________________ 30 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास एंव प्रमाद से युक्त होकर कर्मो का आस्त्रव करता है और मिथ्यात्व अविरति आदि के कारण बन्ध में होता जाता है। जैन दर्शन में इस लोक को अनादिनिधन एंव अकृत्रिम बतलाया गया है जिसकी रचना का आधार षडद्रव्य है। मनुष्य का उत्थान एंव पतन स्वयं उसके हाथ में है अर्थात् आत्मा स्वयं कर्ता एंव भोक्ता है वह किसी परोक्ष शक्ति पर आश्रित नहीं है। वह कर्मो का क्षय करके निर्वाण प्राप्त करता है। जैन साधक मरण एंव रोगों से भयभीत न होकर सल्लेखना विधि से प्राण त्याग करते चरितकाव्यों में जैन इतिकास लेखकों ने दान,तप, शील एंव भावना शुद्धि को विशेष महत्व दिया हैं अहिंसा सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एंव अपरिग्रह महाव्रतों के द्वारा त्याग-संयम एंव सदाचार का उपदेश दिया है। जैन इतिहास लेखकों ने अपने धर्म का प्रचार करने के लिए वैदिक धर्म के कियाकाण्डीय दूषित पक्षों से जनसाधारण को अवगत कराया एंव धर्म की वैज्ञानिक व्याख्या की। जैनधर्म इसलिए वैज्ञानिक है कि यह वस्तु की जो स्वाभाविकता है उसे स्वयं प्राप्त कर दूसरों को प्राप्त करने का उपदेश देता है। इसे प्राप्त करने के लिए तदनुकूल चारित्रिक गुण का आचरण करना आवश्यक है। तीर्थकर महावीर के समय भारतीय संस्कृति वैदिक रीति नीति प्रधान थी | धर्ममार्ग वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति के आधार पर हिंसा प्रधान यज्ञों से कलुषित था। अतएव हिंसा प्रधान यज्ञों के स्थान पर आत्मिक, मानसिक एंव शारीरिक तप प्रधान सहिष्णुता एंव अहिंसा को सर्वोपरि सिद्धान्त के रुप में प्रतिष्ठित करने एंव उसे व्यावहारिक एंव कियात्मक रुप देने के लिए अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन.जैन तीर्थकरों एंव जैन साहित्यकारों द्वारा किया गया। इसके लिए जैन इतिहासकारों ने अनेक रूपों में साहित्य की रचना करके अपने धर्म के सिद्धान्तों को विस्तृत एंव स्थायी रुप दिया। त्रिशष्ठिशलाका-पुरुषों का चरित्र निरुपण एंव तत्सम्बन्धित राजवंशों का उल्लेख __ जैन परम्परा में जिनेन्द्रदेव द्वारा बारह प्रकार के पुराणों के उपदेश देने की जानकारी होती हैं इन बारह प्रकार के पुराणों के उपदेश से जिनवंशों एंव राजवंशों का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें अरिहन्त, चक्रवर्तियों, नारायण प्रतिनारायण, विधाधरों चारणों - प्रज्ञाश्रमणों एंव कुरुवंश हरिवंश, इक्ष्वाकुवंश, काश्यपवंश एंव नागवंश प्रमुख है। जिनवंश से अभिप्राय उन वंशों से है जिनमें जैन मुनियों ने जन्म लिया अर्थात् 1, अरिहन्त वंश 2, श्रमणों का वंश 3, प्रज्ञाश्रमणों का वंश।