Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 161
________________ पुष १५५ पूणभद्र (देव) पष्प ----३७२ अ, तीर्थंकर सुविधिनाथ २३८३, पूजा १.४२४ ब । तप २३५८ ब, २३६० अ, धर्म २४७६ ३७८ ब, भक्ष्याभक्ष्य ३२०४ ब । अ, ध्याता २४६३ अ, राग ३.३९६ ब, ३ ३९७ अ, पष्पक-३७२ अ, तीर्थकर सुविधि २३८३, ईशान इन्द्र वाद ३.५३३ अ, विनय ३५५२ ब । विवेक ३५६६ का यान ४५११ ब । अ, सल्लेखना ४३८३ अ, साधु ४४०५ अ, स्वाध्याय यष्पक विमान-३ ७२ अ। स्वर्गपटल-निर्देश ४५१८, ४५२३ अ। विस्तार ४.५१८, अकन ४५१५, देव आयू १२६८। पूजा-पाठ-पूजा ३८१ ब । पुष्पगधी व्यन्तरेद्र की वल्लभिका ३६११ ब। पूजायंत्र-३.३५६ । पुष्पगिरि-मनुष्यलोक ३२७५ ब । पूजामद-मद ३.२५६ ब । पष्पचारण ऋद्धि---ऋद्धि १.४४७, १४५३ अ पूजाराध्य क्रिया-सस्कार ४१५२ अ। पुष्पचूर-विद्याधर नगरी ३५४५ ब, ३५४६ अ। पूजाह-राक्षसवंश १३३८ अ।। पूज्य-विनय ३५५२ ब, ३.५५३ ब । पुष्पचल---३७२ ब, विद्याधर नगरी ३ ५४५ ब । पूज्यपाद-३८१ ब, इतिहास १३२६ अ, १.३४०ब। पष्पदत-३७२ ब, क्षीरवर द्वीप का देव ३६१४,लोकपाल पूति-३ ८२ अ, आहार का दोष १ २६० ब, उद्दिष्ट दोष ३४६१ ब। .१.४१३ अ। पुस्पदत (आचार्य)-मूलसंघ १३१७, १३२२ ब, १ पूतिक-३८२ अ, वसति का दोष ३.५२८ ब । परि०/२२, कालावधि १. परि०/२७-८, विशेष पतिकर्म-कर्म २२६ ब । विचार १ परि०/२११ । इतिहास १३२८ ब । परक-३८२ अ, प्राणायाम ३१५५ अ । पुष्पदंत (कवि)---इतिहास १३३० ब,१३४२ ब । परण-३ ८२ अ, एकात मत (मस्करीमत) १४६५ ब. पुष्पदंत पुराण-३.७२ ब, इतिहास १३४५ अ। यदुवश १३३७ । पुष्पदंता-तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ २ ३८८ । पूरणकरण-अन्तरकरण १२७ अ। पुष्य दत्त-तीर्थकर २३६१। पूरणकाल-काल २८१ अ। पुष्पनंदि-३७२ ब। पूरणगलन--परमाणु ३१५ अ, पुद्गल ३६७ अ। पष्पप्रकीर्णक विमान-विमान ३५६३ अ। पूरन कश्यप-३८२ अ, एकान्तमती १४६५ ब । पुष्पमाल-३.७२ ब, विद्याधर नगरी ३.५४६ अ। पूरिम-निक्षेप ३.६०२ब। पुष्पमाला-३७२ ब, सुमेरु के वनो की दिक्कूमारी-- पूर्ण-३.८२ ब । असुरेद्र -निर्देश ३.२०८ अ, परिवार निर्देश ३४७३ ब, अकन ३४५१ । ३२०९ अ, अवस्यान ३ २०६ ब । आयु १२६५। पुष्पवती-व्यन्तरेद्र की वल्लभिका ३.६११ ब । क्षौद्रवर द्वीप का रक्षक देव ३.६१४ । पुष्पवती स्त्री-स्त्री ४.४४३ अ। पूर्ण-अल्प उपचार-उपचार १.४२० ब । पुष्पवृष्टि-प्रातिहार्य १ १३७ ब । पूर्णकलश मगल-मंगल ३२४४ अ। पम्पसेन--३७२ ब, मलसघ १३२२ ब, इतिहास १३२६ पूर्णचन---३.८२ ब, राक्षसवश १३.८ अ, विद्याधरणवश १.३३६ ब । पुष्पांजली-३.७३ अ, तीर्थकर २३७७ । पूर्णचंद्र--भावि शलाकापुरुष ४.२५ ब, विद्याधरवश पुष्पांजली व्रत-३.७३ अ। १३३६अ। पुष्य---३७३ अ, तीर्थकर २.३८१, नक्षत्र २५०४ ब । पूर्णप्रभ-३८२ब। पुष्यमित्र-३७३ अ, शकवश १.३१० ब, १३१४ । पूर्णबुद्धि-तीर्थकर २.३७७ । पूजन-पूजा ३.८० ब। पूर्णभद्र (कट)-३८२ ब, गजदंत का-निर्देश ३.४७२, पूजा-३.७३ अ, ३७४ अ, क्षुल्लक २१६० अ, चैत्य- विस्तार ३४८३, अंकन ३.४५७ । विजयाध का चैत्यालय २३०१ अ, पुण्य (उपयोग) १४३५ अ, निर्देश ३४७१ध, विस्तार ३.४८३, अंकन ३.४४४ शुभोपयोग १४३४ अ. सावध ४४२१ ब । (निद्रव० १३)। पूजाकर्म-कर्म २.२६ ब, कुतिकर्म २१३३ ब । पूर्णभद्र (देव)-३.८२ब, ३८३ अ, क्षौद्रवर द्वीप का देव पूजाकल्प - अभयनन्दि १.१२७ अ, इन्द्रनन्दि १.२६६ ब, ३.६१४, गजदन्त के कूट का देव ३.४७३ अ, यक्ष पूजाख्याति प्रतिष्ठा- अनाकाक्ष अनशन १.६६ अ, उपदेश देव ३.३६६ अ, विजया के कूट का देव ३.४७१ ब । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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