Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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मतगज
मध्य धन
१८४
मतंगज-यदु वंश १ ३३७ ।।
ममितिको-३.२५६ अ । मत-३.२४६ अ, एकान्तमत १४६४ ब ।
मथुरा-३२५८ अ, उग्रसेन १.३५२ अ, नारायण ४१८ मतानुज्ञा-३२४६ अ।
___ अ, मनुष्यलोक ३.२७६ अ। मतार्थ-३.२४६ अ, आगम १२३० अ, कर्ताकर्म २.२४ मथुरा संघ--३.२५६ अ, जैनाभासी संघ १३१६ अ, ब।
इतिहास १३२१ ब, १.३२७ ब । मति-अध्यवसान १५२ अ, मतिज्ञान ३ २५० अ।
मद--३.२५६ अ, मार्दव ३.२६८ ब । मतिज्ञान--३ ३४६ अ, अनुभव प्रत्यक्ष १.८३ ब, अवग्रह, मदनकोति-आशाधर १.२८०ब।
आदि की कालावधि का अल्पबहुत्व ११६०, अवधि- मदनवेगा-यदुवंश १३३७ । ज्ञान ११८६ अ, ११६० ब, केवलज्ञान २२५६- मदना -३ २५६ ब, मनुष्यलोक ३.२७६ अ । २६०, गति-अगति (गुणोत्पादन) २३२२, गुणस्थान मदिरा-मद्य ३.२५६ ब, भक्ष्याभक्ष्य ३.२०२ ब। तथा जीवसमास २२६१, नय २५५४ अ, परोक्ष मद्य-३२५६ ब,भक्ष्याभक्ष्य ३.२०२ ब, श्रावक ४.५० ब। ३ ३६ अ, प्रत्यक्ष (अनुभव) १८३ ब, (सा- मद्यमयी-सुमेरु की परिधि ३४४९ अ। व्यवहारिक) ३१२२ ब, मन:पर्यय ३२६७ ब, मोक्ष मद्यांग नातीय कल्पवृक्ष-वृक्ष ३.५७८ अ ।
मार्ग ४६० ब, श्रुतज्ञान ४.६० अ, ४.६१ अ-ब। मत्र -३३६० अ, मनुष्यलोक ३,२७५ ब । मतिज्ञान (प्ररूपणा) - बंध ३.१०६, बधस्थान ३११३, मद्रक-३.२६० अ, मनुष्यलोक ३ २७५ अ ।
उदय १३८३, उदयस्थान १.३६३ अ, उदीरणा मद्रकार-मनुष्यलोक ३.२७५ अ। १.४११ अ, सत्त्व ४.२८३, सत्त्वस्थान ४.३००, मद्री-३.२६० अ, अन्ध्रकवृष्णि १३० अ, यदुवश ४.३०५, विसयोगी भग १.४०७ अ। सत् ४२३५, १.३३७ । सख्या ४१०६, क्षेत्र २.२०४, स्पर्शन ४४८८, काल
मधु-३२६० अ, प्रतिनारायण ४.२० अ, भक्ष्याभक्ष्य २.११३, अन्तर १.१५, भाव ३.२२१ अ, अल्पबहुत्व
३.२०२ ब, श्रावक ४५० ब । ११५० ।
मधुकरी वृत्ति-आहार १२८८ ब, भिक्षा ३ २२६ ब। . मतिज्ञान सिद्ध - अल्पबहुत्व १.१५४ अ।
मधुकैटभ-३२६० ब, तीर्थंकर अनन्तनाथ २३६१, प्रतिमतिज्ञानावरण-"ज्ञानावरण २.२७१ अ । प्ररूपणा--प्रकृति
नारायण ४.२० अ। ३.८८, २.२७१ अ, स्थिति ४.४६०, अनुभाग १.६१
मधुक्रीड-प्रतिनारायण ४.२० अ। ब, १.६४ ब, प्रदेश ३.१३६ । बध ३.६८, बधस्थान
मपिंगल-३२६० ब । ३१०९, उदय १३७५, उदयस्थान १.३८७ उदीरणा
मधुर (कवि)-इतिहास ३ ३३२ ब । १४११ अ, उदीरणास्थान १४१२ सत्त्व ४२७८,
मधुर भाषण-गुरु २.२५२ ब, सत्य ४.२७२ ब, समिति सत्त्वस्थान ४.२६४, बिसयोगी भग १३६६ । सक्रमण ४.३४० ब। ४.८४ ब, अल्पबहुत्व १.१६८ ब ।
मधुरा-३.२६१ अ, व्यन्तरेन्द्र गणिका ३.६११ ब । मतिसागर-द्रविड सघ १.३२० अ।
मधुरालापा-व्यन्तरेन्द्र गणिका ३.६११ ब । मत्तजला-३.२५६ अ। विभंगा नदी--निर्देश ३.४६० मधुसूदन-प्रतिनारायण ४२० अ।
अ, नामनिर्देश ३.४७४ ब, विस्तार ३.४८६, मधुसूदन सरस्वती-३.२६१ अ, वेदान्त ३.५६५ ब ।
३४६०, अकन ३४४४ के सामने, ३४६४ के सामने। मधुसेना--तीर्थंकर मल्लिनाथ २३८८ । मत्यज्ञान - अज्ञान १३७ ब, मतिज्ञान ३.२५२ अ, जीव- मधुस्रावी ऋद्धि-ऋद्धि १.४४७, १.४५६ अ ।
समास तथा गुणस्थान २.२६१। प्ररूपणा--दे० मध्य-३.२६१ अ, परमाणु ३.१६ ब, वारुणीवर सागर मतिज्ञान ।
का रक्षक देव ३.६१४, वैष्णव ३६०६अ। मत्स-३२५६ अ।
मध्यखंड द्रव्य-कृष्टि २.१४१ ब । मत्सर-३.२५६ अ।
मध्य-पवेयक-वेयक स्वर्ग के पटल ४.५१८-५२० । मत्स्य-३.२५६ अ, तीर्थंकर अरहनाथ २३७६, मनुष्य- मध्य-चय-धन-गणित २२२६ ब । लोक ३.२७५ अ, हरिवंश १३३६ ब ।
मध्यदिन-एकान्त (अज्ञानवादी) १.४६५ ब । मत्स्ययुगल-स्वप्न ४.५०४ ब ।
मध्यदेश-मनुष्यलोक ३.२७५ ब । मत्स्योद्वर्त-३.२५६ अ, व्युत्सर्गदोष ३.६२२ ब ।
मध्यधन-गणित २.२२६ ब, २.२३२ अ।
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