Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 75
________________ तांत्य कृतांतवक्र - २१३१ ब । -- कृति २१३२ अ कर्म २२७ अ, गणित २२२३ अ कृतिकर्म - २१३२ अ, २१३३ ब कर्म २२६ अन्य २२७ अ श्रुतज्ञान ४६९ ब । कृतिकार्य २.१४० अक्षय २१७६अ। कृतिधारा गणित २२२६ अ - कृतिमातृकधारा गणित २२२१ अ कृतिमूल २१४० अ वर्णित २.२२३ ब । कुत्-२१३१ व । कृत्तिका - २.१४० अ, नक्षत्र २ २०३ अ । कृत्स्न - २.१४० अ । कृपा अनुकम्पा १६१ अ । कृमिनिर्गमन आहारान्तराय १.२९ व । कृशउरकार १४१५ अ सल्लेखना ४३८२ अ कुशीकरण कायक्लेश २४७ अ । 2 - कृषि - कर्मा १.२७५ अ, व्यवसाय २१४० अ । कृष्टि - २१४० अ । कूष्टिकरण- २.१४० अ कालावधि का कालावधि का अल्पबहुत्व ११६१ अ स्पर्धक ४४७३ ब । ६ह कृष्टिवेदन २.१४२ अ । कष्ट्यन्तर - २१४१ अ । कृष्ण - २.१४३ अ, उग्रसेन १३५२ अ, नारायण ४१८ अ, तीर्थंकर निर्मन २३७७, तीर्थकर नेमिनाथ - १३३६ व २३११, यदुवंश १.२३७। राष्ट्रकूट वंश १.३१ अ हरिदेव ४५३० अ कृष्णगंगा-२१४३ अ । कृष्णगिरि - मनुष्यलोक ३ २७५ ब । कृष्णदास – २१४३ व इतिहास १३३४ १.३४७ व । कृष्णपंचमी व्रत २.१४३ व कृष्णपक्षपण सागर ३.४६० ब । -- कृष्णप्रभ - ३४६१ ब । कृष्णमती -- २१४३ ब, तीर्थकर २३७७ । 1 कृष्णराज - २१४३ व राष्ट्रकूट वंश १.३१५ व । कृष्णलेश्या - आयुबंध १२५६ अ लेश्या ३.४२२ व । प्ररूपणा -बन्ध ३१०७, बन्धस्थान ३११३, उदय १. ३८४, उदयस्थान १३९३ व उदीरणा १.४११ अ, सब ४२८४, सत्त्वस्थान ४.३०१, ४.३०६, त्रिसयोगी भंग १.४३६ । सत् ४.२४२, सख्या ४.१०७, क्षेत्र २.२०५ स्पर्शन ४४९०, काल २. ११५, अन्तर ११८, भाव ३.२२१ ब, अल्पबहुत्व १.१५१ । Jain Education International केवलज्ञानावरण कृष्णवर्णा मनुष्यलोक ३२७५ व कृष्णवर्मा -- २.१४३ ब । कृष्णा - असुरेन्द्र की अग्रदेवी २२०९ अ । केंद्रवर्ती वृत -- २१४३ ब । केंद्रित चितवृत्ति १४६६ अ के - उ० अनन्त की सहनानी २.२१६ अ । केकय - २१४३ ब । केकी २.१४३ व रघुवंश १३३८ अ केतना - २१४३ व मनुष्यलोक ३२७६ अ । केतु-२१४३ व ग्रह २ २७४ अ, ज्योतिष लोक निर्देश २.३४८ अ, इन्द्र २३४५ ब, सूर्यग्रहण २३५१ अ । विमान आकार २.३४८, विस्तार २३५१ व २ व वाहक देव २ ३४८ अ, चित्र २३४८ ॥ केतुभद्र - २.१४३ व । - केतुमती - २.१४३ व व्यन्तरेन्द्र वल्लमिका ३.६११ व । केतुमाल - २१४३ व विद्याधर नगरी ३५४५ ब । केतुमाला - विद्याधर नगरी ३५४५ ब । केरल - २१४४ अ मनुष्यलोक ३२७५ व । के० सू० १- केवलज्ञान का प्रथम मूल २.२१६ अ । के० भू० २ - केवलज्ञान का द्वि० मूल २.२१६ अ । केवल २१४४ अ । केवलज्ञान २.१४४ अ, आत्मानुभव १८३ अन्य उपक्रम १.४१६ व १४४८ कालावधि का अल्पबहुत्व ११६० व गति अमति २.३२२ अ गुणस्थान २.२६१ ज्ञान २२६० ब छद्मस्य २.२५६ व दर्शन २.४१३ व मतिज्ञान २२५ व २६०, मोक्ष ३ ३२६ अ, मोक्षमार्ग ३ ३३६ अ विकल्प ३५३ श्रुतज्ञान ४ ६३ अ, सह्नानी २.२१३ अ । शिद्धो का अल्पबहुत्व ११५४ अ, सुख ४४३२ अ केवलज्ञान (प्ररूपणा ) - बन्ध ३१०६, बन्धस्थान ३ ११३, उदय १३८३, उदयस्थान १.३९३ अ, उदीरणा १४११ अ सत्य ४२८३, सत्त्वस्थान ४. ३००, ४३०५, त्रिसयोगी भग १४०७ अ । सत् ४.२३६, सख्या ४१०६, क्षेत्र २२०४, स्पर्शन ४.४८८, काल २११३, अन्तर १.१५, भाव ३२२१ अ, अल्प १.१५० । केवलज्ञानातिशय- अर्हन्त १.१३७ ब । केवलज्ञानावरण-ज्ञानावरण २२७१ व सर्वघाती अनुभाग १९२ ब । प्ररूपणा - प्रकृति २२७० ब ३. स्थिति ४.४६०, अनुभाग १९४ व प्रदेश ३.१३६ । बन्ध ३.९७ बन्धस्थान ३.१०६, उदय १.३७५, उदयस्थान १.३५७ व १३९६, १३१७, 2 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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