Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 84
________________ गतिप्रायोग्यानुपूर्वी गिरिनदन १२६२ च । प्ररूपणा-प्रकृति ३८८, २५८३, गरुडेद्र-~-२ २३८ अ। स्थिति ४ ४६२, अनुभाग १६५, प्रदेश ३.१३६ । गषि - इतिहास १ ३३० अ, १३४२ अ, २६३६ व। बन्ध ३६५ अ, ३६७, बन्धस्थान ३ ११०, उदय गर्तपूर्ण वृत्ति -२ २३८ अ, भिक्षा ३ २२६ ब । १३७५, उदय की विशेषता १ ३७२ ब, १३७३ ब, गर्दतोय -२२३८ अ, लौकान्तिक ३४६३ ब । उदयस्थान १३८७, उदीरणा १४११ अ, उदीरणा गर्दनिल्ल २२३८ अ, शकवश १३१४ । स्थान १.४१२, सत्त्व ४२७८, सत्त्वस्थान ४ ३०३, गर्भ -२ २३८ ब, ब्रह्मचर्य ३ १६३ अ। त्रिसयोगी भग १४०४ । संक्रमण ४८५ अ, अल्प- गर्भकल्याणक-२१३६ अ, कल्याणक २३२ अ। बहुत्व ११६८ । गर्भगह ---भवनवासी देवो के भवनो मे ३२१० ब। गतिप्रायोग्यानपरू-१२४७ अ। गर्भज-जन्म २३१२ ब, २३१४, जीवसमास २३४३, गति-भ्रमण काल-इन्द्रियमार्गणा २६५ अ । तिथंच २३६७ मनुष्य अल्पवहुत्व ११४६ । गतिमार्गणा-२ २३४ अ, अवगाहना ११७८, ११८०, गर्भसंचार--४७६ ब । आयु १२६२ अ, कषाय २३८ अ,२४० अ, मार्गणता गर्भाधान किया-मन्त्र ३२४६ ब, संस्कार ४१५१। ४६० अ, मोक्ष ३ ३२७ ब, सिद्धो का अल्पबहुत्व गर्भान्वयक्रिया-सस्कार ४१५० ब। ११५३। गर्व-मानकषाय ३२६४ ब । गतिमार्गणा (प्ररूपणा)-बन्ध ३१००, बन्धस्थान गर्हण -२२३८ ब, सम्यग्दृष्टि ४३७८ ब। ३११३, उदय १३७६, उदयस्थान १३६२ ब, गौं-२२३८ ब, विषकुम्भ १४३४ अ, समिति ४४४२ उदीरणा १४११ अ, उदीरणास्थान १४१२. सत्त्व अ, सम्यग्दर्शन ४.३५१ अ। ४२८१, सत्त्वस्थान ४२६८, ४३०५, त्रिसयोगी गहित वचन-वचन ३ ४६७ ब । स्थान भग १४०६ ब, आयुकर्म विषयक त्रिसयोगी गलसेन -तीर्थकर २३६२ । स्थान १४०१। सत् ४१६५, सख्या ४६५, क्षेत्र गलितावशेष-२२३८ ब, गुणश्रेणीसक्रमण ४८६अ। २१६४,२१६७, स्पर्शन ४४७६, काल २८३ अ, गवेषणा-२२३८ ब, कहा १४४५ ब । २१०१, अन्तर १५, १८, भाव ३२२० अ, अल्प- गव्यति -२२३८ ब। बहुत्व ११४३ ब, भामाभाग ४११०। पचशरीर गांगेय-२२३८ ब, कुरुवश १३३६ अ। स्वामित्व ४७, इसका अल्पबहुत्व ११५६ । गांधर्व विवाह-३ १६१ ब। गदा-मनुष्यलोक ३२७५ ब । गांधार-२२३८ ब, मनुष्यलोक ३ २७५ अ, यदुवश गद्यकथाकोष-२३ ब, इतिहास १ ३४२ ब । १३३७, विद्याधर वश १३३६ अ, विद्या ३५४४ गद्यचिन्तामणि-२२३८ अ, इतिहास १३४१ ब । अ, स्वर ४५०८ ब। गमन-गति २ २३५ अ, चैत्य-चैत्यालय २३०२ व धर्म गाधार (कट)-शिखरी पर्वत का-निर्देश ३.४७२ ब, द्रव्य २४८६ अ, विग्रहगति १२४७ ब । विस्तार ३४८३, अंकन ३ ४४४ । गमनहेतुत्व-धर्म द्रव्य २४८८ ब । गांधारी--२ २३६ अ, विद्या ३.५४४ अ, विमलनाथ की गमनागमन तप-कायक्लेश २४७ अ। यक्षिणी २३७६, हरिवश १३४० अ । गया-बुद्ध गया (उरु बिल्ब) १४४५ ब ! गाय -श्रोता ४७४ ब । गरिमा-ऋद्धि१४४७, १४५१ अ गारव-२२३६ अ, विनय ३५५३ ब । गरिष्ठ रस-३३६३ अ। गारुड तत्त्व -२२३८ अ । गरुड-२२३८ अ, तीर्थकर शान्तिनाथ का यक्ष २ ३७९. गारुडी विद्या-२४६६ अ । ध्यान २४६६अ। सहस्रारेन्द्र तथा आनतेन्द्र का गाय-२२३६ अ,१३२ अ, अक्रियावादी १४६५ अ। यान ४५११ ब । सानत्कुमार स्वर्ग पटल-निर्देश गार्हपत्य- अग्नि १३५ ब । ४५१७, विस्तार ४५१७, अकन ४५१५, देवायू गिरि - यदुवश १३३७, हरिवंश १३३६ ब । १२६७ । गिरिकूट-२२३६ अ, मनुष्यलोक ३२७५ ब । गरुडध्वज-२२३८ अ, विद्याधर नगरी ३.५४५ अ। गिरिकूटक-चक्रवर्ती ४१५ अ। गरुडपंचमीव्रत-२.२३८ । गिरिनदन--वानरवश १ ३३८ ब । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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