Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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दिल
४.२८९, ४.२६६, त्रिसंयोगी भंग १४०० । सत् ४१५८, संख्या ४१०९, क्षेत्र २.२०६, स्पर्शन ४.४१२, काल २.११८, अन्तर १.४ ब अल्पबहुत्व १.१४३ ।
द्विदल - भक्ष्याभक्ष्य ३.२०३ ब ।
द्विपर्वा -- २.४६२ ब, विद्या ३.५४४ अ ।
हिपृष्ठ - २.४६२ व नारायण ४१८ अ, वासुपूज्यनाथ २. ३६१, भावि शलाकापुरुष ४२६ अ ।
द्विरवरथ इक्ष्वाकुवंश १.३३५ ब ।
हिरूप - धनधारा, घनावनधारा, वगंधारा २.२२१ अ द्विविस्तारात्मक – २ ४६२ ब । द्विशत षट्पंचाशत- उत्कृष्ट
असख्यातास ख्यात की सहनानी २ २११ अ जधन्य परीतानन्त को सहनानी २. २११ अ वराशि की सहनानी २.२१९ अ । द्विसंधान महाकाव्य – इतिहास १.३४२ अ ।
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द्विस्थानीय अनुभाग १.९१ व
इंद्रिय जाति नामकर्म-प्ररूपणा - प्रकृति ३६८२.५८३, स्थिति ४.४६३, अनुभाग १.९५, प्रदेश ३१३६, बन्ध ३.१७, बन्धस्थान ३११०, उदय १.३७५, उदवस्थान १.३१०, उदीरणा १.४११ अ उदीरणास्थान १.४१२, सरव ४.२७८, सत्त्वस्थान ४३०३, त्रिसंयोगी भग १४०६ । सङ्क्रमण ४.८४ व अल्पबहुत्व १.१६८ ।
द्वींद्रिय जीव - अवगाहना १.१७६, आयु १.२६३, १.२६४, इन्द्रिय १३०६ व जीव २.३३३ व जीवसमास २.३४३, नस २.३९८, प्राण ३१५४ अ, बसेश विशुद्धि स्थानों का अल्पबहुत्व १ १६० । प्ररूपणाबन्ध ३.१०३, बन्धस्थान ३.११३, उदय १.३७८, उदयस्थान १.३६२ ब, उदीरणा १.४११ अ, सत्त्व ४२८२, सरवस्थान ४.२९९, ४३०५, जिसयोगी भंग १४०६ व सत् ४१९५, संख्या ४९९, क्षेत्र २. २००, स्पर्शन ४४८३, काल २१०६, अन्तर १.११, भाव ३.२२० ब, अल्पबहुत्व ११४५ ।
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द्वीप- २.४६२ व कुरुवंश १.३३५ व गणित (परिधि, सूची, व्यास तथा क्षेत्रफल) २.२३३ व चक्रवर्ती का वैभव ४.१३ अ चातुर्थीपिक भूगोल ३.४३७ अ बलदेव का वैभव ४.१८ अ, बौद्धाभिमत ३.४३४ ब, वैदिकाभिमत ३.४३१ व
द्वीप जैनाभिमत द्वीप सागर-नामनिर्देश ३.४७० अ विस्तार ३.४७८, संख्या ३४४२ अ, संख्या ३४४२ अ अंकन ३.४४३ ।
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गंगा आदि कुण्डों मे स्थित निर्देश ३४५५ अ विस्तार ३४८४, वर्ण ३.४७७, अंकन ३४४७ । लवण सागर में स्थित -- निर्देश ३४६२ अ, विस्तार ३४७६, अंकन ३४६१ ।
द्वीपकुमार - २४६२ ब भवनवासी देव निर्देश ३२१० व नामनिर्देश ३२०६ अ अवगाहना ११८०, अवधिज्ञान १११८, अवस्थान ३२०१ व १६१२६१४, ३४७१, आयु १.२६५ । इन्द्र -- निर्देश ३ २०८ अ, शक्ति आदि ३२०० व परिवार ३२०९ अ । द्वीपकुमार प्ररूपणा वध ३.१०२, बंधस्थान ३११२, उदय १३७८, उदयस्थान १.३१२, उदीरणा १.४११, अ सत्व ४२८२ सस्वस्थान ४.२६८, ४३०५, त्रिसंयोगी भग १.४०६ व सत् ४.१८८, सख्या ४६७, क्षेत्र २ १९९, स्पर्शन ४४८१, काल २१०४ अन्तर १.१०, भाव ३२२० अ अल्पबहुत्व ११४५ द्वीपवाह राक्षसवश १३३८ अ । द्वीपसागरप्रज्ञप्ति २.४६२ ब श्रुतज्ञान ४६८ । दीपसिद्ध- अल्पबहुस्व ११५३ ।
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उद्याश्रय महाकाव्य
द्वीपायन - कुरुवंश १३३५ त्र, तीर्थंकर २३७७ । द्वेष - २४६२, अतीत द्वेष ३३१८ ब, अशुभोपयोग
१४३३ व उपयोग १४३३ अ प्रत्यय ३१२६५, कषाय २३९ अ त्याग ३.३१७व, मूर्त ३३१८ ब राग ३३९५ अ, ३.३९७ व विभाव ३५५८ व सत्व ४५२८, सम्यग्दृष्टि ४३५१ व हिसा १.२१६ अ, १.२१७ व ।
द्वेषिकी किया - हिंसा ४.५३२ अ ।
द्वेषोदय - सम्यग्दर्शन ४.३५१ ब । २४६२ अ द्रव्य २.४५० ब । इंतदर्शन - वेदान्त ३.५९६ अ
ईतनय अद्वैतनय १.४७ अ, नय २५२३ अ । द्वैतपक्ष द्रव्य २.४५८ अ । इतवाद वेदान्त ३५९९ अ । ईसाई वेदान्त ३.५९७ अ । इंतात नय अद्वैतनय १.४७ अ । द्वैताद्वैतवाद-वेदान्त ३५६८ ब ।
पायन - २.४६३ अ तीर्थंकर २.३७७ ।
इथ गुणहानि - उदय १.३७१, गणित २.२३१ व
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द्वयाश्रय घालय महाकाव्य
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२.४६३ व इतिहास १.३४४ अ
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