Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 44
________________ आर्यन द आश्चर्य आर्यनंदि-१२७५ ब, पचस्तूप सघ १.३२६ ब, इतिहास १.३२६ ब। आयमंक्ष-१२७५ ब, मूलसघ १३३२ ब, १. परि०/ २-१, ३१-३ । इतिहास १.३२८ ब । आर्यवती-१२७५ ब, विद्या ३.५४४ अ । आर्यसेन--सेनसघ १.३२६ अ। आयिका-१.२७५ ब, उपवार १.४१६ अ, कल्की २३१ ब, गुरु २२५३ ब, तीर्थकर संघ २३८७, महाव्रत ३.५८६ ब, लिग ३.४१७ अ, वस्त्र १४० ब, सगति ४.११६ ब. साधु ४.१२० अ। आयिका संघ-कल्की २.३१ ब, तीर्थकर सघ २.३८८ । आर्षयज्ञ-३.३६६ ब । आर्ष वचन-आगम परम्परा १२३४ ब । आर्हन्त्य क्रिया-संस्कार ४.१५२ अ, ४.१५३ अ। आलब्ध-१.२७६ अ, व्युत्सर्ग दोष १.६२३ अ। आलय--१.२७६ अ। आलयांग-१२७६ अ, कल्पवृक्ष ३ ५७८ अ । आलाप-१.२७६ अ, अक्षसचार गणित .२२६ अ। आलापन बध-१.२७६ अ, नोकर्म बंध ३.१७० ब । आलाप पद्धति-१.२७६ अ, इतिहास १.३४२ ब । आलुच्छन-१.२७६ अ, आलोचना १२७६ ब । आलेखित-२.४६६ ब । आलेल्याकार-केवलज्ञान २ १४६ ब । आलेपन-१.२७६ ब, बध ३१७० अ। आलोक-१.२७६ ब। आलोकन वृत्ति-२.४०६ ब । आलोकितपान भोजन-अहिंसा १.२१६ अ, रात्रिभोजन ३.४०२ ब । आलोचन-आलोचना १.२७६ ब, दर्शन १४६ ब, २.४०६ ब । मालोचना-१२७६ ब, प्रतिक्रमण ३.११७ अ, प्रायश्चित ३१५६ ब, १६० ब, वन्दना ३.४६५ ब, शुद्धि ४.४१ अ, सल्लेखना ४.३६० ब, ४.३६१ ब । आवरण-१२७८ ब, ज्ञान २.२७२ ब । आवजित करण-१.२७८ ब । मावर्त-१.२७६ अ, कर्म २.२६ अ, कृतिकर्म २१३३ ब, २.१३४ ब, मनुष्यलोक ३.२७५ ब, राक्षसवश । १.३३८ अ, वदना ३.४६४ ब, सामायिक ४४१६ ब। मावर्तपुर--विद्याधर नगरी ३.५४५ अ । आया-विदेहस्थ क्षेत्र-निर्देश ३.४६० अ, नामनिर्देश ३.४७० ब, विस्तार ३.४७६, ३.४८०, ३.४८१, अकन ३.४४४, ३४६४ के सामने, चित्र ३.४६० अ। वक्षारगिरि का कट तथा देव-निर्देश ३.४७२ ब, विस्तार ३. ४८२-३.४८५-३.४८६, अकन ३.४४४। आवली-१.२७६ अ, अन्तमुहर्त १.३० अ, काल का प्रमाण २.२१६ अ, क्षेत्र का प्रमाण २.२१५ अ-ब, सहनानी २.२२० अ । राक्षसवश १.३३८ अ। आवश्यक-१२७६ ब, अध प्रवृत्तकरण २.११ अ, अनि वत्तिकरण २.१४ अ, अपूर्वकरण २.१२ ब, कृतिकर्म २.१३३ ब, गुणित कर्माशिक २१७७ अ, शुद्धि ४४० ब, श्रावक ४.५१ ब । आवश्यकापरिहाणि-१,२८० अ । आवास.....१२८० अ। भावन लोक ३.२१० अ, वनस्पति ३.५०६ ब, ३.५१० अ। व्यन्तरलोक--निर्देश ३६१२ अ, बनावट ३.६१२ ब, विस्तार ३.६१५ अ, संख्या ३.६१२ ब। आवासक-आवश्यक १२८० अ । आविद्धकरण-१.२८० ब, नन्दिसघ देशीयगण १.३२५ अ, पदमनन्दि १३३० अ, १३३१ अ, इतिहास १.३२६ ब। आविष्कार-१२८० ब । मावीचिका मरण-१२८० ब, मरण ३.२८० अ। तृष्णा ३ ३६५ ब, ३.३६६ ब, दासत्व ३.३६८ अ, निराकरण ३ ३६८ अ। रुचक पर्वत की दिक्कुमारी -निर्देश ३.४७६ अ, अकन ३ ४६८, ४६९ । आवृत्तकरण-१.२८० ब । आवृष्ट-१.२८० ब, मनुष्यलोक ३ २७५ अ । आशंसा-१.२८० ब । आशय औदारिक शरीर १४७२ । आशा -१.२८० ब, राग-गर्त ३.३९५ ब । आशाधर-१२८० ब, स्तोत्र ४४४६ ब, इतिहास १३३२ अ, १३४४ अ, १३४५ अ । आशिष-१२८१ अ। आशीर्वाद-१२८१ अ, नमस्कार २.५०६ ब । आशीविष (वक्षार)-१.२८१ अ, विदेहस्थ पर्वत-निर्देश ३ ४६० अ, नाम ३.४७१ अ, वर्ण ३.४७७, विस्तार ३.४८२, ३.४८५. ३.४८६, अंकन ३.४४४, ३ ४६४ के सामने । इस पर्वत का कूट तथा देव निर्देश ३.४७२ ब। आशीविष रसऋद्धि-१२८१ अ, ऋद्धि १.४४७, १४५५ ब। आश्चर्य-१.२८१ अ, पन आदि द्रहो के कूट-निर्देश ३ ४७४ अ, विस्तार ३.४८३, अकन ३.४५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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