जन्म) २३७६ ब, दर्शन २४१७ अ, दर्शन प्रतिमा १४३६ ब, करण चिह्न (अवधिज्ञान) ११६२ अ, २ ४१८ अ, देवगति २.४४८ ब, नय २५२६ अ, करणत्रिक २६-१४, करणलब्धि (लब्धि) ३ ४१४ अ,
नि शकित २५८६ ब पापभीरु (आगम) १२४२ करुगा २१५ अ, कर्मभूमि (भूमि) ३२३५ ब, कारण ब, बद्धायुप्क १२६२ ब, मिथ्यादृष्टि, ३ ३०५ अ, (सभ्यग्दर्शन) ४.३६२ अ, क्षय २१७६ अ, क्षयोपशम राग (भोग) ३ ३६६ अ, ३.४०० अ,.राग (वैराग्य) २१८३ ब, २.१८६ अ-ब, चारित्र २२८६ अ-ब, ३३६८ अ-ब, लेश्या ३.४२७ अ विसयोजना ३५७१ २२८७ अ, जन्म २३१३ ब, जन्म (गति-अगति) ब, वैराग्य ३ ३६८ अ-ब, शका ४१४५ ब, श्रद्धान २३२२ ब, तर २.३६० ब, तिथंच गति २३६७ ब, ४.४५ अ, ४४६ अ, धृतज्ञान ४६० अ, सक्रमण तीर्थकर २३७५ अ, त्रिकरण २.६-१४, देवगति ४ ८७ अ, सख्या ४६३ अ, सशय ४.१४५ ब, २.४४७ अ, द्वितीयोपशम (उपशम) १४३६ अ, धर्म सम्यग्ज्ञान २ २६५ ब, सम्यग्दर्शन ४ ३५१ अ। २४६७ ब, नरकगति २.५७४ ब, २५७५ ब, प्ररूपणा-दे० अविरतसम्यग्दष्टि ।। निश्चयनय (नय) २.५५६ अ, निसर्गज (अधिगमज) सम्यग्मिथ्याचारित्र-चारित्र २२८० ब । १५१ अ, प्रत्याख्यान ३१३३ ब, प्रथमोपशम सम्यग्मिथ्यात्व (प्ररूपणा)--बध ३ १०८ बधस्थान (उपशम) १४३० ब, १४३८ अ, बद्धायुष्क (आयु) ३११३, उदय १३८६, उदयस्यान १३६३ ब, १.२६२ ब, भूमि (कर्ममूमि) ३ २३५ ब, मल ३.२८८ उदीरणा १४११ अ, उदीरणास्थान १४१२, सत्व ब, मिश्र (सम्यग्मिथ्यात्व) ३३१० अ, मोक्षमार्ग
४२८४, सत्वस्थान ४३०१, ४३०६, त्रिसयोगी भग ३ ३३७ अ, रुद्र ४.२२ ब, लब्धि (करणलब्धि)
१४०८ अ। सत् ४.२६०, सख्या ४.१०६, क्षेत्र ३.४१४ अ, (पचलब्धि) ३४१२ ब, लिंग ४.४३० २२०६, स्पर्शन ४४९३, काल २११६, अतर १२१, ब, लेश्या ३४२७ अ, विकल्प ३५३७ ब, वेद भाव ३२२१ ब, अल्पबद्धत्व १.१५२ अ। ३५८८ अ, व्रत ३.६२५ ब, शंका २५८६ ब,४१४५ सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति-मिथ्यात्वप्रकृति का विधाकरण ब, शलाकापुरुष ४ २५ ब, ४,२६ ब, श्रद्धान ४ ४५ ब, (उाशम) १४३६ अ, सर्वघाती १.१३ अ । प्ररूपणाश्रावक ४.४६ ब, श्रोता ४.७५ अ, संजी ४१२२ ब, प्रकृति ३.८८, ३ ३४१, ३.३४३ अ, स्थिति सम्मूच्छिम ४१२७ ब, सम्यग्ज्ञान २२६३-२६५, ४४६१, स्थितिसत्व जघन्य ४२७७ अ, स्थितिसत्व सम्यग्दर्शन ४३५१ अ, ४.३६२ अ, ४ ३७१ अ, स्थानो का अल्पबहुत्व १.१६५, अनुभाग १.६३ अ, साधु ४४०६ ब, स्वाध्याय ४५२३ अ।
१६५, प्रदेश ३१३६ । बध ३.६७, बंधस्थान सम्यग्दर्शन-प्ररूपणा-बध ३.१०८, बधस्थान ३११३, ३१०६, उदय १.३७५, ३३०७ ब, उदयस्थान
उदय १.३८५, उदयस्थान १.३६३, उदीरणा १.४११ १३८६, उदीरणा १.४११ अ, उदीरणास्थान, असत्त्व ४.२८४, ४.२५६, सरवस्थान ४.३०२, १४१२, सत्त्व ४२७८, सत्त्वकाल २१२०, स्थिति ४३०६, त्रिसंयोगीभंग १.४०८ अ। सत् ४.२४५, सत्त्व जघन्य ४.२७७ अ, सत्त्वस्थान ४.२६६, त्रिसयोगी
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