Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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भरतकूट
वैदिक भूगोल ३४३१ ब ।
भरतकूट - ३२०७ अ विजयार्ध
निर्देश ३.४७१ ब
विस्तार ३४८३, अकन २.४४४ के सामने हिमवान --- निर्देश ३.४७२ अ विस्तार ३४८३ अंकन ३.४४४ के सामने ।
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भरतचद्र - नंदि सघ १ ३२४ अ ।
भरत चक्री - अकम्पन १३० ब, अच्युत स्वर्ग १४१ अ, इक्ष्वाकुवंश १३३५ अ ऋषभ के पुत्र २.३६१, कुलकर ४२३, चक्रवर्ती ४१० अ, चारित्र २२६१ अ, तीर्थकर ऋषभ २३९१, दीक्षा २२६१ अ, लिंग धारण ३.४१९ अ, विभूति ४.१५ अ सूर्यवंश १३३९ ब, स्वप्न ४५०५ अ ।
भरतचंद्र नदिसघ १३२४ अ ।
भरतिमय्य- गण्डविमुक्त देव २२१० ब ।
भरतेशवैभव - इतिहास १३४७ अ । भरतेश्वराभ्युदय --- ३.२०७ अ, आशाधर १२८१, इतिहास १ ३४४ ब ।
भरिचूड - विद्याधरवश १३३१ अ ।
भरकच्छ - ३.२७ अ मनुष्यलोक ३२७५ अ भतं प्रपच - ३.२०७ अ वेदान्त ३५१५ ब । भतं प्रपंच वेदांत वेदान्त ३५१६ अ ।
मतं हरि - ३.२०७ अ ।
भल्लक - नरकलोक मे जन्मभूमि का आकार २. ५७७ अ । भव - ३२०७ब, कारण २६४ अ प्रत्यय १.१५७ व ३८८३१० अ भाविणलाकापुरुष ४२६ अ ।
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भवनजय — विद्याधर नगरी ३.५४६ अ ।
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भवन - ३२०७ व काञ्चनगिरि पर ३४५३ अ, चैत्यचैत्यालय मे २३०३ अ । जम्बू व शाल्मली वृक्षस्थलो मे ३.४५८ ब, अकन ३.४५६ । दिग्गजेन्द्र पर्वतो पर ३ ४५३ अ, मध्यलोक मे ३.६१५ अ, यमक पर्वतो पर ३४५३ अ । भगनवासी देवो के निर्देश ३ २०७ अ, ३.६१५ अ, विस्तार ३२१० व अवस्थान ३२१० व स्वरूप ३ २१० ब संख्या ३.२१० ब लोकपाल देवो के ३४५० ब । व्यन्तर देवो केनिर्देश ३४७१, ३६१२ अ ३६१३. विस्तार १.६१५ अ, अवस्थान ३६१२ अ, ३.६१३, स्वरूप ३६१२ ब, सख्या ३.६१२ व स्वर्गवासी देवो के निर्देश ४५२१ अ विस्तार ४.५२१ व अवस्थान ४५२० ब, स्वरूप ४ २५१ अ ।
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भवनतापि देव (आकाशोपपन्न) २.४४५ ब ।
भवनत्रिक द्वेष प्ररूपणा बन्ध ३.१०२ बन्धस्थान
भवायु
३. ११२, आयुबन्ध योग्य परिणाम १.२५७ अ, उदय १.३७८, उदयस्थान १३९२ व उदीरणा १.४११ अ, सत्त्व ४.२८२, सत्त्वस्थान ४.२६८, ४.३०५, त्रिसयोगी भंग १४०६ व सत् ४ १८७, संख्या ४.१७, क्षेत्र २.१६६, स्पर्शन ४.४८२, काल २१०४, अन्तर ११०, भाव ३.२२०, अल्पबहुत्व १.१४५ । भवनपुर भवनवासी देवो के ३-२०७ व ३.२१० अ । व्यन्तर देवों के निर्देश ३.६१२ अ, स्वरूप ३.६१२, विस्तार ३६१५ अ सख्या ३६१२ व सुमेरु पर्वत
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पर ३४५० अ ।
भवनभूमि समवसरण ४३३१ अ
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भवनवासी देव निर्देश २.४४५ व ३२०७ व अवगाहना ११८०, अवधिज्ञान १.१६८, आयु १२६५, अयु बन्ध के योग्य परिणाम, १२५७, चैट चैत्यालय २३०२, २३०३ ब, अवस्थान ३.२१० अ, ३६१३ च्या ३४२५ व इन्द्र- निर्देश ३.२०६ अ, परिवार ३.२०९ अ शक्ति चिह्न आदि ३२०८ ब, भवन तथा भवनपुर ३.१२० अ देवियाँ ३२०६
अ ।
भवनवासी देव (प्ररूपणा ) - बन्ध ३१०२, बन्धस्थान
३ ११३१३७५ उदयस्थान १.३१२ व उदीरणा १.४११ अ. सत्त्व ४.२८२, सत्त्वस्थान ४२६८, ४.३०५, त्रिसयोगी भग १४०६ ब । सत् ४.१८७, सख्या ४.१७, क्षेत्र २.११९, स्पर्शन ४.४८१, काल २. १०४, अन्तर ११०, भाव ३२२० अ, अल्पबहुत्व १.१४५ ।
भवनधुत -- बलदेव ४ १७ ब ।
भवनिमित्तक - उदय (कर्म) १३६७ अ, कारण २.६४ अ भवपरिवर्तन - संसार ४. १४८ अ ।
भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान १.१८७ ब, १.१६२-१९६, प्रकृतिवन्ध ३० व ३१० अ भवविचय-- धर्मध्यान २४८० अ । भवविपाकी प्रकृति - प्रकृतिबन्ध ३८१ व
भववृक्ष साधु ४.४०७ अ ।
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भवसंसार - संसार ४.१४७ अ ।
भवसिद्ध भव्य ३२११ ब - ।
भवस्थिति ३२११ अ स्थिति ४४५७ ब ।
भवाद्धा - ३२११ अ ।
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भवाननुगामी - अवधिज्ञान ११८८ व भवानुगामी - अवधिज्ञान १.१६८ अ भवाभिनंदी - निन्दा (साधु) २.५८६ अ ।
भवायु आयु १.२५३ ।
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