Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 230
________________ वाटवान् २२४ वायुकायिक वाटवान्-३.५३१ ब, मनुष्यलोक ३ २७५ अ। वादिदेव सूरि-३ ५३४ अ, इतिहास १.३३८ ब, १.३५१ वाण-३.५३१ ब, गणित २२३३ अ, मनुष्यलोक ३२७५ ब, १.३५२ अ । ब। वादिभूषण-नंदिसघ १.३२४ अ, इतिहास १३३३ ब। वाणप्रस्थ -(दे. वानप्रस्थ)। वादिराज-३.५३४ अ। प्रथम-मूलसघ १३२२ ब... वाणिज्य-३.५३१ ब, सावध ४४२० ब । इतिहास १.३२८ ब, १३४० ब । द्वितीय-द्राविडसंघ वाणिज्य कर्माय - आर्य १२७५ अ। १३२० ब, इतिहास १.३३१ अ, १३४३ अ-ब । स्तोत्र वाणी-३५३१ ब, आगम १२२७ ब, ओम् १.४६६ ब । ४.४४६ ब। वात-औदारिक शरीर १४७१ब, वातवलय ३.५३२ । वादिराज सूार-द्रविडसघ १३२० अ । वातकायिक-दे० वायुकायिक । वादीद्र मुनि - आशाधर १.२८०ब। वादी-तीर्थकरवश २३८७ । वातकुमार-३.५३१ ब, भवनवासी देव-निर्देश ३२०८ अ, ३.२१० ब, अवगाहना १.१८०, अवधिज्ञान वादोभासह (अजितसेन)-३५३४ ब, इतिहास ब, १.३४४ अ। ११६८, आयु १२६५। इन्द्र--निर्देश ३ २०८ अ, वादीसिंह (ओडय देव)- मूलसघ १३२२ ब, इतिहास शक्ति आदि ३ २०८ ब। अवस्थान ३२०६ब, १३२६ ब, १३४१ ब । ३४७१, ३ ६१२-६१४ ।। वाबलि --अक्रियावाद १३२ अ । वातकुमार देव-प्ररूपणा-बंध ३१०२, बधस्थान वानप्रस्थ-३ ५३४ ब, आश्रम १२८१ अ, क्षुल्लक ३११३, उदय १३७८, उदयस्थान १३६२ ब, उदी- २१६० अ। रणा १४११ अ, उदीरणास्थान १४१२, सत्त्व वानप्रस्थ आश्रम-वर्णव्यवस्था ३.५२४ ब। ४२८२, सत्त्वस्थान ४२६८, ४३०५, त्रिसयोगीभग वानरद्वीप-वानरवश १३३८ ब। १४०६ ब। सत् ४.१८८, संख्या ४६७, क्षेत्र वानरवश-इतिहास १३३८ ब । २१६६, स्पर्शन ४.४८१, काल २१०४, अतर ११०, वानायुज -३ ५३४ ब, मनुष्यलोक ३ २७५ ब । भाव ३२२० अ, अल्पबहुत्व ११४५ । वापी-जम्ब-शाल्मली वृक्षस्थलो मे-निर्देश ३४५८ ब. वातपृष्ठ-मनुष्यलोक ३२७५ ब । विस्तार ३४६०, ३४६१ । नदीश्वर द्वीप मे-निर्देश वातवलय-३५३२ अ, लोक ४.४४० अ, चित्र ३४३९ । ३४६३ ब, नामनिर्देश ३४७५ अ, विस्तार ३,४६१, अकन ३४६५। वातव्यतर-लेश्या ३४२५ ब । वामदेव-३५३४ ब, यदुवंश १.३३७ । वात्सल्य-३.५३२ अ, उपकार १४१५ ब, निश्चय वात्सल्य वामदेव पंडित-इतिहास २.३३१ ब, १.३४५ अ। ३.५३२ ब, सम्यग्दर्शन ४.३५१ अ,४३५८ ब। वामन-लोकपाल ३४६१ब। वात्सायन-३ ५३३ अ, न्यायदर्शन २.६३४ अ । वामन मुनि-इतिहास १.३३३ अ, १३४४ ब । वाद-३ ५३३ अ, एकात १४६५ अ, कथा २२ अ, वामनसस्थान-जामकर्म-प्रकृति---४ १५४ ब, प्ररूपणा--- न्याय २६३३ अ-ब, स्याद्वाद ४४६७ ब । प्रकृति ३.८८, २५८३, स्थिति ४४६३, अनुभाग बाद (नरकपटल)-निर्देश २५८० ब, विस्तार २.५७६ १६५, प्रदेश ३१३६ । बंध ३६७, बधस्थान ३.११० ब, अकन ३४४१ । नारकी--अवगाहना ११७८, उदय १.३७५, उदयस्थान १.३६०, उदीरणा १.४११ आयु १.२६३ । अ, उदीरणास्थान १.४१२, सत्त्व ४२७८, सत्त्वस्थान वाद-न्याय-३ ५३४ अ, इतिहास १.३४१ ब । ४.३.३ । त्रिसंयोगी भंग १.४०४। संक्रमण ४.८५ वाद-महार्णव-३ ५३४ अ, अभयदेव ११२७ अ, इतिहास अ, अल्पबहुत्व ११६६अ। १३३० अ,१३४२ अ। वामा-३५३४ ब । वाद-विवाद-अस्तेय १२१४ अ, वाद ३.५३३ व। वायव्य-३.५३४ ब। वादाभास--वाद ३ ५३३ ब । वाय-३५३४ ब, अहंतातिशय १.१३७ ब। वादिचत्र-३ ५३४ अ, नंदिसघ १३२४ अ, इतिहास वायकायिक-३.५३४ ब, आयु १.२६४, काय २.४४१, १.३३३ ब, १.३४७ अ। जीव २.३३३ ब, जीवसमास २३४३, वनस्पति वादिचतुर्मुख नदिसघ १.३२५ । ३५०६ अ, लोक में अवस्थान ३५३५ अ । वक्रियिक वावित्व ऋद्धि-ऋद्धि १४४८ । ३.६०२ ब, स्थावर ४.४५३, ४.४५४ ब । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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