Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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बीरासन तप
२३५
वेणु (देव)
वीरासन तप-कायक्लेश २४७ ब ।
वृत्तिलाभ क्रिया-सस्कार ४१५२ ब । वीर्य-३.५७६ ब, कुरुवंश १३३५ ब, तीर्थंकर विशाल- वृत्तिविलास-३५८१ अ, इतिहास १.३३१ अ, १.३४४
प्रभ २.३६२। वीर्य (गुण)~३.५७६ ब, जीव २.३३७ अ, योग ३ ३७७ वृत्तिसूत्र-आगम १२३६ अ ।
वृत्त्यश-पर्याय ३.४५ ब । वीर्य-चर्या-तप २३६० अ, श्रावक ४४८ अ, ४ ५२ ब । वृद्धि - ३.५८१ अ, संगति ४.११६ अ । बोयं-प्रवाद--३.५७७ अ, श्रुतज्ञान ४६८ ब।
वृद्धार्थ-यदुवश १.३३७ । वीर्य लम्धि-३.४११ ब ।
वृद्धि-३५८१ब, अवधिज्ञान १.१६९ ब, गणित २.२२९ वीर्यातराय-अंतराय १२७ ब । वीर्यातराय कर्मप्रकृति--प्ररूपणा-प्रकृति ३.८८, १.२७, वृद्धि-हानि-अवधिज्ञान १.१६७ ब, षड्गण ४.८१ अ।
स्थिति ४४६७, अनुभाग १.६५, प्रदेश ३.१३७। वृद्ध-ह्रास-काल २६३ । बध ३.६७, बंधस्थान ३.११०, उदय १३७५, उदय- वृष-३५८१ ब । स्थान १३८७, उदीरणा १.४११ अ, उदीरणास्थान वृषध्वज-कुरुवंश १ ३३५ ब । १.४१२, सत्त्व ४२७८, सत्त्वस्थान ४२६४, त्रिस- वृषभ-३.५८१ ब, तीर्थंकर ऋषभनाथ २३७६, तीर्थंकर योगीभंग १.३६६, सक्रमण ४८५ अ, अल्पबहुत्व सीमधर तथा सूरिप्रभ २.३६२, स्वप्न ४५०४ ब ।
वृषभगिरि-३५८५ अ, निर्देश ३४४६ अ। विस्तार वीर्याचरण-मिथ्यादृष्टि ३.२०३ ब।
३.४८३, ३.४८५, ३.४८६, अंकन ३.४४४, ३.४४७, वीर्याचार-आचार १.२४१ अ।
३.४६४ के सामने । वर्ण ३.४७७, विदेहस्थ ३.४६० वृदावन-३.५७७ अ, इतिहास १३३४ ब, १.३४८ अ । अ। चक्रवर्ती ४१५ब । वृंदावन विलास-३ ५७७ ब, इतिहास १३४८ अ।
वषभदेव - मध्यलोक मे अवस्थान ३.६१३ अ; आयु दंदावनी-वैष्णवदर्शन ३६०६अ।
१.२६५ अ। वृदावली-३.५७७ ब, आवली १.२७६ ब ।
वृषभध्वज-इक्ष्वाकुवश १.३३५ म । वृकार्थक-३ ५७७ ब, मनुष्यलोक ३२७५ अ ।
वृषभसंघ-१३१७ ब, १३१६ अ, १.३२६ अ। वृक्ष-३ ५७७ ब, जम्बू द्वीप में गणना ३.४४५ अ । जम्बू- वृषभसेन-३ ५८२ अ, गणधर २.२१२ ब, तीर्थंकर ऋषभ
वृक्ष ३४५८ अ, चित्र ३.४५८ब, वर्ण ३४७७। देव २३८७।। वृक्षस्थल ३.४५८ ब, चित्र ३.४५६ । वसतिका वृषभाकार प्रणाली-गंगानदी का द्वार ३.४५५ अ। (वृक्षमूल) ३ ५२७ ब, साधु (भव वृक्ष) ४.४०७ अ, वृषभेष्टा-लोकातिक देव ३.४६३ ब। स्वप्न ४.५०५ अ)
वृषानंत-कुरुवश १.३३५ ब । वृक्षमूल-३.५८० अ, वसतिका ३.५२७ ब, विद्या ३.५४४ वृष्य-अभिषव १.१३० ब। अ ।
वृष्यरससेवा-ब्रह्मचर्य ३.१८६अ। वृक्षमूल योग- अतिचार २.४७ ब, कायक्लेश २.४७ब। बृहदारण्यक-वेदात ३ ५६५ ब । वृक्षमूल विद्या-विद्या ३.५४४ अ, विद्याधर वंश १३३९
वहबध्वज-कुरुवंश १.३३५ ब ।
बेंगी नगर-आंध्रदेश की नगरी १.३०ब। अ।
बंत-कषाय (मान) २.३८ अ। वृक्षमूलावास-कायक्लेश २.४६ ब। वृत्त-३.५८० अ, औदारिक शरीर १.४७१ अ, गणित वेगवती-यदुवंश १.३३७ ।
(क्षेत्रफल, व्यास आदि) २.२३२ ब, २२३३ ब। वेगवान्-यदुवंश १ ३३७ । वृत्त-विष्कंभ-३५८० अ।
वेणा-३.५८२ अ, मनुष्यलोक ३ २७६ अ। वृत्ति-३.५८० अ।
वेणु-३.५८२ अ, विद्याधर नगरी ३ ५४५ ब । वृत्तिपरिसंख्यान-३.५८० अ।
वेणु (वेव)-मानुषोत्तर पर्वत के कूट का देव-निर्देश वृत्तिमत्व-३.५८१ अ।
३.४७५ अ, अंकन ३.४६४ । शाल्मली वृक्ष का देव वृत्तिमान-३५८१ अ ।
१,४५८ अ, १.६०३३ । सुपर्ण कुमारेंद्र-निर्देश
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