Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 180
________________ भगवती आराधना भरतक्षेत्र भगवती आराधना-३ २०४ ब, अमितगति ११३२ अ, भद्रशालवन-३२०६ अ, चत्य-चैत्यालय २.३०३ अ. __इतिहास १३४० अ। सुमेरु का वनखण्ड-निर्देश ३ ४५० अ, विस्तार भगवती आराधना टीका-आशाधर १.२८१ अ। ३४८८, अंकन ३४४४ के सामने, ३ ४५७, ३ ४६४ भगवतीदास-३२०५ अ, इतिहास १.३३४ अ, १.३४७ के सामने, चित्र ३ ४४६ । ब। भद्रसंघ-दि० सघ १३१७ ब । भगवान् -केवली २१५८ ब, परमात्मा ३२० ब। भद्रसेन-काष्ठा सघ १३२७ अ। भगीरथ-३२०५ अ। भद्रांभोजा-बलदेव ४.१७ ब । भग्नघट श्रोता-उपदेश १.४२५ ब । भद्रा-३२०६ अ चक्रवर्ती ४.११ व, रुचकवर पर्वत की भट्ट अकलंक-१३१ अ, ३.२०५ अ, इतिहास १.३३४ अ, दिक्कुमारी ३४७६, अक ३४६८-४६६, वाचना १३४१ ब, १३४७ ब। ३५३१ ब, विद्याधरवश १३३६ अ, व्यन्तरेन्द्र गणिका भट्ट चार्वाक-जीव २.३३६ ब । ३६११ ब। भट्ट प्रभाकर-मीमासक एकाती १.४६५ ब । भद्राश्व-३२०६ अ, विद्याधर नगरी ३५४६ अ। भट्ट भास्कर-३२०५ अ । भद्रासन - पाण्डुकशिला पर स्थित-निर्देश ३ ४५२ अ, भट्ट वोसरि-इतिहास १.३३० ब, १.३४२ ब । विस्तार ३४८४, चित्र ३४५२ अ। भट्टाकलंक -१.३३४ अ । देखिए भट्टअकलक। भद्रिल-तीर्थकर शीतलनाथ २३७६ । भट्टारक-३.२०५ अ । भय-३२०६ अ, अतिचार १४४ अ, काय २ ३५ ब, भवत-३.२०५ अ, अनगार १.६२ अ । २.३६ अ, नि शकित २५८६ ब, विनय ३.५५३ ब, भदेय-मनुष्यलोक ३ २७५ ब । सज्ञा ४१२० ब, सत्य ४ २७२ अ, हिंसा ४५३३ ब । भद्र-३२०५ अ, इक्ष्वाकुवश १३३५ अ, नन्दीश्वर सागर भय दोष-व्युत्सर्ग दोष ३.६२२ ब। का रक्षक देव ३ ६१४, बलदेव ४.१६ अ, ४.१७ अ, भयद्विक्-१३७४ ब । ४१८, मनुष्यलोक ३२७५ ब। रुचकवर पर्वत का भय प्रकृति--प्ररूपणा–प्रकृति ३.८८, ३.३४१, स्थिति कूट -निर्देश ३४७६ अ, विस्तार ३४८७, अकन सत्त्वस्थानो का अल्पबहुव १.१६५ ब, अनुभाग १६४, ३.४६६ । हरिवश १.३४० अ। प्रदेश ३ १३६ । बन्ध ३६७, बन्धस्थान ३ १०९, भद्रक-३२०५ अ, यक्ष ३.३६६अ। उदय १.३७५, उदयस्थान १.३८४ ब, उदीरणा भद्रकाली-३२०५ अ, विद्या ३५४४ अ। १४११ अ, उदीरणास्थान १४१२, सस्व ४२७८, भद्रपुर-३ २०५ अ, तीर्थंकर शीतलनाथ २ ३७६, मनुष्य- सत्त्वस्थान ४.२६५, त्रिसयोगी भग १४०१ब। लोक ३२७६ अ. सक्रमण ४८५ अ, अल्पबहुत्व १.१६८ ब। भद्रबल-गणधर २२१३ अ। भय विनय-विनय ३५४८ ब । भद्रबाहु-३२०५ अ । प्रथम-मलसंघ १.३१६, भय वेदनीय मोहनीय ३ ३४४ ब। १ परि०/२१,२,७, नन्दिसघ १. परि०/४.२, काल भय संज्ञा-सज्ञा ४.१२० ब, ४१२१ अ । विचार १. परि०/२-३ । इतिहास १.३२८ अ, __ भयानक वन-वसतिका ३.५२८ अ। श्वेताम्बर ४७७ अ, ४.७८ अ । द्वितीय-मूलसघ भरणी नक्षत्र २५०४ ब ।। १.३१६, १ परि०/२१,२,३,७, नन्दिसंघ १३२३ भरत-३२०६ ब, इक्ष्वाकुवश १३३५ अ, (विशेष दे अ। इतिहास १३२८ अ, श्वेताम्बर ४.७७ अ, ४.७८ भरत चक्री) भावि शलाकापुरुष ४२५ अ, यदुवंश १.३३७, रघुवश १३३८ अ। भद्रबाहु गणी--३.२०५ ब । भरतक्षेत्र-३.२०७ अ। निर्देश ३४४६ अ, विस्तार भद्रबाहुचरित-३२०५ ब, इतिहास १३४६ ब । ३४७६, ३४८०, ३४८१, अंकन ३.४४४ के सामने, भद्रमित्र-३.२०५ब। ३४६४ के सामने, चित्र ३.४४७ । अवगाहना भद्रमुख-चक्रवर्ती ४.१३ अ, ४.१५ अ। १.१८०, आयु (तिर्यच) १.२६३, आयु (मनुष्य) भद्रलपुर-३.२०५ ब, मनुष्यलोक ३.२७६अ। १२६४, कर्मभूमि ३.२३५ ब, कालविभाग २.६२ अ, भनवती-चक्रवर्ती ४.११ब २.६३ । आधुनिक भूगोल ३.४३६ अ, ३.४३७ अ, अ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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