Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 202
________________ १६६ मिश्र मोहनीय मिथ्यात्व प्रत्यय -प्रकृति ३८८, ३ ३४१, स्थिति ४.४६१, अनुभाग उदय १.३७५, उदयस्थान १३६२ अ, उदीरण १६३ ब, १६४ ब, प्रदेश ३१३६ । बंध ३६७, १.४११ अ, सत्त्व ४२७८, सत्त्वस्थान ४२८७, ३ १७८ ब, बधस्थान ३ १०६, उदय १३७५, उदय- ४.२६७,४३०४, त्रिसयोगी भग १४०५ ब । सत स्थान १३८६, उदीरणा १४११ अ, उदीरणास्थान ४१६१, सख्या ४६४, क्षेत्र २.१९७, स्पर्शन ४४७७, १.४१२, सत्व ४ २७८ सत्त्वस्थान ४२६५, स्थिति- काल २.६६, अन्तर १७, भाव ३२२२ ब, अल्पबहुत्व सत्त्व स्थानो का अल्पबहुत्व ११६५ ब। त्रिसयोगी १.१४२ ब। भंग १४०१ ब । उपशम १४३८ ब, क्षय २१७६ अ, मिथ्या नय-नय २५२०, २.५२४ अ। सक्रमण ४८५ अ, ४.८६ अ, ४८७ अ-ब, ४.८८ अ, मिथ्या मत-एकात १४६४ ब । अल्पबहुत्व १.१६६। मिथ्या शस्य- शल्य ४२६ ब । मिथ्यात्व प्रत्यय-उदय ३१२७-१३० । मिथ्या श्रुतज्ञान---श्रुतज्ञान ४.५६ ब । मिथ्यात्वादिक-ग्रन्थ २२७३ अ । मिथ्याहकार-कर्ता २.२३ अ। मिथ्यादर्शन-३ ३०० अ, अध्यवसान १५३ अ, अनत मिथ्योपदेश-उपदेश १ ४२४ अ । १५४ ब, अनतानुबधी १६० अ, अवधिज्ञान ११६४ मिनट-३३०७ अ, काल का प्रमाण २ २१७ अ । ब, करण चिह्न ११६२ ब, प्रत्यय ३१२६ अ, दर्शना- मिश्र -३३०७ अ, अनुकपा १६६ ब, अनुभव १.८६ अ। वरण ४.३४६ ब। उपयोग १४३१ ब, काय २४३ ब, काययोग २४६ मिथ्यादर्शन क्रिया-क्रिया २.१७४ ब। ब, १४७२ अ-ब, काल २८० अ, मिश्र गुणस्थान मिथ्यादर्शन प्ररूपणा-बध ३ १०७ ब, बधस्थान ३११३, ३३०७ अ, समुद्रात ४.३४३ अ। उदय १३८६, उदयस्थान १३६३, उदीरणा १४११ मिश्र काययोग-आयु बध १२६३ ब, औदारिक १४७२ अ, उदीरणास्थान १ ४१२, सत्त्व ४२८४, सत्त्व- अ-ब, काय (पर्याप्त) २४६ ब, वैक्रियिक ३६०४ अ, स्थान ४३०१-४३०६, त्रिसयोगी भग १४०८ । सत प्ररूपणा-बंध ३ १०४, बधस्थान ३.११३, उदय ४२६० सख्या ४१०६ क्षेत्र २ २०६, स्पर्शन ४ ४६३, १३८०, उदयस्थान १ ३६२ ब, उदीरणा १४११ अ, काल २११६, अन्तर १२१, भाव ३.२२१ ब, अल्प सत्त्व ४.२८२, सत्त्वस्थान ४.२६६, ४३०५, बहुत्व ११५२। त्रिसयोगी भग १४०७ अ । सत् ४.२१८, सख्या मिथ्यादर्शन वाक्-वचन ३ ५६७ ब। ४.१०३, क्षेत्र २२०२, स्पर्शन ४.४८५, काल २.१०८, मिथ्यावृष्टि-३३०१ ब, अज्ञानी १३७ अ, २२७३ अ, अतर १.१३, भाव ३.२२० ब, अल्पबहुत्व १.१४८ । अधश्रद्धानी (श्रद्धान) ४ ४५ अ, अभव्य (भव्य) (श्रदान) ४४५ अ. अभव्य (भव्य) मिश्रकाल-काल २८० अ। ३२२३ ब, अवधिज्ञान ११६० अ, ११६४ ब, मिश्रकेशा-३ ३०७ स, रुचकवर पर्वत की दिक्कूमारी आगमार्थ ग्रहण १२३२ अ-ब, आरोहण-अवरोहण -निर्देश ३४७६ अ, अकन ३४६८, ३४६६ । २२४७, उपदेश १४२६ अ, उपशम १४३८ ब, मिश्र गुणस्थान-३.३०७ अ, दे० सम्यम्मिथ्याष्टि। मिश्र तद्व्यतिरिक्त--अंतर १३ ब ।। कषाय २४० ब, काय २४५ अ, कारक (भेदाभेद) मिश्र दोष-आहार १२६० ब, उद्दिष्ट १.४१३ अ, २५० ब। गति गति (कालाबध का अल्पबहत्व) ११६१ । ज्ञान २२५७ ब, ज्ञानी (अज्ञानी) २२७३ मिश्र द्रव्य-सहनानी २२१६ अ । अ, चेतना (कर्म व कर्मफल) २२६७ ब, २.२६६ ब, मिश्र नोकर्म द्रव्यबंधक-बधक ३ १७६ अ। दशक रण २६ अ, धमध्यान २४८२ अ, नय २५२६ मिश्र पाहुड-प्राभूत ३१५६ ब। अ, निंदा २५८६अ, परिषह ३.३७ । भव्य (अभव्य) मिश्रपूजा-पूजा ३७४ ब। २२२३ ब, राग ३ ३६८ ब, ३३६६ अ-ब, शास्त्र मिश्रप्रकृति-दे. सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति। ज्ञान (ज्ञान) २२६५ ब, २२६७, श्रद्धान ४.४५ अ, मिश्र बंधक-बंधक ३.१७६ अ। ४.४६ अ, धुतकेवली (साधु) ४.५६ अ, सक्रमण मिश्र मत-मीमासादर्शन ३.३११ अ । ४.८७ अ-ब, समुद्रात ४.३४३ अ। मिश्र मोहनीय - सक्रमण ४.८६ अ, दे० सम्यग्मिथ्यात्व मिथ्यावृष्टि (प्ररूपणा)- बध ३.६७, बंधस्थान ३.१०६ प्रकृति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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