Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 201
________________ माली मिथ्यात्व प्रकृति (कर्म) माली-राक्षसवण १.३३८ ब । ब, पटल ४५१७, इन्द्रक व श्रेणीबद्ध ४५१७, माल्य-२.२६६ ब, मनुष्यलोक ३२७५ ब, विद्याधर ४५२०, अवस्थान ४५१४ ब, अकन ४.५१.५ । नगरी ३.५४६ अ। मिट्टीसम श्रोता-उपदेश १४२५ ब, श्रोता ४७४ ब । माल्यकल्लोवनोपांत-मनुष्यलोक ३ २७५ अ। मित संभाषण-३२६९ ब, समिदी ४ ३४० अ-ब। माल्यवती- ३२६६ ब, मनुष्यलोक ३.२७५ ब । मित्र-नक्षत्र २५०४ ब, सगति ४.१२० अ, स्वर्ग पटल माल्यवान-३.२६६ ब, यदुवंश १३३७, राक्षसवश --निर्देश ४५१७, विस्तार ४.५१७, अकन ४५१६ १३३८ ब। ब, देव आयु १.२६७ । माल्यवान-३ २६९ ब, गजदत-निर्देश ३४५६ ब, मित्रक-३.२६६ ब, पुन्नाट संघ १.३२७ अ। नामनिर्देश ३.४७१ ब, विस्तार ३.४८२, ३४८५, मित्रता-संगति ४.१२० अ । ३४८६, अंकन ३ ४४४, ३४५६ ३.४६४ के सामने, मित्रनंदि-३२६९ ब, इतिहास १३२८ अ। चित्र ३.४५२ ब, वर्ण ३ ४७७, कूट व देव ३.४७२। मित्रफल्ग-गणधर २.२१३ अ। गजदत का कूट-निर्देश ३ ४७३ अ, विस्तार ३४८३, मित्रभाव-तीर्थंकर अभिनदननाथ २.३९१ । अंकन ३४४४,३४५७ । द्रह - निदेश ३४५६ ब, मित्रयज्ञ-गणधर २.२१२ ब । नामनिर्देश ३४७६ अ, विस्तार ३४६०, ३४६१, मित्रवीर-३२६९ ब, पून्नाट संघ १.३२७ अ, इतिहास अकन ३.४४४, ३.४५७, ३४६४ के सामने । नाभि- १३ गिरि-निर्देश ३४५२ व। नामनिर्देश ३ ४७१ अ, मित्रवीर्य-तीर्थकर सुमतिनाथ २.३६१ । विस्तार ३.४८३, ३.४८५, ३.४८६, अकन ३४४४, मित्रसेना-तीर्थकर अरनाथ २.३८०। ३.४६४ के सामने, चित्र ३४५२ ब, वर्ण ३४७७ । मिवाति , माषफल-३ २६९ ब । मिथिला- ३.२६६ ब,तीर्थकर नमिनाथ,मल्लिनाथ २.३७६, माषवती -३.२६९ ब । मनुष्यलोक ३२७५ ब । नारायण ४.१८ अ, हरिवश १.३४० अ। मास-३.२६६ ब, काल का प्रमाण २ २१६ अ-ब । मिथ्या अनेकांत-अनेकात ११०५ ब। मासिक धर्म-सूतक ४ ४४३ अ। मिथ्या अवधिज्ञान-अवधिज्ञान ११८७ अ। मासकवासिता-३२६९ ब । मिथ्या अहंकार-कर्ता २२०३ अ। माहिषक-३.२६६ ब, मनुष्यलोक ३ २७५ अ। मिथ्या उपदेश-उपदेश १.४२४ अ। माहिष्मती-मनुष्यलोक ३.२७६ अ । मिथ्या एकांत-एकात १४५६ ब, १४६३ अ-ब, १.४६४ माहेद्र-३.२६९ ब, चक्रवर्ती ४.१० ब, नारायण ४१८ब। अब। विद्याधर नगरी ३५४६ अ। मिथ्या कर्ता-कर्म-कर्ता २२२ अ। माहेंद्र (देव)--निर्देश ४.५१० ब, अवगाहना १.१८० ब। मिथ्याकार--समाचार ४.३३६ ब । अवधिज्ञान १.१९८ ब, आयु १२६७, आयुबध के मिथ्याज्ञान-अज्ञान १३७ अ, अध्यवसान १५२ ब, योग्य परिणाम १.२५८ अ । इन्द्र-निर्देश ४.५१० ब, सम्यग्ज्ञान ३२६३ अ-२६७ । उत्तरेन्द्र ४.५११ अ, परिवार ४.५१२-५१३, अवस्थान मिथ्याचारित्र-अध्यवसान १५२ ब, चारित्र २.२८३ अ । ४५२० ब, चिह्न आदि ४.५११ ब, विमान नगर व मिथ्यात्व-अज्ञान १.३७ अ, अंतरायाम १.४४१ अ, भवन ४५२०-५२१ । अशुभोपयोग १.४३३ ब, उपशम १.४३८ ब, एकान्त माहेंद्र (देव प्ररूपणा)-बध ३.१०२, बधस्थान ३.११३, १४६४ अ, कर्ता-कर्म २.२२ ब, २.२३ अ, कारक उदय १.३७८, उदयस्थान १३६२ ब, उदीरणा २.५० ब, कालावधि का अल्पबहुत्व ११६१ब, शान१.४११ अ, सत्त्व ४२८२, सत्त्वस्थान ४.२९८ दर्शन (मिथ्या) २२६४ अ, विधाकरण १.४३८ ब, ४.३०५, त्रिसंयोगी भग १.४०६ ब । सत् ४.१६१, व्यवहार नय २.५६४ अ, सासादन (काल) २.६५ सख्या ४.९८, क्षेत्र २.२००, स्पर्शन ४४८१, काल अ,ब ४.४२६ । २१०४, अन्तर १.१०, भाव २.२२० ब, अल्पबहुत्व मिथ्यात्व क्रिया-क्रिया २.१७४ ब । १.१४५ । मिथ्यात्व प्रकृति (कर्म)-आबाधा १.२४९ म, मोहनीय माहेंद्र (स्वर्ग)-निर्देश ४.५१४ ब, उत्तर विभाग ४.५२० ३.३४२ ब, ३ ३४३ अ, सर्वघाती १.६३ ब । प्ररूपणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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