Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 156
________________ पाडुकंबला शिला १५० पाप-आस्रव विद्या ३५४४ अ। श्रुनकेवली (मूलसघ) १.३१६, पातंजल भाष्यवातिक-साख्यदर्शन ४ ३९८ ब । इतिहास १३२८ अ, विद्याधरवश १३३७। पातक-सूतक ४४४२ ब । पांडकबला शिला-३५१ ब, पाण्डुकवन मे स्थित -निर्देश पाताल - ३.५२ अ, तीर्थकर विमलनाथ का यक्ष २३७६. ३४५० ब, अकन ३४५० ब, वर्ण ३४७७ ! यदुवश १.३३७ । लवणसागर में स्थित-निर्देश पांडुक -३५१ ब, कुण्डलवर पर्वत का देव-निर्देश ३ ४६० ब, नामनिर्देश ३.४७४ ब, विस्तार ३ ४७६, ३ ४७५ ब, अकन ३ ४६७ पाण्डुकवन का लोकपाल अंकन ३४६१, चित्र ३४६२ अ। भवन ३.४५० ब, विद्याधर नगरी ३५४५ ब, मातग पात्र-३५२ अ, अचेलकत्व १४० ब, पाणिपात्राहारी वश १३३६ ब। क्षुल्लक २.१८६ अ, पाणिपात्राहारी साधु १.२८६ पांडुकवन-३.५१ ब, चैत्य-चैत्यालय २३०३ अ, सुमेरु, अ, श्वेताम्बर ४७६ ब। पर्वत--निर्देश ३४५० अ, विस्तार ३४८८, अकन पात्र-अपात्र-उपदेश १४२५ ब, दान ३५२ अ, श्रावक ३४४६, चित्र ३४५० ब। पाण्डुक वन का भाग धर्म ४.४६ अ, श्रोता ४७५ अ। ३४५० ब । पात्रकेसरी-३ ५२ ब, मूलसघ १३२२ ब। इतिहासपांडुक शिला-पाण्डक वन मे स्थित-निर्देश ३ ४५० ब, १३२६ अ,१३४१ अ। विस्तार ३४८४, अकन ३.४५० ब, वर्ण ३.४७७ । पात्रकेसरीस्तोत्र-३.५३ अ, इतिहास १३४१ अ । पांडकी विद्या-विद्याधर वश १३३६ अ। पात्रग्रहण-अचेलकत्व १.४० ब, श्वेताबर ४७६ ब । पांडकेय- विद्याधर वश १.३३६ अ । पात्रत्व-अधिकार-ब्राह्मण ३.१६६ अ। पांडुर-३.५१ ब, कुण्डलवर पर्वत का देव-निर्देश ३ ४७५ पात्रदत्ति-दान २४२२ ब। ब, अकन ३ ४६७ । पात्रदान-दान २.४२४ अ । पांडुशिला-३५१ ब, पाण्डुवन मे स्थित-निर्देश ३ ४५० पात्रदोष--आहार १२६२ अ, उद्दिष्ट १४१३ अ । ब, विस्तार ३.४८४, अंकन ३.४५० ब, वर्ण ३ ४७७ । पात्री-चैत्य-चैत्यालय २३०२ आ। पांड्य - ३.५२ अ, मनुष्यलोक ३२७५ ब । पाद-३५३ अ, क्षेत्र का प्रमाण २२१५ अ, वर्गमूल पांड्य वाटक-३.५२ अ, मनुष्यलोक ३.२७५ ब । २२२३ अ। पांशुतापि-३५२ अ, देव आकाशोपपन्न २४४५ ब। पावतप-कायक्लेश २ ४७ अ। पांशमल-३५२ अ, विद्या ३५४४ अ, विद्याधर नगरी पावपीठ-अर्हन्तातिशय ११३७ ब । ३५४५ अ। पादानुसारी ऋद्धि-ऋद्धि १.४४६ ब, गणधर २.२१२ब। पांशुमलिक-विद्याधरवश १.३३६ अ। पादुकार----३.५३ अ। पांशमलिक विद्या-विद्याधरवश १३३६ अ । पादेन किंचित् ग्रहण-आहारान्तराय १२६ ब । पाकर फल-भक्ष्याभक्ष्य ३.२०३ ब । पादोपगमन-सल्लेखना ४३८७ अ । पाक्षिक आलोचना-आलोचना १२७६ ब। पाद्यस्थितिकल्प--३५३ अ। पाक्षिक प्रतिक्रमण-प्रतिक्रमण ३ ११६ अ, व्युत्सर्ग ३ ६२१ पान-३५३ अ, आहार १२८५ अ । अ. पानक-३५३ अ। पाक्षिक श्रावक-दर्शनप्रतिमा २४१८ अ, श्रावक ४४८ पानकाहार- सल्लेखना ४३६३ ब । अ, ४४६ ब । पानदशमी व्रत- ३.५३ ब । पाखडी-मूढता ३ ३१५ ब । पानभोजन-अहिंसा १२१६ अ। पाटला-तीर्थकर वासुपूज्यनाथ २.३८३ । पानी छानना-जल-गालन २३२५ अ-ब, श्रावक ४.५० पाटलिका - चैत्यचैत्यालय २३०२ अ । पाटलीपुत्र-३.५२ अ, इतिहास १३१० ब। पाप-३.५३ ब, अन्तरंग भाव ३६० ब, उपयोग १४३४ पाणिपात्र-आहार १२८६ अ, क्षुल्लक २१८६ अ । अ, चारित्र २.२८३ अ, चारित्र मोहनीय ३३४३ ब, पाणितः जंतुवध-आहारान्तराय १२६अ। धर्म २४७० ब, पुज्य ३.६० ब, ३६१ अ, ३६४ अ, पाणितः पिंडपतन-आहारान्तराय १२६ अ । प्रकृति ३८६ अ-ब, मिथ्यादर्शन ३३०१ अ। पाणिमुक्ता गति-विग्रहगति ३.५४० ब । पाप-पालव-३,५३ ब । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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