Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

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Page 252
________________ 234 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास सिद्धान्तों को अपनाया गया। जैन संस्कृति के विकास में हिन्दू संस्कृति का पर्याप्त योगदान रहा। उदारवादी एंव समन्वयवादी प्रवृत्ति होने के कारण जैनधर्म में अनेक हिन्दू ऐतिहासिक तथ्यों का समावेश हुआ है। जैनपुराणों में हिन्दू पुराणों की परम्परा एंव वर्णित विषय को अपनाया गया है। रामायण एंव महाभारत के पात्रों के आधार पर चरितकाव्यों एंव पुराणों का निर्माण हुआ। पुराणों में वर्णित पात्रों को उन्नत एंव उदात्त रुप देने के लिए जैनीकरण की प्रक्रिया अपनाकर जैनधर्म को सर्वोपरि रुप दिया। धार्मिक भावनाओं को मूर्त रुप देने हेतु हिन्दू धर्म के अनुरुप मन्दिरों एंव मूर्तियों का निर्माण किया गया एंव वैदिक देवी देवताओं को जैन देवता समूह में स्थान दिया गया। जिन, शिव, विष्णु तथा बुद्ध को एक ही तत्व के विभिन्न रुप माने गये। जैन इतिहास में प्राप्त मुनि आचार हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित धर्म के लक्षणों से मिलते हैं। जैन साहित्य में धर्म की परिभाषा महाभारत के आधार पर की गयी है। जैनधर्म के स्याद्वाद पर सांख्य के विचारों एंव अध्यात्मवाद, साम्यवाद, कर्मवाद एंव धार्मिक ऐतिहासिक तथ्यों पर भगवद्गीता के उपदेशों का पूर्ण प्रभाव ज्ञात होता है। हिन्दू धर्म की उपासना पद्धति एंव योग से जैन उपासना एंव जैन योगियों के व्यवहार एंव आचार पूर्णरुपेण प्रभावित हैं। वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, पुरुषार्थ, संस्कार, व्यवस्था, हिन्दू व्यवस्था के अनुरुप हैं। जैन साहित्यिक विधाओं का सृजन हिन्दू ऐतिहासिक साहित्य के आधार पर हुआ। चरितकाव्यों में प्राप्त तीर्थकंर के उपदेश गीता के श्लोकों की तरह ही उच्चारित किये जाते हैं। चौबीस तीर्थकरों की ऐतिहासिकता भागवत सम्प्रदाय की चौबीस अवतारों की मान्यता से बहुत कुछ प्रभावित है। ऋग्वेद के प्राकृतिक दृश्यों की कुछ अलंकारिक कथाओं के आधार पर जैन लोक कथाओं एंव उपकथाओं का निर्माण हुआ है। अन्ततोगत्वा कहा जा सकता है कि हिन्दू धर्म के अनुरुप एंव प्रभावित होने पर भी जैन साहित्य की अपनी विशेषताएं हैं जिसके कारण वह अपनी सत्ता व्यापक रुप में बनाये हुए हैं। जैन इतिहास साहित्य की अनेक विधाओं में लिखा गया जिसका कि वर्ण्य विषय धार्मिक सिद्धान्तों एंव वेशठशलाकापुरुषों के चरित्र निरुपण के साथ ही तत्कालीन सामाजिक आर्थिक, राजनैतिक एंव भोगोंलिक परिस्थितियों का चित्रण करना रहा परिणामस्वरुप इतिहास निर्माण एंव ऐतिहासिक परम्परा को कमवद्ध रुप देने में जैन इतिहास का पर्याप्त योगदान है। 1. तत्वार्थसूत्र, युक्त्यानुशासन, सम्मतिसूत्र, द्वात्रिशंतिकाओं, जैनेन्द्रव्याकरण, सर्वार्थसिद्धि, दशभक्ति, प्रियलक्षणक दर्शन-आदि /

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