Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 158
________________ पावापुरी पुडरीकिनी (देवी तथा वापी): पावापुरी-वर्द्धमान तीर्थंकर २३८५। पिशाच देव-प्ररूपणा -बन्ध ३ १०२, बन्धस्थान ३ ११३, पाविल-तीर्थंकर २ ३७७ । उदय १३७८, उदयस्थान १.३९२ ब, उदोरणा पाषाण-रत्नप्रभा (१६वी पृथिवी) ३.३६१ अ, श्रोता १.४११ अ, मत्त्व ४.२८२, सत्त्वस्थान ४.२६८, ४७४ ब । ४३०५, त्रिसयोगी भग १४०६ ब। सत् ४.१८८, पासणाहचरिउ-इतिहास १.३३१ अ-ब, १३३३ अ, सख्या ४६७, क्षेत्र २ १६६, स्पर्शन ४.४८१, काल १३४६ अ। २१०४, अन्तर १.१०, भाव ३ २२० अ, अलबहुत्व पासपुराण-इतिहास १.३४६ अ। ११४५। पाहुड-३ ५७ अ, इतिहास १३४० ब । पिशुलि-३ ५६ ॥ कुदकुद २.१२८ अ, प्राभूत ३ १५६ ब । पिण्टाक-स्वर्ग पटल-निर्देश ४ ५१७, विस्तार ४.५१७, पाहुडदोहा- इतिहास १.३३३ अ, १३४६ ब । अंकन ४५१६ ब । देव आयु १.२६७ । पाहुडिक-३ ५७ अ, पुत्सर्ग दोष ३ ५२८ ब। पिहित दोष-३५६ अ, आहार १.२६१ ब, वसतिका पिंगल-३ ५७ अ, चक्रवर्ती ४१४ ब, यदुवंश १३३७ । ३५२६ ब । पिंगल (शास्त्र)--इतिहास १३४७ अ। पिहितास्रव-३.५६ अ, पद्पप्रभ सुपार्श्वनाथ २ ३७८ । पिंजरा-३ ५७ अ। पीछी (पिच्छिका)-३ ५८ अ, अयालन्दचारित्र १४६, पिंड-३.५७ ब। अधिकरण १.४६ ब, अपवादमार्ग ११२२ ब, क्षुल्लक पिंडपद भंग-भग ३ १९७ अ। (वस्त्र की) २१८८ ब, विहार ३ ५७४ ब । समिति पिंडप्रकृति -नामकर्म २५८४ अ। ४३३६ ब, ४ ३४० अ, ४३४१ अ-ब, ४.३४२ अ, पिंडशुद्धि--आहार १२८७ अ, १२८६ अ। सल्लेखना ४.३६२ अ, ४ ३६७ अ। पिंडस्थ-ध्यान-३ ५७ ब । पोठ-३५६ अ, कृतिकर्म २.१३५ ब, चक्रवर्ती ४.१० अ, पिच्छ –सल्लेखना ४.३६२ अ । यदुवश १.३३७, रुद्र ४२२ अ, शान्तिनाथ का रुद्र पिच्छिका-३ ५८ अ, अथालन्दचारित्र १४६ अ, अधि- २.३६१। करण १४६ ब, अपवादमार्ग ११२२ ब, क्षुल्लक पीठयत्र-३ ३५५ । (वस्त्र की) २१८८ब, विहार ३.५७४ ब । समिति पीतलेश्या-निर्देश ३४२३ ब, प्ररूपणा-बन्ध३१०७ ४ ३३६ ब, ४३४० अ, ४ ३४१ अ-ब, ४.३४२ अ, आयु बन्ध १२५६ अ, बन्धस्थान ३११३, उदय सल्लेख ना ४ ३६२ अ, ४ ३६७ अ । १३८४, उदयस्थान १ ३६३ ब, सत्त्व ४.२८४ सत्त्वपिच्छिका निक्षेप-अधिकरण १.४६ ब, समिति ४ ३४०अ । स्थान ४ ३०१, ४३०६, त्रिसंयोगी भंग १४०७ ब । पिटारे-तीर्थंकर देव के वस्त्राभरण वाले-सुधर्म सभा सत ४ २४६,सख्या ४.१०८, क्षेत्र २ २०५, स्पर्शन ४.४४५ ब, स्वर्ग ४.५२१ अ। ४४६०, काल २.११५, अन्तर ११८, भाव ३ २२१ पिठरपाक-३५८ ब, वैशेषिक दर्शन ३.६०८ ब। ब, अल्पबहुत्व ११५१ । पिता-मघा नक्षत्र २५०४ ब । पीपल-तीर्थकर अनन्तनाथ २३८३, भक्ष्याभक्ष्य ३.२०३ पितकायिक-३.५८ ब, आकाशोपपन्न देव २.४४५ ब । पितृघाती कुल-मगध वंश १ ३१० ब ।। पोलुपाक-वैशेषिक दर्शन ३.६०८ ब । पित्त--३५८ ब, औदारिक शरीर १४७२ अ । पुंजस्थल-इक्ष्वाकुवंश १ ३३५ ब । पिपासा -३५८ ब, क्षुधा २.१८७ ब, परिषह ३ ३३ ब, पुंडरीक-३५६ अ, तीर्थकर २३६१, तीर्थकर विमलनाथ ३३४ अ। का रुद्र २३६१, पुष्करार्ध का रक्षक देव ३.६१४, पिलखन फल-भक्ष्याभक्ष्य ३.२०३ ब। रुद्र ४२२ अ, विद्याधर नगरी ३.५४५ अ, श्रतज्ञान पिशाच-३.५८ ब, व्युत्सर्ग ३ ६२२ अ। ४.६१ ब, संख्या का प्रमाण २.२१४ ब। हृद-निर्देश पिशाच देव --३ ५८ ब । निर्देश ३ ६१० ब, अवगाहना ३५९ अ, ३.४४६ ब, ३४५३ ब, विस्तार ३४९० १.१८०, अवधिज्ञान १.१९८ ब, आयु १.२६४ ब । ३४६१, अंकन ३४४४ (चित्र सं. १३), ३.४६४ इन्द्र-निर्देश ३ ६११ अ, शक्ति आदि ३.६१०-६११, (चित्र सं. ३७), चित्र ३४५४ । वर्ण व चैत्यवृक्ष ३६११ अ, अवस्थान ३६१२- पुंडरीकिनी (देवी तथा वापी)-३ ५६ अ, नन्दीश्वर द्वीप ६१४। की वापी-निर्देश ३.४६३, नामनिर्देश ३.४७५ ब, kumadain hushal Taitadiutke. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307