Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 71
________________ ६५ किंपुरुष (यक्ष) कुंडल काल २१०४, अन्तर ११०, ३२२० अ, अल्पबहुत्व वंश ३ ३३८ ब। १.१४५। किष्किविल-२.१२५ ब, अंतकृत केवली १२ ब । किंपुरुष (यक्ष)--धर्मनाथ का यक्ष २.३७६ । किष्क -२.१२५ ब, क्षेत्र का प्रमाण २२१५ अ । वानरकिंपुरुष वर्ष-२१२५ अ, वैदिकाभिमत ३४३१ ब । वंश का निवास पर्वत १३३८ ब । किन्नर-व्यन्तर देव २.१२४ ब, २.१२५ अ, निर्देश किष्कपुर-वानरवंशी नगर १३३८ ब । ३६१० ब, अवगाहना ११८०, अवधिज्ञान ११९८ ब, कीचक-२१२५ ब। आयु १२६४ ब, इन्द्र-निर्देश ३६११ अ, संख्या कीचड-लोभ २३८ अ। ३.६११ अ, परिवार ३६११ ब, शवित आदि ३६१०- कीर्तन-नमस्कार २.५०६ अ, पूजा ३७५ । ६११, वर्ण व चैत्यवक्ष ३६११ अ, अवस्थान कीति-कुरुवश १३३५ ब, १३३६ अ, शुद्धि ४३६अ। ३६१२-६१४,३४७१। कीति (देवी)-२१२५ ब, नीलपर्वत ३४७२ अ, किन्नर (देव)-प्ररूपणा---बध ३१०२, बंधस्थान केसरीहद ३४५३ ब । अवस्थान ३ ६१४ अ, आयु ३ ११३, उदय १.३७८, उदयस्थान १३६२ ब, १२६५ ब, परिवार ३ ६१२ अ। उदीरणा १४११ अ, सत्व ४२८२, सत्त्वस्थान कीतिकूट-२१२५ ब ।। ४ २६८, ४.३०५, त्रिसयोगी भंग १.४०६ ब । सत् कीर्तिधर-२ १२५ ब, इतिहास १३४१ अ। इक्ष्वाकु४१८८, संख्या ४६७, क्षेत्र २ १६६, स्पर्शन ४.४८१, वश १३३५ ब । काल २१०४, अन्तर १.१०, भाव ३.२२० अ, अल्प- कीर्तिधवल -२ १२५ ब, राक्षसवश १३३८ब। बहुत्व १.१४५। कीतिध्वज-वानरवंश १३३८ ब । किन्नर (यक्ष)-२१२५ अ, अनन्तनाथ का यक्ष यक्ष कीतिमती-२.१२५ ब, रुचकवर पर्वत की दिक्कुमारी का २३७६। निर्देश ३ ४७६ अ, अकन ३ ४६६ । किन्नर क्रांत -३ ६१२ ब । कीर्तिमान -इक्ष्वाकुवंश १३३५ ब । किन्नर-किन्नर-२१२४ ब । कीर्तिवर्मा-२१२५ ब, इतिहास १३३१ अ। किन्नरगीत - २१२५ अ, विद्याधर नगरी ३ ५४५ अ । कीतिवीर्य-चक्रवर्ती ४११ ब । किन्नरप्रभ-किन्नर देवो का नगर ३ ६१२ ब । कीतिषेण या कीतिसेन-२१२५ ब, काष्ठा सघ १३२७ किन्नरमध्य - किन्नर देवो का नगर ३६१२ ब । अ, पुन्नाट संघ १३२७ अ, इतिहास १३२६ ब । किन्नरावर्त -किन्नर देवों का नगर ३ ६१२ ब। कीलकसंहनन नामकर्म प्रकृति--प्ररूपणा-प्रकृति ३८८, किन्नरोत्तम-२१२४ ब । २५८३ अ, स्थिति ४४६५, अनुभाग १६५, प्रदेश किन्नरोद्गीत-२१२५ अ। विद्याधर नगरी ३ ५४५ अ। ३१३६। बंध ३६७, बंधस्थान ३११०, उदय किन्नामित-२१२५ अ, विद्याधर नगरी ३ ५४५ अ । १३७५, उदयस्थान १३९०, उदीरणा १४११ अ, किरण-चन्द्र सूर्य आदि की २.३४८ व।। उदीरणास्थान १४१२, सत्त्व ४ २७८, सत्वस्थान किरणावली-वैशेषिक दर्शन का ग्रन्थ ३६०७ । ४.३०३, त्रिसयोगी मग १४०४१ सक्रमण ४८५ अ, किरमजी-लोभ २३८ अ । अल्पबहुत्व ११६८। किलकिल-२१२५ अ । विद्याधर नगरी २५४५ ब । कुंचित-२१२६ अ, व्युत्सर्ग का दोष ३६२३ अ । किल्विषक देव-२१२५ अ, आयु बध के योग्य परिणाम कुंजरावर्त-२१२६ अ, विद्याधर नगरी ३५४५ अ, १२५८ अ। ज्योतिष देव -निर्देश २ ३४६ अ, आयु हरिवंश १३४० अ। १२६४ व, भवनवासी-निर्देश २४४५ ब, आयु कुंड-२१२६ अ, अग्नि के तीन कुंड १३५ ब, शलाका १२६५ । वैमानिक-निर्देश २४४५ ब, आयु आदि तीन कुड १२०६ ब । गगा आदि नदियो के १.२६६, १.२७०, देवियाँ ४.५१३ । व्यन्तर-निर्देश कंड-निर्देश ३.४५५ अ, गणना ४४३ अ,विस्तार ३.६११ ब, आयु १.२६४ । ३.४६०, अंकन ३.४४४, तद्वर्ती द्वीप व कुट किल्विषी भावना-२.१२५ ब। ३.४५३ अ। किशनसिंह--इतिहास १.३३४ अ, १३४८ अ। कंडल-रुचकवर पर्वत का कूट-निर्देश ३.४७६ अ, किष्किघ्र २.१२५ ब, मनुष्यलोक ३.२७५ ब, बानर विस्तार ३.४६७, अंकन ३.४६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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