Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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रत्नसंचय
रज्जूधन
रज्जूधन-सहनानी २२१६ ब।
रत्नत्रय--३३८६ अ, मोक्षमार्ग ३ ३३५ ब, शुभोपयोग रज्जप्रतर-पहनानी २२१६ ब।
१४३४ ब। रति-३३८८ ब, उपदेश १.४२४ अ। कपाय २.३५ ब, रत्नत्रयकथा-३.३८६ अ।
२३६ अ, चैत्य-चैत्यालय (मति) २ ३०३ ब, सुख रत्नत्रयचक्र यत्र-यत्र ३३५८ । ४.४३० ब, हिसा ४.५३३ ब ।
रत्नत्रयविधान-३.३८६ अ । रतिकर- ३.३८८ ब, नदीवर द्वीप का पर्वत-निर्देश रत्नत्रयविधान टोका--इतिहास १३४४ ब, आशावर ३४६६ अ, विस्तार ३४८७, अकन, ३४६५, वर्ण १२८१ अ।
रत्नत्रयविधान यंत्र-यत्र ३,३५८ । रतिकूट-३३८६ अ, विद्यावर नगरी ३५४५ अ। रत्नत्रयव्रत-३.३८६ अ। रति-प्रकृति-३३८८ब,प्ररूपणा -प्रकृति ३.८८, ३.३४१, रत्नद्वीप-राक्षसवश १.३३८ अ।
स्थिति ३४४६, अनुभाग १६४ ब, प्रदेश ३१३६। रत्ननदि-३ ३८६ ब, नंदिसघ १.३२३ अ, इतिहास बंध ३ ६४ ब, ३९६ ब, ३६७, बघ की कालावधि १३२८ ब, १ ३२६ अ। का अल्पबहुत्व १.१६१ ब, बधस्थान ३१०६, उदय रत्नपुर-तीर्थकर धर्मनाथ २.३७६, प्रतिनारायण ४२० १३७५, उदयस्थान १.३८६, उदीरणा १४११ अ,
ब, विद्याधर नगरी ३५४६ अ। उदीरणास्थान १४१२, सत्त्व ४२७८, सत्त्वस्थान रत्नपुरी-३३८९ब। ४२६५, स्थितिसत्त्व स्थानो का अल्पबहुत्व ११६५
रत्नप्रभ ३३८६ ब। रुचकवर पर्वत का कट-निर्देश ब, त्रिसयोगी भग १४०१ ब { सक्रमण ४८५ अ,
३४७६ ब, विस्तार ३.४८७, अकन ३.४६६ । लोकअल्पबहुत्व ११६८।
पाल ३४६१ ब। रतिप्रिय-३ ३८६ अ, किन्नरजातीय व्यतरदेव २१२४ रत्नप्रभा-३.३८६ ब। नरक पृथिवी-निर्देश २५७६
अ, पटल २५७६ ब, इद्रक श्रेणीबद्ध व प्रकीर्णक रतिप्रिया -व्यतरेद्र वल्लमिका ३६११ ब ।
२५७८, २५७६, विस्तार २.५७६, २५७८, अकन रतिवाक्-वचन ३ ४६७ ब ।
३४४१, चित्र ३३६०। नारकी-अवगाहना रतिवेदनीय-- मोहनीय ३३४४ ब ।
११७८, अवधिज्ञान १.१६८, आयु १.२६३ ॥
प्ररूपणा-बध ३१००, बधस्थान ३११३, उदय रतिषेण-३ ३८६ अ, तीर्थकर सुमतिनाथ २.३७८ ।
१.३७६, उदयस्थान १ ३६२ ब, उदीरणा १४११ अ, रतिषेणा-तीर्थकर पद्मपभ २३८८ ।
सत्त्व ४२८१, सत्त्वस्थान ४ २६८, ४.३०५, त्रिसरतिसेना-व्यतरेद्र वल्लभिका ३६११ ब ।
योगी भंग १४०६ ब । सत् ४.१६१, सध्या ४ ६५, रत्न - ३ ३८६ अ, कवि-इतिहास १.३३० ब, चक्रवर्ती
क्षेत्र २.१६७, स्पर्शन ४.४७६, काल २१०१, अतर ४१२ अ,४१३ अ, नारायण ४१६ ब ।
१.८, भाव ३२२० अ, अल्पबहुत्व १.१४४। रत्नकंबल-श्वेताबर ४८० अ।
रत्नमाला-३.३६१ अ, हरिवंश १.३४० अ । रत्नकरडश्रावकाचार --३३८१ अ, इतिहास १३४० ब। रत्नमाली-विद्याधरवश १.३३६ अ । रत्नकीति-३ ३८६ अ। प्रथम-दिसंघ १.३२४ अ, रत्नमुक्तावली व्रत-३.३६१ अ।
काष्ठा सघ १३२७ ब। इतिहास-द्वितीय १३३२ रत्नरथ-विद्याधरवश १३३६ अ। ब। तृतीय १.३३३ ब, १.३४६ ब । चतुर्थ १३३४ रत्नराशि-स्वप्न ४.५०४ ब, ४.५०५ अ ।
रत्नवज्र-विद्याधरवंश १.३३६ अ। रत्नकट-३३८६ अ, मानुषोत्तर पर्वत का कूट-निर्देश रलवती-यदवश १.३३७। ३४७५ अ, विस्तार ३ ४८६, अकन ३ ४६४ । रुचक
रत्नवृष्टि-कल्याणक २.३२ ब । वर पर्वत का कूट-निर्देश ३.४७६ ब, विस्तार रत्नशैल--रत्नप्रभा ३.३६१ अ। ३.४८७, अकन ३.४६८ ।
रत्नश्रवा-३.३६१ अ, राक्षसवश १३३८ ब । रत्नगर्भ-यवश १.३३७ ।
रत्नसंचय-३ ३६१ अ, तीर्थंकर अभिनंदननाथ २.३७८ रत्नचित्र-विद्याधरवश १.३३६ अ ।
विद्याधर नगरी ३५४५ अ।
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