Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 183
________________ - भाव (स्वचतुष्टय) १७७ भावप्राधान्य ध्यान मे १ २७४ अ, धर्मध्यान मे २४८१ ब, पौद्ग- ३.२०६ ब, भवनों की संख्या ३ २१० व । अप् तथा लिकत्व ३३१८ ब, रौद्रध्यान मे ३.४०७ ब, ३४०८ तेज-कायिक २४५ ब। भावना-३२२४ अ, अभ्यास ११३१ब, उपयोग १.४२९ भाव (स्वचतुष्टय)-२.२७८ अ, परभाव २२७८ अ, ब, धर्मध्यान २४८२ अ, २४८५ ब, ध्येय २१०२ सप्तभगी ४३१६ ब, ४ ३२० अ। स्वभाव २ २७७ अ, शुक्लध्यान ४.३३ अ, शुभोपयोग १४३३ अ, श्रुतब। ज्ञान ४.५६ ब, ४.६२ ब । भाव अतर--अतर १.३ ब । भावना (धर्म-तप-व्रत आदि की)---अस्तेय व्रत की १२१४ भाव अनंत-अनंत १५५ ब । अ, अहिसा व्रत की १२१६ अ, आकिञ्चन्य धर्म की भाव अनुयोगद्वार---अनुयोगद्वार ११०३ ब । १.२२४ ब, आर्जव धर्म की १२७२ अ, क्षमा धर्म की भाव अप्रतिक्रमण-प्रतिक्रमण ३११७ अ। २१७७ ब, चारित्र की २२८२ ब, तप धर्म की २३६० अ, परिग्रहत्याग व्रत का ३२६ ब, वैयावत्त्य भाव अप्रत्याख्यान-अप्रत्याख्यान ११२६ अ। की ३६०६ ब, वैराग्य की ३६०७ अ, व्रत की भाव अशुद्ध आहार-उद्दिष्ट १.४१३ ब। ३.६२६ ब, सत्य धर्म की ४२७२ अ, सम्यग्ज्ञान की भाव आत्रव-आस्रव १२८२ ब । २.२६३ ब, सम्यग्दर्शन की ४३५१ अ, सल्लेखना की भाव इंद्रिय-इद्रिय १३०१ब, १३०२ अ, १.३०४ ४ ३६० ब, ४.३९२ अ। भावना-पच्चीसी व्रत-३ २२५ ब। भाव उदय----उदय १.३६६ अ । भावना-पद्धति----३२२५ ब, इतिहास १३४५ ब । भाव उपक्रम-उपक्रम १.४१६ ब । भावना-लीनता-सुख ४.४३२ ब । भाव उपशम-उपशम १४३७ । भावना-विधि व्रत-३२२५ ब । भावकर्म-उदय १३६६. अ, कर्म २२६ अ-२७ ब, २.२८ भाव-निक्षेप-२५६३ ब, २६०५ अ-ब । ब; जीव पुदगल २२८ ब, नो कर्म २.२७ । भाव-निबधन---निबधन २६१० ब। भावकषाय-कषाय २ ३५ ब । भावनिर्जरा-निर्जरा २.६२२ अ-ब, सम्यग्यदृष्टि ४.३७७ भावकाय-गुप्ति २२५० अ। अ। भावकोति-काष्ठासघ १३२७ अ। भावनिविचिकित्सा-निविचिकित्सा २६२७ अ । भावकोत-आहार दोष १२६० ब, उद्दिष्ट दोष १.४१३ भावपरमाणु - ध्येय २५०१ ब, परमाणु ३ १४ ब, शुक्लअ, वसतिका दोष ३ ५२८ ब । __ध्यान ४.३३ ब। भावक्रोध-विवेक ३ ५६७ अ । भावपरिवर्तन-ससार ४१४८ ब । भावग्रंथ-परिग्रह ३२८ अ। भावपाहुड-३२२६ अ, इतिहास १३४०ब। भावग्रह-ग्रह २२७४ अ। भावपुण्य-३६० ।। भावचद्र-नंदिसघ १३२३ ब । भावपुरुष - पुरुष ३६६ ब । भावतीर्थ-तीर्थ २ ३९३ ब। भावपूजा-पूजा ३७५ अ। भाव विभगी-इतिहास १.३४५ अ । भावप्रतिक्रमण-प्रतिक्रमण ३११६ ब । भावदोष-आहार १.२६० ब। भावप्रत्याख्यान-प्रत्या-यान ३१३२ अ। भावध्येय-२.५०० अ, २.५०१ ब, २५०२ अ । भावप्रमाण--प्रमाण ३ १४४ ब, ३ १४५ अ। भावनंदि-नदिसघ १३२३ ब । भावप्ररूपणा-अनुयोगद्वार ११०३ अ, केवली २१५८ अ, क्षीणक्षाय २१८६ ब, जीव सामान्य की ओघ आदेशभाव नपुंसक-नपुसक २.५०५ ब । 'प्ररूपणा ३२१६, मिथ्यादृष्टि ३३०४ अ, मिश्र गुणभाव नमस्कार-नमस्कार २५०६ ब, २.५०७ अ, विनय स्थान ३.३०६ अ । ३.५५२ अ। भावप्राण-प्राण ३.१५२ ब । भाव-नय-नय २५१४ ब, २.५२१ ब, २.५२२ ब, भावप्राधान्य-आगमार्थ १.२३१ अ, पाप ३.५३ ब, पुण्य २.५२३ अ। ३.६० ब, पूजा ३.७७ ब, बन्ध ३.१७४ ब, मार्गणा भावन-लोक-निर्देश ३.२०६ब, विस्तार ३६१२ अ, ३.२६७ अ । लिंग (वेद) ३५८४ अ-ब, लिग (साधु) बवस्थान ३२१० अ, चित्र ३.२१० अ, पंकखर भाग ३.४१७ ब, विनय (साध) ३५५३ ब । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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