Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 208
________________ यथाच्छंद मुनि २०२ यशोधर योगी भंग १४०७ ब । सत् ४२३८, संख्या ४१०६, यवन-३.३७१ अ, मनुष्यलोक ३ २७५ अ । क्षेत्र २ २०५, स्पर्शन ४४८६, काल २.११४, अतर यवमध्य-वनस्पति ३.५०६ अ, योगस्थानो मे समयो का ११७, भाव ३ २२१ अ, अल्पबहुत्व ११५१ । अल्पबहुत्व १.१६१ ब, अनुभागबध अध्यवसाय यथाच्छंद मुनि- स्वच्छद साधु ४५०३ ब। स्थानो की रचना का अल्पबहुत्व ११७६, सान्तर यथाच्छंद श्रोता-उपदेश १४२५ ब । सिद्धो का अल्पबहुत्व ११५३ ब। यथाजात-३३७०ब। यवमध्य काल--अद्धा असंक्षेप १४७ अ, अल्पबहुत्व यथाजातरूपधर-३.३७० ब, निग्रंथ २.६२१ ब । ११६१ ब । यथातथानुपूर्वी-आनुपूर्वी १२४६ ब । यवमध्य क्षेत्र-३३७१ अ। यथानुपूर्व-श्रुतज्ञान ४.६० अ । यवमध्य-रचना-याग ३ ३८२ अ। यथार्थ-३३७१ अ। यवमुरज क्षेत्र-३ ३७१ ब। यथालब्ध --आहार १२८८ अ । यश कीर्ति-३.३७१ ब। प्रथम-नदिसंघ १३२३ अ, यदु-३ ३७१ अ, यदुवश १३३६, हरिवश १.३४० अ। १३२४ अ, इतिहास १३२८ ब । द्वितीय-- काष्ठासघ यदुवंश-~-निर्देश १ ३३६, इतिहास १.३३७, हरिवश १.३२७ ब, इतिहास १३३० ब। तृतीय - अनन्त१.३४० अ। कीति १५६ ब, इतिहास १३३२ अ, १३४५ अ । यदृच्छा . परतत्रदाद ३१२ अ । चतुर्थ- इतिहास १.३३२ अ, १३४३ ब। पचम यदृष्ट-३ ३७१ अ, आलोचना १२७७ ब । - इतिहास १३३१ अ, १.३४६ अ । षष्ठ-इतिहास : यम-३ ३७१ अ, नक्षत्र २५०४ ब, भोगोपभोग ३२३६ १३३३ अ, १३४६ अ । सप्तम--इतिहास १३३३ अ, यमकगिरि का रक्षक देव ३४५३ अ, इस देव के प्रासाद का विस्तार ३.६१५, शुभोपयोग १४३३ अ, यश. नामकर्म प्रकृति-प्ररूपणा--प्रकृति ३६६ अ, सयम ४१३६ ब, सामायिक २३०८ ब। २५५३, स्थिति ४४६३, अनुभाग १६५, प्रदेश यम (लोकपाल) -- ३ ३७१ अ, लोकपाल ३ ४६१ ब, आयु ३१३६ । बध ३६७, बधस्थान ३.११०, उदय । १२६६, ऋद्धि व शक्ति ४५१३ अ, दिग्गजेद्र १३७५, उदयस्थान १३६२, उदीरणा १.४११ अ, ' उदीरणास्थान १४१२, सत्त्व ४२७८, सत्त्वस्थान, पर्वतवासी वाहन देव ३६१३ अ, ३४५३ अ, सुमेरु ४.३०३, त्रिसंयोगी भग १४०४ । सक्रमण ४.८४ अ, .. पर्वत पर भवन ३ ४५० अ-ब, स्वर्गलोक मे ४.५१३ अ. अल्पबहुत्व १.१६६। यमक-३ ३७१ अ। यश-३ ३७२ अ, रुचकवर पर्वत का कट-निर्देश ३ ४७६ यमकगिरि-निर्देश ३.४५३ अ, नामनिर्देश ३.४७१ अ, अ, विस्तार ३४८७, अकन ३.४६६ । यशपाल-३ ३७२ अ, मूलसघ १३१६ । विस्तार ३.४८३, ३.४८५, ३४८६, अकन ३४४४, यशस्कांत--मानुषोत्तर पर्वत के कट का देव-निर्देश ३४५७, ३.४६४ के सामने, चित्र ३४५३ अ, वर्ण ३४७५ अ, अकन ३.४६४ । ३.४८३, गणना ३४४५ अ । यमकायिक-आकाशोपन्न देव २४४५ ब। यशस्तिलकचद्रिका--३ ३७२ अ, इतिहास १३४६ ब । यशस्तिलकचपू-३ ३७२ अ, इतिहास १३४२ ब । यमकट - यमक गिरि-निर्देश ३.४५३ अ, नामनिर्देश ३४७१ अ, विस्तार ३.४८३, ३.४८५, ३.४८६, यशस्वती-कुलकर ४.२३, चक्रवर्ती ४ ११ ब । अकन ३४४४, ३.४५७, ३.४६४ के सामने, चित्र यशस्वान - ३३७२ अ, किंपुरुषजातीय व्यतरदेव २.१२५ ३४५३ अ, वर्ण ३ ४७७ । अ । मानुषोत्तर पर्वत के कट का देव-निर्देश यमदंड-३.३७१ अ। ३४७५ अ, अकन ३ ४६४।। यमदग्नि-३३७१ अ। यशस्विनी-३ ३७२ अ, रुचकवर पर्वत की दिक्कूमारीयमदेव--३.३७१ अ। निर्देश ३४७६ अ, अंकन ३४६६ । यमलोक-३.३७१ अ, अतकृत १.२ ब । यशस्वी-३ ३७२ अ, कुलकर ४२३ । यमुना-मनुष्य क्षेत्र ३२७५ ब । यशोदेव-३३७२ अ। यव-३३७१ अ, क्षेत्र का प्रमाण ३२०४ अ । यशोधर-३.३७१ अ, चक्रवर्ती ४ १० ब, तीर्थकर २.३७७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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