________________ जैन इतिहास की उत्पत्ति एवं विकास जैन कवि हुए हैं। हेमचन्द्र ने “त्रिशष्ठिशलाकापुरुष चरित” की रचना की। इसके साथ ही न्याय, व्याकरण, काव्य कोष सभी विषयों पर ग्रंथ लिखे हैं। प्राकृत साहित्य अर्धमागधी प्राकृत के पेंतालीस आगम ग्रंथों के अतिरिक्त शौरसेनी प्राकृत आगम ग्रंथों में सर्वप्रथम भूतवलि एंव पुष्पदन्त ने “षटखण्डागम” नाम के सूत्र ग्रंथ की रचना प्राकृत भाषा में की। वि०सं० की द्वितीय शताब्दी में आचार्य गुणधर ने “कसायपाहुड" नाम का महत्वपूर्ण सिद्धान्त ग्रंथ प्राकृत गाथाओं में निबद्ध किया। इस पद्यमय कसायपाहुड की 233 गाथाओं में क्रोध,मान,माया एंव लोभ आदि कथाओं के स्वरुप का विवेचन किया गया है। प्राकृत पाहुडों की रचना सर्वप्रथम आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा पॉचवी शताब्दी के प्रारंभ में की गयी। कुन्दकुन्द की कुछ रचनाएँ - समयसार प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, दशभक्ति, अष्टपाहुड एंव वारसअणुवेकरवा अधिक प्रसिद्ध हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में एक प्राकृत "पंचसंग्रह 2 पाश्वैर्णि के शिष्य चन्दर्षि द्वारा रचित है। इसमें 633 गाधाएं हैं जो शतक सप्तति, कसायपाहुड, षठकर्म एंव कर्मप्रकृति नामक पॉच द्वारों में विभाजित हैं। ग्रंथ पर मलयगिरि की टीका भी उपलब्ध हैं। छठी शताब्दी में जिनभद्रगणीकृत "विशेषणवती में 400 गाथाएँ हैं। इन गाथाओं के द्वारा ज्ञान,दर्शन,जीव,अजीव, आदि नाना प्रकार से द्रव्य निरुपण किया गया है। सातवीं शताब्दी में जैन प्राकृत साहित्य में महापुरुषों के चरित्र को नवीन .. काव्य शैली में लिखने का प्रारम्भ विमलसूरि ने किया। जिस प्रकार संस्कृत में आदिकाव्य आदिकवि बाल्मीकि कृत रामायण माना जाता है। उसी प्रकार प्राकृत का आदिकाव्य भी विमलसूरिकृत-३ “पउमचरिय" है / इस काव्य के अन्त की प्रशस्ति में इसके कर्ता एंव रचनाकाल का निर्देश पाया जाता है। स्वयं कर्ता के अनुसार इसमें सात अधिकार हैं - स्थिति,वंशोत्पति,प्रस्थान,रण,लवकुश उत्पत्ति,निर्वाण एंव भव। ये अधिकार उद्देशों में विभाजित हैं जिसकी संख्या 118 हैं। प्रथम चौबीस उद्देशों में मुख्यतः विद्याधर एंव राक्षसवंशों का वर्णन हैं। ... "वसुदेवहिण्डी भी प्राकृत भाषा का पुराण है। इसमें महाभारत की कथा है यह दो खण्डों में विभाजित हैं। प्रथम खण्ड के रचयिता संधदासगणि एंव दूसरे के धर्मदासगणि हैं। प्रथम प्रकरण के पश्चात् "धम्मिलहिण्डी' नाम के प्रकरण से प्राचीन भारतीय संस्कृति का दिग्दर्शन होता है। इसका मुख्य विषय जैन पुराणों में समाहित