Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 149
________________ पदस्थ ध्यान १४३ पद्मप्रभ मल्लधारी देव पदस्थ ध्यान-३५ब । पद्मकीति-३.६ ब, नन्दि सघ १.३२३ ब, इतिहास पदानुसारी ऋद्धि-१४४८, १४४६ ब, गणधर २.२१२ १३३१ अ, १.३४२ ब, १ ३४३ ब। पद्मकूट-३६ ब, विदेह वक्षार गिरि-निर्देश ३४६० अ, पदार्थ -३ ८ अ, गुण २२४४ ब, द्रव्य २४६० अ, प्रमाण ___ नाम निर्देश ३.४७१ अ, विस्तार ३४८२, ३४८५, ३१४२ अ। ३.४८६, अंकन ३४४४ के सामने, ३४६४ के सामने, पदार्थ श्रद्धान-मिथ्यादर्शन ३३०० अ, मिथ्यादृष्टि चित्र ३.४६० अ, वर्ण ३ ४७७ । इस पर्वत का कूट ३३०२ ब, सम्यग्दर्शन ४३५६ अ। तथा देव ३४७२ ब। पदुम-सख्याप्रमाण २ २१४ ब । पद्मगंधा-वैमानिक गणिका ४५१४ अ । पद्धति--३ ८ अ, उपदेश १४२५ अ । पद्मगुल्म-३६व, शीतलनाथ २३७८ । पद्धतिटीका-इतिहास १.३४० ब । पद्मगुल्मा--सुमेरु के वनो की पुष्करिणी-निर्देश ३.४५३ पद्म--३ ६ ब, काल का प्रमाण २.२१६ अ, २२१७ अ, ब, नाम निर्देश ३ ४७४ अ, विस्तार ३४६०, ३४६१ कुरुवंश १३३५ ब, चक्रवर्ती ४.१० अ, ४१४ ब, अकन ३ ४५१, चित्र ३४५१।। तीर्थकर २३६१, तीर्थकर चन्द्रप्रभ व पुष्पदन्त पद्मदेव-३१० अ, कुरुवश १३३५ व । २३७८, बलदेव ४१६ अ, भावि शलाकापुरुष ४.२५ पद्मनंदि-३१० अ। प्रथम-नन्दिसघ १३२३ अ, अ, यदुवंश १३३७, रघुवश १३३८ अ । देशीयगण १३२४ ब, कुन्दकुन्द ३ १२७ ब, इतिहास पद्म (कट)--कुण्डलवर पर्वत का--निर्देश ३४७५ ब, १३२८ ब। द्वितीय-(आबिद्धकरण पद्मनन्दि)देशीय विस्तार ३४८७, अकन ३.४६७ । रुचकवर पर्वत गण १३२४ ब, १३२५, इतिहास १३३० अ। का-निर्देश ३ ४७३ अ, विस्तार ३.४८७, अकन तृतीय-काष्ठासघ १.३२७ अ, इतिहास १३३० ब । ३४६८-३४६६ । विद्युत्प्रभ गजदन्तका-निर्देश चतुर्थ-नन्दिसघ देशीयगण १३२५, इतिहास ३४७३ अ, विस्तार ३४८७, अक ३४६८, ३४६६ । १३३० ब, १३४२ ब । पचम-इतिहास १३३१ विद्युत्प्रभ गजदन्त का-निर्देश ३ ४७३ अ, विस्तार अ, १३४३ ब । अष्टम-(पद्मनन्दि लघ) नन्दिसघ ३.४८३, अंकन ३४४४ के सामने, ३ ४५७ । भट्टारक १.३२३ ब, इतिहास १३३२ ब । नवम्पद्म (क्षेत्र)-विदेह का क्षेत्र -निर्देश ३४६० अ, नाम नन्दिसघ भट्टारक १३२४ अ, इतिहास १३३२ ब, निर्देश ३४७० ब, विस्तार ३४७६, ३४८०, ३४८१, १३४५ ब । अकन ३ ४४४, ३४६४ के सामने, चित्र ३४६० अ। पद्मनंदि पंचविशतिका--३ १० ब, इतिहास १.३३१ अ, पन (देव)-त्रुण्डलवर के कूट का ३४७५ ब, नाभिगिरि १३४३ ब । का ३४७१ अ, पुष्करार्ध द्वीप का ३६१४ । पद्मनदि सैद्धांतिक-आबिद्धकरण पद्मनन्दि-देशीयगण पद्म (ब्रह-हिमवान पर्वत पर स्थित--निर्देश ३४४६ १३२५। ब, ३४५३ ब, विस्तार ३४६०, ३४६१, अकन पद्मनाभ (कवि)-३१० ब, इतिहास १.३३३ अ-ब, ३.४४४, ३ ४६४ के सामने, चित्र ३४५४ । १३४५ ब । पा (नाभिगिरि)-रम्यक क्षेत्र का निदश ३४५२ ब, पद्मनाभ-३१०ब, करुवरा १३३६ अ. चक्रवर्ती ४११ नाम निर्देश ३ ४७१ अ, विस्तार ३४८३, ३४८५ ब, चन्द्रप्रभ २३७८ ।। अकन ३४४४, ३ ४६४ के सामने चित्र ३४५२ ब, पद्मनाभचरित्र ३१० ब, इतिहास १३४६ ब । वर्ण ३४७७। पद्मनिभ--िद्याधरवश १३३६ अ । पद्य (स्वर्ण)-प्राणतेन्द्र का यान ४५११ ब। स्वर्ण- पद्मपाद -वेदान्त ३५६५ ब । पटल-निर्देश ४.५१७, विस्तार ४५१७, अकन पद्मपुख-भावि शलाकापूरुष ४२५ अ। ४ ५१६ ब, देवआयु १२६७ । पद्मपुंगव-भावि शलाकापुरुष ४ २५ अ । पग्रक-यदुवंश १.३३७ । पद्मपुराण -३१० ब, इतिहास १३३३ ब । पत्रकावती-विदेह का क्षेत्र-निर्देश ३ ४६० अ, नाम पद्मप्रभ -३ १० ब, तीर्थंकर २.३७८-३६१, भावि शलाका निर्देश ३ ४७० ब, विस्तार ३ ४७६, ३४८०-४८१, पुरुष ४ २५ अ। अकन ३४४४.३४६४ के सामने, चित्र ३४६० अ। पद्मप्रभ मलधारी देव-३.१० ब, इतिहाम १.३३१ब. विजयवान वक्षार का कूट तथा देव ३.४७२ब। १३४४ अ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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