Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 210
________________ योग (प्ररूपणा) २०४ योषा लेश्या ३४२४ ब। शरीर स्वामित्व ४.७, षट्कर्म- योगसार-३.३८६ अ, प्रथम (योगेद्र कृत) इतिहास स्वामित्व ४२६६ । १३४१ अ, द्वितीय (अमितगति कृत) इतिहास योग (प्ररूपणा)-बध ३.१०४, बंधस्थान ३ ११३, उदय १.३४२ ब । तृतीय-इतिहास १३४६ ब । १३७६, उदयस्थान १.३६२ ब, उदीरणा १.४११ अ, योगसूत्र-योगदर्शन ३३८४ अ। उदीरणास्थान १४१२, सत्त्व ४.२८३, सत्त्वस्थान योगस्थान-निर्देश-३३८१ अ, अविभाग प्रतिच्छेद ४ २६६,४३०५, त्रिसयोगी भग १४०६ ब। सत् १.१६२, ३.३८३ ब, अवस्थानकाल २१२१, योग ४.२११, स्वामित्व सत्व ३३७६, सख्या ४१०२, ३.३८३ ब, स्थान ४४५२ ब। प्ररूपणा--सत, क्षेत्र २२०२, स्पर्शन ४.४८५, काल २.१०८, अतर (इन्द्रिय मार्गणा पूरी) १.१६०-१६४, संख्या ४.११६ १४ अ, ११२, भाव ३ २२० ब, अल्पबहुत्व ११४७, ब, अल्पबहुत्व ११६१ ब, ११७६, भागाभाग पचशरीरस्वामित्व अल्पबहुत्व ११५६ ब । ४.११६ ब, स्वामित्व (इन्द्रिय मार्गणा पूरी) ३३८२ योग (उपयोग)- उपयोग १४३२ ब, अशुभोपयोग १.४३३ ब, शुद्धोपयोग १४३१ अ। योगस्पर्धक-योग ३.३८३ ब । योगचंद्र-३३८३ ब, इतिहास १३३१ ब । योगाचार-बौद्धदर्शन ३.१८७ । योगत्यागक्रिया- सस्कार ४१५२ अ । योगाविभाग-प्रतिच्छेद-योग ३.३.३ अ-ब, अल्पबहुत्व योगदर्शन-३३८४ अ, दर्शन २.४०३ अ । ११६२ ब । योगदेव--इतिहास १३३३ अ-ब, १३४७ अ। योगिभक्ति-भक्ति ३.१६८ अ, इतिहास १.३४० ब । योगद्वार-आस्रव १२८३ अ। योगी-३३८६ अ, जीव २ ३३३ ब, सम्यग्दृष्टि ४.३७६ योगनिग्रह-गुप्ति २२४८ अ। ब, सुख ४.४३३ ब, स्नातक ४४७१ अ। योगनिद्रा-निद्रा २६१० अ, सम्यग्दृष्टि ४ ३७८ अ। योगेदु देव-३३८६ अ, इतिहास १३२६ अ, १.३४१ योगनिरोध---३ ३८५ब, ध्यान २४६६ ब, योग ३३८८ योग्य क्षेत्र-कृतिकर्म २.१३५ ब। योगनिर्वाणसंप्राप्तिक्रिया-संस्कार ४१५१ ब । योग्यता-३३८६ ब, कारण-(परिणमन) २.६१ अ, योगनिर्वाणसाधनक्रिया-सस्कार ४१५१ ब । (शक्ति) २.५६ अ, २६१ अ । योगपरिवर्तन-काल २६५ब, शुक्लध्यान ४३३ अ, योग्य पात्र-उपदेश १.४२५ ब, पात्र (दान) ३.५२ अ, सक्राति ४६१ अ। __ व्रत ३ ६२५ ब। योगप्रत्यय-उदय ३१२७ । योग्य मुद्रा-कृतिकर्म २१३४ ब । योगमत-एकात १८६५ ब । योजन--३.३८६ ब, क्षेत्र का प्रमाण २.२१५ अ-ब । योगमार्ग-३३८५ ब, इतिहास १३४२ ब । योजना-योग ३.३७६ अ। योगमार्गणा-दे० योग (प्ररूपणा)। योध-राक्षसवंश १३३८ अ । योगमुद्रा-मुद्रा ३३१३ ब। योनि-३.३८६ ब, परतत्रवाद ३१२ अ, वेदभाव ३.५८६ योगवक्रता-३३८५ ब । अ। योगवर्गणा-योग (अविभाग प्रतिच्छेद) ३ ३८३ अ, योनिभूत स्थान-जन्म २३१२ ब । अविभाग प्रतिच्छेदो का अल्पबहुत्व ११६२, जीव- योनिमति तियंच-३.३८८ अ, तिर्यच २.३६७, वेद प्रदेशो का अल्पवहुत्व १.१७६. कर्मप्रदेशो का ३.५८५ ब। प्ररूपणा-बध ३१०१, बधस्थान अल्पबहुत्व ११७६ । ३.११३, उदय १.३७६, उदयस्थान १ ३९२ ब, उदीयोगवातिक योगदर्शन ३ ३८४ अ। रणा १४११ अ, उदीरणास्थान १.४१२, सत्त्व योगशल्य-भावि शलाकापुरुष ४२६ ब । ४.२८२, सत्त्वस्थान ४ २६८, ४.३०५, त्रिसयोगी भग योगशास्त्र-३३८६ अ, इतिहास १.३४४ अ। १४०६ ब। सत् १२७५, सख्या ४६५, क्षेत्र योगसंक्रमण - शुक्लध्यान ४.३३ अ-ब । २१६८, स्पर्शन ४.४८०, काल २.१०६, अतर १.८, योगसंक्रांति-- शुक्लध्यान ४.३७ ब,स'कात्ति ४.६१ अ। भाव ३.२२०. अ, अल्पबहुत्व ११४४। योगसम्मह क्रिया-सस्कार ४.१५२ अ । योषा - स्त्री ४ ४५० अ। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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