Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
बलीद्र
१६६
बादर स्कंध
बलौद्र-३१८१ ब, प्रतिनारायण ४.२० अ ।
बा-बादर की सहनानी २२१९ अ । बल्लभ संप्रदाय--वैष्णव ३६०६अ।
बाकी-३ १८२ ब। बल्लभीपुर- श्वेताम्बर ४.७७ अ।
बागड़गच्छ-एकात (जैनाभासी सघ) १४६५ अ, काष्ठा बल्लाकदेव-३ १८१ ब ।
सघ १३२१ ब, १३२२ अ । बसंततिलक-इक्ष्वाक १३३५ ब ।
वाण-३१८२ ब। बहल-३ १८१ब।
बाणभट्ट-३ १८२ ब ।' बहिरगछेद-अहिंसा १.२१६ ब, छेद २३०६ ब, हिसा
बाणमुक्त-मनुष्यलोक ३ २७५ अ । ४५३३ ब।
बाणा--३ १८२ ब । मनुष्यलोक ३ २७६ अ । बहिरंग धर्मध्यान-नरक २४७८ ब ।
बादर - सहनानी २२१६ अ। बहिरंग शुद्धि- परिग्रह ३ २६ अ।
बादर आलोचना-आलोचना १२७७ ब । बहिरंग हिंसा-४.५३६ अ।।
बादर कषाय-गुणस्थान २२४६ ब । बहिरात्मा-३१८१ ब, अन्तरात्मा १२७ अ, आत्मा बादर-कायिक जीव-अवगाहना (सूक्ष्म) ४ ४३६ ब, आयु १२४४ ब, गुरु २२५२ अ, जीव २३३३ ब, भव्य
१२६४, काय २.४४, जीव २३३३ ब, जीवसमास ३ २१३ अ, मिथ्यादष्टि ३३०५ ब, ३३०६ अ,
२ ३४३। सूक्ष्म ४४३६ अ-ब । प्ररूपणा - बन्ध शक्ति-व्यक्ति ३ २१३ अ, सम्यग्ज्ञान २.२६७ ब ।
३१०४, बन्धस्थान ३ ११३, उदय १३३६ उदयबहिचित्प्रकाश-दर्शन २४०६ ब ।
स्थान १३९२ ब, उदीरणा १४११ अ, सत्त्व ४२८२, बहिर्मखचित्प्रकाश-दर्शन २.४०७ अ।
सत्त्वस्थान ४ २६६, ४ ३०५, त्रिस योगी भग १४०६ बहिर्यान क्रिया-मन्त्र ३२४७ अ, सस्कार ४१५१ अ,
ब । सत ४२०१-२०६, सख्या ४.१०१, क्षेत्र २२०१, सूतक ४४४२ ब ।। बहिस्तत्त्व - तरव २३५३ ब ।
स्पर्श न ४४८४, काल २१०६, अन्तर ११२, भाव
३ २२० ब, अल्पबहुत्व ११४६ । बहु-३ १८२ अ, मतिज्ञान ३ २५४ ब । बहुकेतु --३ १८२ अ, विद्याधर नगरी ३५४५ अ।
बादरकष्टि -२१४० ब । बहजन आलोचना--आलोचना १२७७ ब ।
बादर क्षेत्रफन- गणित २२३२ ब । बहुजन-पृच्छा आलोचना--आलोचना १.२७७ ब । बादर दोष-आहार १२६० ब, उद्दिष्ट १.४१३ अ । बहुजन ससक्त प्रदेश-भिक्षा ३२३१ अ।
बादर नामकर्म प्रकृति-सूक्ष्म ४४४० ब। प्ररूपणाबहुपुत्रा-व्यन्तरेद्र वल्लभिका ३६११ ब ।
प्रकृति ३८८, २५८३, ४४४० ब, स्थिति ४४६६, बहुप्रदेशी-काय २४४ अ।
अनुभाग १६५, प्रदेश ३ १३६, बन्ध ३६७, ब धबहु मतिज्ञानावरण-ऋद्धि १४४६ ब ।
स्थान १११०, उदय १३७५, उदयस्थान १३६०, बहुमान-३ १८२ अ।
उदीरणा १४११ अ, उदीरणास्थान १४१२, सत्त्व बहमख-विद्याधर नगरी ३.५४५ अ ।
४२७८, सत्त्वस्थान ४ ३०३, त्रिसंयोगी भग १४०४, बहुमखी - ३१८२ अ ।
सक्रमण ४ ८५ अ, अल्पबदुत्व ११६७ अ। बहरूपा-व्यन्तरेद्र वल्लभिका ३६११ ब ।
बादर-निगोद-वनस्पति ३५०५,३५०८। , बहरूपिणी-३१८२ अ, तीर्थकर नमिनाथ २.३७६ । बादर-निगोद-वर्गणा-बनस्पति ३.५०५ ब वर्गणा बहुल-रत्नप्रभा ३ ३६१ अ ।
३५१३ अ, ३५१५-३५१८ । बहुलप्रमतीर्थकर २३७७ ।
बावर परिधि -गणित २२३२ ब । बहुवज्रा-३१८२ अ, मनुष्यलोक ३.२७५ ब।
बादर-प्राभृत दोष-~~आहार १२६० ब । बहुविध-३.१८२ अ, मतिज्ञान ३ २५४ ब ।
बादर-वनस्पति-वनस्पति ३५०४। बहुविध मतिज्ञानावरण-ऋद्धि १४४६ ब।
बावर-बादर-स्कंध-स्कन्ध ४४४६ ब । बहुश्रुत-३१८२ ब, सस्कार ४१५० अ ।
बादर युग्मराशि-ओज १४६६ ब। बहुश्रुत भक्ति-भक्ति ३१६८ ब।
बादर सांपराय-अनिवृत्तिकरण १६७ ब । बहूदक-वेदान्त ३ ५६५ ब ।
वादर सांपरायिक बंधक बन्धक ३ १७६ अ । बांस-तीर्थकर नेमिनाथ २.३८३ ।
बादर स्कंध-स्कंध ४,४४६ब।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307