________________ चरितकाव्य 115 जानकारी होती है'। पृथ्वी पर राजा न होने पर “मत्स्यगतागलन्याय' की सब जगह प्रवृत्ति होने की जानकारी होती है। चरितकाव्यों में राजा एंव प्रजा के पारस्परिक सम्बन्धों का निरुपण प्राप्त होता है / पापाचरण से दूर रहने वाला त्रिवर्ग - धर्म, अर्थ, काम का सेवन करने वाला, अनुभवी वृद्धों के ज्ञान से राज्यकार्य करने वाला गुरुजनों की विनय करने वाला राजा द्वारा प्रजाकल्याण के साथ ही अपने लोक एंव परलोक को सफल बनाने के उल्लेख प्राप्त होते हैं / "धर्मशर्माभ्युदय में धर्मनाथ को दिये गये उपदेशों में राजनीति शास्त्रीय विषयक सिद्धान्तों का निरुपण हुआ है। दुर्विनीत राजा अपने आचरणों से अपनी आश्रयीभूत प्रजा को अपने विरुद्ध बना लेता है। राजा एंव उसकी उपाधियाँ __ संस्कृत चरितकाव्यों में राजा के लिए राजा, महाराजा", माण्डलिक, अर्द्धचक्रवर्ती', एंव चक्रवर्ती शब्दों का प्रयोग किया गया है। राजा की ये विभिन्न उपाधियाँ उसकी शक्तिवैभव एंव राज्य विस्तार पर आध पारित थी। नगर या जनपद राजा द्वारा शासित होता था, राज्य की आय सीमित होती थी। राजा की अपेक्षा महाराजा कुछ बड़े साम्राज्य का अधिपति एंव उसकी सैन्य शक्ति सुदृढ़ एंव सबल होती थी। चरितकाव्यों में महाराजा के लिए सार्वभौमिक एंव सम्राट शब्द भी प्रयुक्त होने की जानकारी मिलती है। सार्वभौमिक राजा नैसर्प, पाण्डु, पिंगल, काल, महाकाल, शंख, पद्म, माणव, सर्वरत्न आदि नवनिधियों के अधिपति होते थे जो साम्राज्य की सम्पन्नता एंव सुदृढ़ता में विस्तार करती थी" | माण्डलिक राजा के अधीन अनेक सामन्त राजा राज्य करते थे। अर्द्धचक्रवर्ती का साम्राज्य विस्तृत होता था, वे राज्यविस्तार के लिए सामरिक यात्रा एंव युद्ध भी करते थे। चक्रवर्ती दिग्विजय करते थे परिणामतः 6 खण्डों के अधिपति बनते थे। ये चक्रवर्ती सार्वभौम भी कहलाते थे क्योंकि सभी राजा इसके अधीन होते थे / - चरितकाव्यों से राजा के नवप्रकारों की जानकारी होती है - 1, विजिगीषु 2, अरि 3. मित्र 4, पाणिग्राह 5, मध्यम 6, उदासीन 7, आकन्द 8, आसार 6, अन्तर्द्धि थे। ये यथायोग्य गुण एंव ऐश्वर्य से सम्पन्न होने के कारण राजमण्डल के अधिष्ठाता कहे गये हैं। राजा के गुण एंव कर्तव्य राजा के अन्तर्गत राजकीय गुणों में शत्रुसंहार शक्ति, इन्द्रियजयी, व्यसनसेवनरहित, परोपकार वृत्ति, एंव सभी के साथ सम्मानयुक्त व्यवहार आवश्यक एवं राज्य को स्थायित्व प्रदान करने वाले माने जाते थे। इनके साथ ही सम्यक् ज्ञान दर्शन एंव चरित्र के युक्त सदाचार, उदारता, शूरता आदि पार्थिव गुण, शक्ति