Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 60
________________ एज्ञानदेव (प्ररूपणा ) ४५१२-५१, उत्तरेन्द्र ४५२० व चिह्न आदि ४५११ व व भवन ४५२०-५२१ । १४६५ अ । ऐंद्रध्वज--- पूजा ३ ७४ अ । ऐद्रिय सुख ४४३० ब ऐंद्रिय सुख-सुख ४. ४३० ब । ऐतिह्य - १.४६० ऐरावत (क्षेत्र) उदय एशानदेव (प्ररूपणा ) -बंध ३.१०२, बवस्थान ३११३, १३७८, उदयम्थान १३९२ व उरणा १४११ अ, सत्व ४.२८२, सस्वस्थान ४.२६८, ४३०५, त्रिसंयोगी भग १४०६ ब । सत् ४१६२, संख्या ४६८, क्षेत्र २२०० स्पर्शन ४४८१, काल २ १०४, अन्तर ११०, भाव ३२२० अ. अल्पबहुत्व ११४५ । V एषणा - १४६७ व दोष (वसतिका) ३.५२९ व एवणाद्धि - १४६७ व आहार १२८५ ब भक्ति ३.१६६ अ । एषणासमिति -- १४६७ ब समिति ४३४१ अ । एसोसवत १.४६८ अ । एसोबत - १४६८ अ ऐद्रल-- १४५८ अ, वैनयिक ३६०५ अ विनयवादी ५४ ४५११ अ अवस्थान 2 विमान, नगर Jain Education International इतिहास १३०६ अ १.४६८ अ निर्देश ३४४६ अ विस्तार ३.४७६, ३.४८०, ३.४८१, अकन ३४४४, ३.४६४ के सामने, कर्मभूमि ३२३५ व काल विभाग २.१२ ब, अ, २१३, अवगाहना ११०० आयु १२६३२६४ | सत प्ररूपणा ४१८४ । ऐरावत ( ग्रह व कूट ) -- १४६८ अ, उत्तरकुरु का द्रह निर्देश ३४५६ ब, नाम ३४७४ अ. विस्तार ३४६०-४६१, अंकन ३४४४, ४५७, ४६४४ के सामने । कूट - पद्म आदि द्रह-निर्देश ३.४७४ अ, विस्तार ३४८३ अंकन ३.४५४ । शिखरी पर्वत का - निर्देश ३४६२ ब विस्तार ३४०३ अंकन ३४४४ | ऐरावत विजयार्ध का निर्देश ३४७१ व विस्तार ३४८२, अंकन ३.४४४ । ऐरावत (हाथी) - १.४६८ अ । ऐरावती - मनुष्यलोक ३.२७५ ब । ऐरेगित्तर गण -- द्रविडसंघ १३२० ब १.३२२ अ । ऐलक - १.४६८ व क्षुल्लक २.११० अ ऐसान विद्याधर नगरी ३५४५ व स्वग तथा उसकी प्ररूपणा दे० एशान । १.४६९, मब ३.२५१ म - ऐहिक फलानपेक्षा - १ ४६६ अ । ऐहिक सुख-सुख ४४३१ ब । ओं - ३७ अ ! ओली-पचमून २२६ ब ओघ १४६९ अ. अनुयोगद्वार ११०२ अ आदेश १२५६ अन्य आलोचना १४६१ व १२७६ ब प्ररूपणा अनुयोग द्वार ११०३ व प्रत्यय ३१२७६ प्रकृति ३६७, स्थिति ४४६०, अनुभाग १९५, प्रदेश ३ १३७ । बध ३६७, बधस्थान ३.१०८, उदय १३७५ उदयस्थान १३५ अ उदीरणा १४११ अ, उदीरणा स्थान १.४१२, सत्त्व ४२७८, सस्व स्थान ४२८७, त्रिसंयोगी भंग १३६६ -४०० । सत् ४१६१, संख्या ४१४, क्षेत्र २११७, स्पर्शन ४४७७, काल २६६, अन्तर १७, भाव ३२१६ ब, ३२२२ ब अल्पबहुत्व १.१४३, भागाभाग - --- ४ ११५ ॥ ओय्य देव आंदारिक काययोग इतिहास १३३२ अ 1 ओज-१४६२ व अनुयोगद्वार ११०२ व औदारिक शरीर १४७२ अ पद ११०२ व ओजाहार - १४६९ व आहार १२८५ अ आहारक ब, १.२६५ अ । For Private & Personal Use Only ओद्दारण १४६९ व । ओम् - ११०२ ब, १४६६ ब, पद ३४ अ । ओलगशाला - चैत्यवृक्ष ३५८० अ भवनवासी देवो के भवन ३२१० ब । ओलिक १४७० अ मनुष्यलोक ३ २७५ म । ओसण्ण मरण - मरण ३२८० अ । औंड्र - १४७० अ, मनुष्यलोक ३२७५ ब । औधिक - समाचार ४३३६ अ । औडलोमि – वेदान्त ३ ५६५ ३ । औत्पत्तिकी— ऋद्धि १४४६ १४५० अ-ब । औत्सनिक लिंग-३४१७ अ । 1 औदयिक अज्ञान १३७ अ, असिद्धत्व २२१८ ब, उदय १४०८ ब क्षयोपशम २१८४ अ, पौदगलिक ३३१८ व मिश्र सम्यक्त्व ३.३१० व, योग ३२७८ अ, वेदक सम्यक्त्व २१८३ व सन्निपातिक भाव ४.३१२ ब । औदारिक - १.४७० अ । औदारिक काययोग - १.४७२ अ, काययोग २४६ ब केवली समुद्धात २.१६७ ब । प्ररूपणा -- बध ३ १०४, बंधस्थान ३.११३, उदय १.३८०, उदयस्थान १.३९२ व उदीरणा १.४११ म उदीरणास्थान www.jainelibrary.org

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