Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 122
________________ देवकुरु ब, ३.४६२ व ३४६३ अ विस्तार ३४७६, ३४८०, ३४०१, गणना ३४४५ अ, अंकन ३ ४४४ के सामने, ३४६४ के सामने (चित्र २७) चित्र ३४५७ उत्तम भोगभूमि-निर्देश ३२३५ ब, अवगाहना ११८०, आयु तिच १२६३, आयुमनुष्य १ २६४, काल विभाग २२ व सुषमा- सुषमा काल २९३ । देवकुरु ( ब्रहकूट आदि) देवकुरु का द्रह - निर्देश ३ ४५६ ब, नामनिर्देश ३४७४ अ, विस्तार ३४६०, ३ ४६१, अंकन ३४४४ के सामने, ३४५७, ३४६४ सामने । गजदन्त के कूट तथा देव-निर्देश ३ ४७२ के ब, ३४७३ अ, विस्तार ३४८३ अंकन ३४४४, ३४५७ । - - देवकूट - २४४९ व । देवगति ( देवसामान्य ) - २.४४५ अ, अकालमृत्यु ३२८४ अ, अनीक १६८ व अवगाहना ११५० अ अवधिज्ञान ११६४ अ, ११६८, अवर्णवाद १.२०१ अ, १२१० व आत्मरक्ष १.२४३ व आयु १२६५, आयुबन्ध १२६२ अ, आयु का अपकर्ष काल १२५६ ब. उद्योत प्रकृति १३७३ ब कषाय २३८ अ कषाय की कालावधि का अल्पबहुत्व ११६१. कल्याणक २३२ ब. काल (केवल सुषमा-सुषमा) २६३, गति अगति ( मर कर कहाँ जन्मे ) २३२२ अ जीव २३३३ ब, दुख २४३५ अ, पंचकल्याणक २३२ ब ब्राह्मण ३ १६५ अ, मरण ३ २८४ अ, लिंग ३५८७ अ, लेश्या (द्रव्य) ३४२५ ब, लेश्या (भाव) ३.४२८ व लोकपाल ३४९१ अ वनस्पति ३५०६ अ, वेदभाव ३५८७ अवैक्रिषिक ३६०२ व सम्यग्दर्शन ४३५६ अ । देवगति (निकाय) विषय कोशखण्ड सं० खण्ड ३ निर्देश भेद शक्ति आदि निवास विमान अवगाहना आयु इन्द्र निर्देश परिवार देवियाँ भवनवासी व्यन्तर Jain Education International खण्ड २ २०७ व ६१० ब २०८ अ 37 २०५ व ६१०-६११ [२०६ ६१३ ૪૨] ११८० ११८० १.२६५ | १२६४ २०८६११ अ २१० २०६ अ ६११ ब ३४५ व ५१० अ ५१० व ५११ 23 [६१२ अ ३४६ व ५१४ ब ૪૪૨ " ११६ ज्योतिषी वैमानिक खण्ड २ 27 खण्ड ४ ५११ ब ११८० ११८० १२६६ १.२६६ ३४५ ब ५१० ब ३४६ अ ५१२ 77 31 देवगति (प्ररूपणा ) - बन्ध ३१०२, बन्धस्थान ३.११३, उदय १.३७८, उद्योतप्रकृति का उदय १३७३ ब देवभाव उदयस्थान १३९२ व उदीरणा १४११ अ सत्य ४.२८२, उद्वेलनायुक्त सरव ४२८२ सत्त्वस्थान ४२१८, ४.३०५, त्रिसंयोगी भग १४०६ व सत् ४१८५, संख्या ४.६७, क्षेत्र २.१६६, स्पर्शन ४४८१, काल २१०४, अन्तर १६, १.१० भाव ३.२२० अ अल्पबहुत्व ११४५ । देवगति नामकर्म - प्रकृति - प्ररूपणा - प्रकृति ३.८८, २.५८३, स्थिति ४४६२, अनुभाग १९५, प्रदेश ३ १२६ । बन्ध ३६७, बन्धस्थान ३१११, उदय १३७५, उद्योत प्रकृति का उदय १३७३ व उदयस्थान १.३९०, उदीरणा १.४११ अ, उदीरणास्थान १४१२, ४२७८, उद्वेलना युक्त सत्व ४.२८२, सत्त्वस्थान ४३०३, त्रिसयोगी भग १४०४ | सक्रमण ४.८५ अ अल्पबहुत्व ११६८१ देवगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामनिर्देश २.५८३ ब, लक्षण १.२४७ अ । प्रपणा दे० गति नामकर्म प्ररूपणा । - देवगर्भ - हरिवश १३४० अ ― देवचंद्र - २४४६ ब, मत्रवादी - देशीयगण १३२५, इतिहास १.३३१ व पण्डित आशाधर १२५० व देवचतुष्क - १.३७४ ब । देवच्छद – चैत्य - चैत्यालय २३०३ अ । देवजी – २४४६ ब । देवता - २४४९ व व्रत की साक्षी ३.६२६ अ, अग्नि १३५ ब । देवत्रिक - १३७४ ब । देवत्व - पथ कर्म १३५० व देवदत्त यदुवंश १२३७, हरिवंश १.३४० अ भट्टारक [इतिहास] १३३० व देवदास पार्श्वनाथ २३८३ । देवदेव - तीर्थकर २३७७ । देवद्विक १२७४ व । देवद्विज- ३१९५ अ । बेयनंव व १.३३७ । देवनंदि - २४४६ ब नन्दिसंघ १.३२३ अ, द्रविडसंघ १.३२० अ इतिहास १३२६ अ १.३२१ व देवपाल - २४४६ ब, तीर्थंकर २.३७७, भोजवंश १.३१० आ यदुवंश १३३७ ॥ , देवपुत्र - तीर्थंकर २३७७ । देवपूजा - शुभोपयोग १.४३४ ब (वि० दे० पूजा ) । देवभद्र भट्टारक १२८० व --- - । देवभवन - वेत्य चैत्यालय २ ३०३ ब । देवभाव - गणधर २२१२ ब । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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