Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पूर्णक
१५६
पृथिवीकाय व्यन्तरेद्र-निर्देश ३६११ अ, परिवार ३.६११ ब, पूर्वांग---३ ८३ अ, काल-प्रमाण २ २१६ अ, २२१७ अ । संख्या ३६११ अ, आयु १२६४ ब ।
पूर्वातिपूर्व-श्रुतज्ञान ४६० अ । पांक-३८३ अ।
पूर्वानुपूर्वी - आनुपूर्वी १२४६ व । पणिमा--३८३ अ, उत्पत्ति का कारण चन्द्रमा की गति
पूर्वापर अविरोध--आगम १२३६ अ । २३५१ अ, लवणसागर मे जवार ३४६० ब ।
पूर्वापर विरोध-अ गम १२३७ अ । पूर्व-३ ८३ अ, कालप्रमाण २ २१६ अ, २२१७ अ,
पूर्वापर सबंध-आगम १२३० ब, सम्बन्ध ४१२६ अ । श्रुतज्ञान ४६० अ,४६४ ब ।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र २५०४ ब । पूर्वकृष्टि-कृष्टि २ १४१ अ।
पूर्वाभाद्रपद-३८३ अ, तीर्थकर २३८१, नक्षत्र २५०४ पूर्वक्षण उपादान कारण २.५५ अ। पूर्वगत -३८३ अ, श्रुतज्ञान ४.६७ ब ।
पूर्वाभिमुख-कृतिकर्म २.१३६ ब, केवल २१६७ अ-ब, पूर्ववर हेतु-कारण-कार्य २५६ ब ।
व्युत्सर्ग ३ ६२० ब, सल्लेखना ४३८६ ब, सामायिक पूर्व-जिनचैत्य-क्रिया-कृतिकर्म २१३८ ब ।
४४१६ ब । पर्वतालका-तीर्थकर ऋषभदेव २.३८४ ।
पूर्वाषाढ-३८३ अ, तीर्थकर शीतलनाथ २.३८०, नक्षत्र पूर्वदत्ता-तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ २ ३८८ ।
२५०४ ब । पूर्वदिशा--३८३ अ, कृतिकर्म २१३६ ब, केवली २.१६७
पूषमाडी-३८३ अ। अ-ब, दिशा २४३४ अ, व्युत्सर्ग ३६२० ब, सलोखना
पूषा-नक्षत्र (अधिपति देव) २५०४ ब। ४३८६ ब, सामायिक ४४१६ ब।
पृच्छना-३८३ अ, उपयोग १४२६ ब। पूर्वधर- तीर्थंकरो के सघ मे २ ३८६, मूलसघ १३१६ ।
पृच्छा-सल्लेखना ४३६० ब । पूर्वपर्याय-त्याग-उत्पादादि १३५७ ब ।
पृच्छा विधि-३ ८३ ब, श्रुतज्ञान ४६० अ। पर्वप्रज्ञापन नय नय २ ५२१ ब, २.५२२ अ ।
पृतना-३८३ ब, सेना ४ ४४४ अ । पूर्वभाव-प्रज्ञापन नय - नय २५२१ ब, २.५२२ अ ।
पृथक्त्व-३८३ ब, शुल्कध्यान ४३३ ब । पर्वमीमांसा-दर्शन २४०२ ब, मीमासा दर्शन ३३११
पृथक्त्वविक्रिया-वक्रियिक ३६०२ अ।
पृथक्त्ववितर्क-शुत्कघ्यान (प्रतिपाती) ४३५ ब । बमख-कृतिकर्म २१३६ ब, केवली २.१६७ अ-ब, पथक्त्व-वितर्क-वीचार-उपयोग १४३१ अ, १.४३२ अ, व्युत्सर्ग ३६२० ब, सल्लेखना ४३८६ ब, सामायिक
कालावधि का अल्पबहुत्व ११६१ अ,धमंध्यान २४८३ ४४१६ ब ।
अ, शुक्लध्यान ४३३ अ, ४३६ अ। पूर्ववत अनुमान-अनुमान १६७ ब ।
पृथक्त्व व्यवहार-नय २५५८ ब । पूर्वविद्-3 ८३ अ, तीर्थ करो के सघ मे २ ३८६ । मूलसघ
पृथिवी-३.८३ ब, (गुण) ३.६८ अ, जीव २३३३ ब, १३१७ ।
पुद्गल ३६८ अ, स्थावर ४४५४ ब, स्वप्न (पथिवी पूर्वविदेह-३८३ अ, विदेहक्षेत्र का पूर्व भाग--निर्देश ग्रसन) ४५०४ ब ।
३ ४४६ ब. १६ क्षेत्र निर्देश ३ ४६० अ, ३ ४७० ब, पृथिवी (नरक)-३.८३ ब, अष्टम पृथिवी १५७६ ब, विस्तार ३४७६, ३४८०, ३४८१, अकन ३ ४४४,
कलकल २५७६ ब । नेरक-निर्देश २५७६ अ, ३ ४६४ (वित्र स ३७)।
पटल निर्देश २५७६, विस्तार २५७६, २.५७८, पूर्वविदेह (कूट)-निषध पर्वत-निर्देश ३४७२ अ, अकन
अकन ३.४४१ । वातवलयो के साथ स्पर्श २.५७६ ब । ३४४४, गजदन्त पर्वत-निर्देश ३४७२ ब, अकन
पृथिवी (नाम)-रुचकवर पर्वत की दिक्कुमारी-निर्देश ३ ४४४ (चित्र स. १३)।
३४७६ अ, अंकन ३ ४६८,३४६६ । नारायण ४१५ पूर्वसमास-श्रुतज्ञान ४.६४ ब । पर्वस्तति-३८३ अ, आहार का दोष १२६१ अ, पथिवी अलीक-सत्य ४.२७३ ब । वसति का का दोष ३.५२६ ब।
पथिवीकाय-३८४ अ । प्ररूपणा-बन्ध ३१०४, बन्धपूर्वस्थिति-उपशम १४३८ ब।
स्थान ३११३. उदय १ ३७६. उदयस्थान १३६२ पूर्वस्वर्षक-कृष्टि २.१४० ब, २.१४१ ब, सूक्ष्मसाम्पराय ब, उदीरणा १.४११ अ, सत्त्व ४२८२, सत्त्वस्थान ४४४१ ब, स्पर्धक ४.४७३।
४.२६६, ४.३०५ त्रिसयोगी भग १.४०६ ब । सत्
अ।
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