________________ उपसंहार 231 से जैनधर्म को व्यापक एंव सर्वोपरिरुप प्रदान करना जैन इतिहास लेखकों की विशेषता थी। पूर्वमध्यकाल में जैनाचार्यो एंव इतिहास लेखकों द्वारा समन्वयवादी प्रवृत्ति को अपनाना उनकी धार्मिक सहिष्णुता एंव उदारवादी दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है। जैनग्रन्थों में प्राप्त काल निर्देश इतिहास निर्माण में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अपने इन्हीं उद्देश्यों के अनुरुप ही जैन इतिहासकारों ने जैनधर्म एंव दर्शन के सिद्धान्तों का विश्लेषण एंव त्रेशठशलाकापुरुषों के चरित्र निरुपण एंव उनके पूर्वभवों के वर्णन निरुपण को अपने साहित्य का विषय बनाया। तीर्थकरों द्वारा उपदिष्ट धार्मिक सिद्धान्त श्रुतपरम्परा से चले आ रहे थे। कालक्रमानुसार उनके लुप्त होने पर जैन इतिहासकारों ने धर्म एंव दर्शन के सिद्धान्तों को स्थायी रुप देना चाहा जिसके लिए समय समय पर वाचनाएं हुयी अन्त में पांचवी शताब्दी ई० वी० में विभिन्न वाचनाभेदों को व्यवस्थित रुप प्रदान करके देवर्धिगण क्षमाश्रमण के नेतृत्व में आगमों को लिपिवद्ध किया। जैन श्रमणों के आचार विचारों एंव धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों को आगम साहित्य का विषय बनाया गया। साधारण के लिए हृदयगम्य बनाने हेतु आख्यानों उपाख्यानों के रुप में शलाकापुरुषों के चरित्रों को अपनाया गया। __आगम साहित्य में निरुपित विषय का विकास आगम साहित्य पर लिखे जाने वाले व्याख्यात्मक साहित्य-चूर्णी, भाष्य, टीकाओं एंव नियुक्तियों में पाया जाता है। छठी शताब्दी ई० वी० में हिन्दू धर्म के विभिन्न धार्मिक चिन्तन की धाराओं को विकास हो चुका था उनके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के साहित्य का प्रणयन भी हो चुका था। जैन इतिहासकार पुराणों सदृश धार्मिक साहित्य से प्रभावित हुए, परिणामस्वरुप ऐतिहासिक काव्य एंव पुराण लेखन की परम्परा जैन इतिहास में भी श्रृंखला रुप में पायी जाती है। साहित्य समाज का दर्पण माना जाता है। परिणामस्वरुप तत्कालीन परिस्थितियाँ एंव सामाजिक मान्यताएं, साहित्य में स्वतः प्रतिबिम्बित हो उठती हैं। यही कारण है कि पौराणिक एंव चरितकाव्यात्मक साहित्य में त्रेशठशलाकापुरुषों एंव जैनधर्मानुयायी व्यक्तियों के चरित्र-निरुपण के साथ ही तत्कालीन विभिन्न परिस्थितियों का चित्रण भी नैसगिंक रुप में हुआ है। परिणामतः आगम साहित्य में सूत्र रुप में वर्णित विषय परवर्तीयुगीन साहित्य में विस्तृत होकर सिद्धान्तों का रुप धारण कर लेते हैं। जैन इतिहासकारों ने धार्मिक सिद्धान्तों को लोकप्रिय एंव व्यापक रुप प्रदान करने के लिए कथात्मक शैली को अपनाया। कथा साहित्य तत्कालीन जैन जगत एंव संस्कृति का वास्तविक चित्रण प्रस्तुत करने में अत्यधिक सक्षम माने जाते हैं।