Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ रसना ज्ञान २०८ राजेन्द्र प्रधानता ४.१३६ अ। राग लोकेषणा-अनाकाक्ष अनशन १६६ अ, उपदेश रसना ज्ञान-कालावधि का अल्पबहुत्व १.१६० ब । १.४२४ ब, तप २.३५८ ब, २.३६० अ, धर्म रस निरपेक्ष-आहार १२८८ अ। २२७५ अ, ध्याता २४६३ अ, राग ३ ३६६ ब, रस-परित्याग- ३.३६३ अ। ३३९७ अ, वाद ३.५३३ अ, विनय ३.५५२ ब । रसमान-प्रमाण ३१४५ अ । विवेक ३.५६६ अ, सल्लेखना ४.३८३ अ, साधु रसा-व्यतरेद्र गणिका ३६११ ब । ४.५०५ अ, स्वाध्याय ४.५२३ । रसायन-मत्र ३.२४५ ब। रागांश - उपयोग १४३२ अ । रहस्य-३.३६३ ब। राघव-हरिदेव ४ ५३० अ। रहस्यपूर्ण चिट्ठी-३ ३६३ ब, इतिहास १.३४८ अ। राजकया-कथा २३ ब। रहोभ्याख्यान-३.३६३ ब । राजगृह-तीर्थकर मुनिसुव्रत २३७९, प्रतिनारायण राई-भक्ष्याभक्ष्य ३२०३ अ-ब । ४२० ब । मगध देश इतिहास १३१० ब। राक्षस-३.३६३ ब, राक्षसवश १३३८ अ। राजधानी-३ ४०० अ, चक्रबर्ती ४१६ अ, भरत, ऐरावत राक्षस (देव)-३३६३ब, पिशाच जातीय व्यतर देव -निर्देश तथा विदेह क्षेत्रो की प्रधान नगरियाँ-निर्देश ३५८ ब, नामनिर्देश ३६१० ब, अवगाहना ११८०, ३४४६ अ, ३ ४६० अ, गणना ३४४५ अ, अंकन अवधिज्ञान १.१६८, आयु १.२६४ ब । बौद्धाभिमत ३ ४४४, ३४४७, ३ ४६० अ। ३४३४ ब । इंद्र-निर्देश ३६११ अ, शक्ति आदि रापिड-भिक्षा ३ २३३ अ। ३६१०-६११, वर्ण व चैत्यवृक्ष ३६११ अ, अवस्थान राजपुर-चक्रवर्ती ४.१० ब । ३४७१, ३६१२-६१४।। राजभय --आहारातराय १२६ब । राक्षस (देव)-प्ररूपणा--बध ३ १०२, बधस्थान ३११३, राजमती-तीर्थकर नेमिनाथ २३८८ । उदय १.३७८, उदयस्थान १३६२ ब, उदीरणा राजमती विप्रलम-३ ४०० अ, आशाधर १.२८१ अ, १४११ अ, उदीरणास्थान १४१२, सत्त्व ४२८२, इतिहास १३४४ ब । सत्वस्थान ४२६८,४३०५, विसंयोगी भग १४०६ राजमल्ल -३.४०० अ, इतिहास १३३३ ब, १.३४७ अ । ब । सत् ४१८८, संख्या ४६७, क्षेत्र २१६६, राजमल्ल सत्यवाक्य -३.४०० ब । स्पर्शन ४.४८१, काल २१०४, अतर १.१०, भाव राजर्षि ऋषि १४५७ ब । ३२२० अ, अल्पबहुत्व ११४५ । राजवलिकथे-३.४०० अ। राक्षस द्वीप-राक्षसवंश १३३८ अ। राजवल्लभ नौकर--निंदा (साधु) २५८६ अ। राक्षस-राक्षस-३.३६३ ब । राजवातिक-३.४०० ब, अकलक १.३१ अ, इतिहास राक्षसवंश-इतिहास १.३३८ अ, विद्याधर वश १.३३६ १३४१ ब। अ। राजशेखर-३४०० ब । राक्षसी विद्या-राक्षसवश १.३३८ अ । राजसदान-दान २४२३ अ। राग-३.३६३ ब । अपराध (विभाव) ३५५८ ब, अभि- राजसिंह--३.४०० ब, प्रतिनारायण ४.२० ब । लाषा १६५ अ, १६६ अ, आकाक्षा १६५ ब, राजसेना-श्रेणी ४७२ अ। १६६ अ, आकाशवत् अनत १२२४ ब, उपयोग राजसेवा-निंदा (साधु) २.५८६ अ, साधु ४.४०८ अ । १४३२ अ-४३३ ब। कषाय २३६ अ, पोद्गलिक राजा-३४०० ब ।। (मत) ३३१८ ब, बध ३१७५ अ, मूर्त ३ ३१८ ब, राजादित्य-इतिहास १३३१ ब । विभाव ३ ५५८ ब, ३५५६ अ, ३ ५६० अ, ३ ५६२ राजीमती-३४०१ अ। अ, सत्त्व ४५२८, हिंसा १२१६ अ, १.२१७ ब, राजलमती-भोजवश १३३६ ब । ४५३२ अ। राजू--३.४०१ अ, (रज्जू) ३ ३८८ ब, क्षेत्र का प्रमाण राग-परिहार-चारित्र २.२८४ अ, त्याग २ ३९६ ब, २.२१५ ब, गणित २.२१८ ब, लोक का आयाम राग ३.३६७ अ, सामायिक ४.४१६ ब,४.४१६ अ। ३.४३८ ब, सहनानी २.२१६ब। राग-प्रत्यय-प्रत्यय ३.१२६ भ। राग-०१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307