Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 289
________________ सूक्ष्म स्कंध २८३ सूर्यमाल सूक्ष्म स्कंध - सूक्ष्म ४.४३८ अ, स्कध ४.४४६ अ-ब । सूर्य (ज्योतिष देव)-४४४३ ब, निर्देश २.३४५ ब, आयु सूक्ष्म-स्थल स्कंध-स्कध ४.४४६ अ। १२७८ । इन्द्र -निर्देश २ ३४५ ब, परिवार २३४६ सूक्ष्म भाषा -भाषा ३ २२७ ब । अ, किरणे व शक्ति २ ३४७, विमान सख्या २ ३४८ सूची-४४४२ अ, गणित २ २३३ ब । अ, अवस्थान २३४६ ब। सूचीकर्म-अनुयोग ११०१ब । सूर्य (ज्योतिष देव प्ररूपणा) बध ३१०२, बधस्थान सूच्यंगुल-४४४२ अ,क्षेत्र का प्रमाण २२१५ ब, सहनानी ३.११३, उदय १.३७८, उदयस्थान १३६२ ब, २ २१६ ब । उदीरणा १४११ अ, उदीरणास्थान १४१२, सत्त्व सूतक-४.४४२ अ। ४.२८२, सत्त्वस्थान ४.२६८, ४.३०५, त्रिसयोगी भग सूत्र-४४४३ अ, आगम १२३७ अ-ब, १.२३८ ब, ज्ञान १४०६ ब । सत् ४.१८८, सख्या ४.६७, क्षेत्र २.२६६अ। २१६६, स्पर्शन ४.४८१, काल २१०४, अतर सूत्रकृतांग-४,४४३ अ, श्रुतज्ञान ४.६८ अ । १.१०, भाव ३२२० अ, अल्पबहुत्व १.१४५ । सूत्र तात्पर्य-ज्ञान २.२६६ म। सुर्य (विमान)-निर्देश (ज्योतिषलोक) २३५० ब, काल सूत्र दर्शनार्य-आर्य १२७५ अ। २.८७ ब, किरणे तथा वाहक देव २.३४८ अ, गगनसूत्रपाहुड-४.४४३ ब, इतिहास १.३४० ब। खड २३५० अ, गतिविधि २.३५० अ, ग्रहण २.३५१, चार क्षेत्र २.३४६ अ, परिवार २.३४६, सूत्रपौरुषी- अध्ययनकुशल साधु १.५२ । सूत्रमणि-४.४४३ ब, रुचकवर पर्वत की देवी-निर्देश विस्तार २.३५१, वीथियो २.३४६ ब, अकन ३४७६ ब । २३४७ । स्वप्न ४५०४ ब, ४.५०५ अ। सर्यक-मगधदेश इतिहास १३१२ । सूत्ररुचि- सम्यग्दर्शन ४.३४८ ब । सूत्र वचन-आगम प्रामाण्य १.२४२ ब । सूर्यगिरि-४४४६ ब । विदेह वक्षार-निर्देश ३ ४६० अ, नामनिर्देश ३.४७१ अ, विस्तार ३४८२, ३४८५, सूत्राविरुद्ध-आगम प्रामाण्य १.२३८ अ । सूत्रसम-आगम १.२३६ अ, आगम प्रामाण्य १.२३५ ब, ३४८६, अंकन ३.४४४, ३.४६४ के सामने (चित्र सं० ३७), वर्ण ३४७७। इस वक्षार का कूट तथा निक्षेप २६०२ अ। देव-निर्देश ३ ४७२ ब, विस्तार ३.४८२, ३४८५, सूत्रसम द्रव्यनिक्षेप-निक्षेप २.६०२ अ। ३४८६, अकन ३.४४४। सूत्र सम्यक्त्वार्य-आर्य १.२७५ अ । सूर्यग्रहण-ज्योतिषलोक २.३५१ अ। सूत्रसम्यग्दर्शन-सम्यग्दर्शन ४.३४८ ब । सूर्यघोष-कुरुवंश १.३३५ ब । सूत्रोपसंयत-समाचार ४.३३६ अ । सूर्यतप-कायक्लेश २.४७ अ। सूना-४.४४३ ब। सूर्यद्वीप-निर्देश ३.४६२ ब, विस्तार ३ ४७६, अंकन सुर-देवकुरु का ब्रह-निर्देश ३४५६ ब, नामनिर्देश ३.४७४ अ, विस्तार ३.४६०, ३.४६१, अंकन' सर्यपत्तन-४४४३ ब । ३.४४४, ३४५७, ३.४६४ के सामने (चित्र सं० पूर-४४४३ ब, प्रतिनारायण ४.२० ब, विद्याधर ३७)। नगरी ३.५४५ अ । सूरकोति-नदिसंघ भट्टारक १.३२३ ब । सूर्यप्राप्ति-४.४४३ ब, श्रुतज्ञान ४.६८ ब, इतिहास सरदत्तणधर २.२१२ ब । १.३४१ अ। सरसेन-४.४४३ ब, कुरुवंश १.३३६ अ, तीर्थंकर कुंथु- सर्यप्रभ-चक्रवर्ती ४.१३ अ, ४.१५ अ । नाथ. २.३८०, मनुष्यलोक ३.२७५ अ । सेनसंघ सूर्यप्रभा–सूर्य की अग्रदेवी २.३४६ अ । १.३२६ अ। सूर्यमंडल-काल २.८७ ब । सरिप्रभ-तीर्थकर २.३९२ । सूर्यमाल-विदेह वक्षार-निर्देश ३.४६० अ, नामनिर्देश सूर-४.४४३ ब, मनुष्यलोक ३.२७५ मः। ३.४७१ अ, विस्तार ३.४८२, ३.४८५, ३.४८६, सूर्म-इक्ष्वाकुवंश १.३३५ म, कुरुवंश १.३३५ ब, तीर्थकर अंकन ३.४४४, ३.४६४ के सामने, वर्ण ३.४७७ । नेमिप्रभ व संजात २.३६२, यदुवंश १.३३७ हरिवंश इस का कुट तथा देव-निर्देश ३.४७२ ब, विस्तार १३४० अ। ३.४८२, ३.४८२, ३.४८६, अंकन ३.४४४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307