Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

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Page 248
________________ 230 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास की अधिकाधिक समृद्धि हुयी। सॉतवी शताब्दी में रविषेण एंव जटासिंहनन्दी ने रामायण की शैली पर पद्मचरित एंव बरांगचरित की रचना की / रविषेण ने रामायण में हेय दृष्टि से देखे जाने पात्रों के प्रति उदात्त एंव सहानुभूति पूर्ण भाव प्रदर्शित किया है। ये दोनों ही ग्रन्थ जैन इतिहास के अन्तर्गत समाज एंव संस्कृति के अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। ___आंठवी शताब्दी में जैन आचार्यो द्वारा प्रणीत ग्रन्थ गणित, ज्योतिष, भूगोल, समाज, राजनीति पर प्रकाश डालते हैं। नवीं शताब्दी के जैन आचार्यो द्वारा पुराण एंव महापुराण की रचनो करके एक नवीन साहित्यिक विधा को जन्म दिया गया जो जैन इतिहास के साथ ही साथ काव्यशास्त्रीय सिद्धान्तों के ऐतिहासिक अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। नवीन साहित्यिक शैली का दिग्दर्शन “पार्वाभ्युदय में हुआ है। दसवी, ग्यारहवीं शताब्दी में प्रणीत चरितकाव्य इतिहासपरक विभिन्न पक्षों को प्रस्तुत करने वाले हैं। चरितकाव्यों की शैलीगत विशेषताओं के अतिरिक्त वे तत्युगीन इतिहास का सांगोपांग वर्णन करने में अत्यधिक सक्षम है। इसके अतिरिक्त बारहवीं शताब्दी में इतिहासकारों द्वारा प्रणीत ग्रन्थों में इतिहास के अध्ययन हेतु विपुल सामग्री प्राप्त होती है। द्वितीय शताब्दी से लेकर बारहवी शताब्दी के अन्तराल में संस्कृत भाषा की तरह ही प्राकृत भाषा में भी जैन इतिहासकारों द्वारा साहित्य सृजन किया गया जिसमें तीर्थकंरों के चरित्र के साथ ही साथ विभिन्न कथाओं आख्यानों, उपाख्यानों एंव राजा एंव साम्राज्ञियों के चरित्रों का निरुपण किया गया है। ___ अपभ्रंश भाषा में काव्य, कथा, पुराण के साथ ही गणित आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र आदि विविध विषयों पर रचनाऐं की गयी। . नवी शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा नृपतुंग के राज्यकाल से जैन साहित्यकारों ने कन्नड, तमिल एंव मराठी भाषाओं में काव्य रचना का प्रारम्भ किया जो जैन इतिहास की दृष्टि से बड़े ही महत्व के हैं। निवृत्तिमार्गी एंव आचार प्रधान धर्म होने के कारण जैन इतिहासकारों का मूल उद्देश्य अपने धर्म एंव दर्शन के सिद्धान्तों को स्थायी रुप देना था। वे जनसाधारण में नैतिक भावना एंव आध्यात्मिक वातावरण उत्पन्न करना चाहते थे इस उद्देश्य से उन्होंने जैनधर्म में मान्य शलाकापुरुषों का चरित्र निरुपण किया। पूर्वमध्ययुगीन जैनाचार्य पूर्व प्रचलित वैदिक परम्पराओं की समीक्षा करते हुए पाये जाते हैं इसी कारण उनके द्वारा हिन्दू धर्म के ऐतिहासिक तथ्यों के जैनीकरण करने के प्रयास किये गये। राज्याश्रय प्राप्त होने के कारण जैनधर्मानुयायी राजाओं द्वारा किये गये धार्मिक कार्यो का वर्णन करना भी उनके साहित्य का उद्देश्य था। विभिन्न जनपदीय लोकभाषाओं में धार्मिक, आख्यान, उपाख्यानों के माध्यम

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