Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 191
________________ मध्यप्रदेश मध्यप्रदेश - ३२६१ अ । मध्यम — वारुणीवर सागर का रक्षक देव ३६१४ । मध्यम अनन्त – अनन्त १५६ व गणित २.२१४ ब । मध्यम अन्तरात्मा - १२७ अ । मध्यम अवगाहना-सख्याप्ररूपणा ४ ६४ अ । मध्यम असंख्यात - असंख्यात १२०६ ब, गणित २.२१४ ब । मध्यम आराधना - सल्लेखना ४ ३८७ म । मध्यम ग्रं वेयक - ग्रैवेयक स्वर्ग पटल ४५१८-५२० । मध्यम नक्षत्र --- सल्लेखना ४.३६७ ब । मध्यम धर्मध्यान -- धर्मध्यान २४७६ अ । मध्यम पद - आगम १.२२८ ब पद ३.४ ब, श्रुतज्ञान ४.६५ अ । मध्यम पात्र पात ३५२ ब । मध्यम पारिषदपारिषद ३.५६ अ । मध्यम प्रोषधोपवास- प्रोषधोपवास ३ १६४ अ । मध्यम व्यास - गणित २२३३ ब । मध्यम संख्यात गणित २.२१४ ब, सख्यात ४६२ अ । मध्यम सूची - गणित २. २३३ ब । मध्य स्वर - स्वर ४.५०८ ब । - - -भाषा ३.२२७ ब । मध्यमा मध्य मीमांसा दर्शन २.४०४ अ । ― - मध्यलोक - ३२६१ अ, ३.४४२ अ, चित्र ३.४४३ । क्षेत्रप्ररूपणा २९६१ व चैत्य-चंत्यालय २.३०३ अ, २.३०४ अ । मध्यलोक सिद्ध - अल्पबहुत्व १.१५३ । मध्यस्थ भाव - सामायिक ४४१६ अ । मध्याह्न - ३.२६१ अ । मध्याखव ऋद्धि — ऋद्धि १.४५६ ब । मन. कर्म कर्म २-२६ अ । १८५ Jain Education International मन:पर्ययज्ञान - ३.२६१ अ अवधिज्ञान १.१८८ ब. ११५१ अ अवधिज्ञान ( प्रत्यक्षता परोक्षता) ११९० अ-य, उपक्रम १४१६ व ऋद्धि १.४४८, गतिअगति ( गुणोत्पादन ) २३२२ अ, जीवसमास तथा गुणस्थान २२६१ । दर्शन २४१६ अ, पचम काल १.१८६ व परिहारविशुद्धि ३३७ अ प्रत्यक्षता परोक्षता (अवधिज्ञान) १.१६०-१६१, मोक्षमार्ग ( अवधिज्ञान) १.१०१ व वेद भाव ३.५८० व मन:पर्ययज्ञान (प्ररूपणा ) - बघ ३ १०६, बधस्थान ३.११३, उदय १.३८३, उदयस्थान १३६३ अ, उदी मनाधिगुप्त रणा १४११ अ, सत्त्व ४२५३, सत्त्वस्थान ४३००, ४. ३०५, त्रिसयोगी भंग १४०७ अ, सत् ४२३६, संख्या ४१०६, क्षेत्र २२०४, स्पर्शन ४४५०, काल २११३, अन्तर ११५, भाव ३२२१ अ अबहुत्व ११५० । मन पर्ययज्ञान सिद्ध- अल्पबहुत्व ११५४ अ । मन:पर्ययज्ञानावरण३ २७१ व प्रकृति ३८८२२७०, स्थिति ४४६०, अनुभाग ११४ व प्रदेश २ १३६ । बन्ध ३.६७, बन्धस्थान ३ १०६, उदय १३७५, उदयस्थान १३८७, उदीरणा १४११, उदीरणा-स्थान १.४१२, सत्व ४२७८, सस्वस्थान ४२९४, त्रिसं योगी भग १३९९ संक्रमण ४८४ व अल्पबहुत्व १.१६८ । मन:पर्ययज्ञानावरणीयदे. मन पर्ययज्ञानावरण मन:पर्ययज्ञानी तीर्थकर सम २३८७, स्वाध्याय ४५२४ अ । मनःपर्याप्ति पर्याप्ति ३४१ ब । मनः परावर्तन - आवर्त १२७६ अ । मनःप्रतिक्रमण प्रतिमन ३११६ व । मन प्रत्याख्यान प्रत्याख्यान ३ १३२ अ । मन. शिल- ३२६६ व सोलहवां सागर द्वीप-निर्देश ३ ४७० अ, विस्तार ३.४७८, अकन ३. ४४३, जल का रस ३.४७० अ ज्योतिषचक २३४८ व अधिपति देव ३६१४ । मनः शुद्धि--- धर्म २४६९ ब, भक्ति ३.१६६ अ । 1 १.८१ व न्याय , मन - ३२६६ ब, अनुभव १८१ ब अवधिज्ञान ११६१ अन्य, आहारान्तराय १.२१ अ उपयोग (कर्मबन्ध) १.४३३ व एकेन्द्रिय १.३०७ अ कर्म २.२६ अ ब, केवली २.१६३ अ द्रव्यमन (अनुभव) २६३३ व पर्याप्त ३.३८० अ प्राण ३.१५३ अ ३. १५४ व प्राणायाम ३.१५६ अ मतिज्ञान ३.२५० ब, ३.२६८ अ, मन पर्यय ज्ञान ३.२६२ अ, ३२६७ ब, ३.२६८ अ, मूर्त ३.२१८ अ, भावमन (अनुभव) १.८१ ब, सज्ञी ४.१२२ अ, संस्कार ४.१५० अ, स्वाध्याय ४५२५ अ । मनक – ३.२७२ अ नरकपटल निर्देश २.५७९ ब - -- विस्तार २.५७१ व अंकन ३.४३१ । नारकी - अब गाहना १.१७८, आयु १.२६३ । मनचती अष्टमी व्रत—३.२७२ अ ॥ - मनन --- स्वाध्याय ४.५२३ अ । मनरंगलाल - ३.२७२ ब इतिहास १.३३४ ब, ३४८ अ । मनाधिगुप्त - भावि तीर्थंकर २.३७७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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