Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

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Page 221
________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव 203 प्रतिविम्बन हुआ है। इस समय तक वैदिक परम्परा में हिन्दू पुराणों एंव महाकाव्यों का निर्माण हो चुका था। इन्हीं आदर्शो पर जैन साहित्यकारों ने अनेक पुराणों एवं चरितकाव्यों की रचना की। तीर्थकर, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण, प्रभृति महापुरुषों के चरित को काव्य रुप में निबद्ध करने की परम्परा ईसवी सन् की सॉतवी शताब्दी से प्रारम्भ होती है। रविषेण एंव जटासिंह नन्दी ने रामायण की शैली पर अपने चरित एंव पुराण नामक साहित्य का सृजन किया। पुराण पुष्पदन्त के महापुराण में अइहास एक पुरुषाश्रिता कथा, पुराण त्रिशष्टि पुरुषाश्रिता कथा : पुराणानि का उल्लेख है। अतएव हिन्दू पुराण की भॉति जैन पुराणों का सम्बन्ध त्रेशठशलाका पुरुषों के चरित से माना गया है। आदिपुराण में भी कहा गया है कि यह ग्रन्थ अत्यन्त प्राचीन काल से प्रचलित है इसलिए पुराण कहलाता है। पुराणों के लक्षण हिन्दू पुराणों की भॉति जैनपुराणों में उनके लक्षणों का उल्लेख नहीं पाया जाता लेकिन पुराणों के अध्ययन से उनके लक्षणों की जानकारी होती है। हिन्दू पुराणों के “सर्ग एंव प्रतिसर्ग प्रथम दो लक्षण जैनाचार्यो द्वारा वर्णित अवसर्पिणी एंव उत्सर्पिणी युग की अवधारणा में पाये जाते हैं। हिन्दू पुराणों के सर्ग, प्रतिसर्ग, में इस जगत की उत्पत्ति एंव प्रलय का विस्तृत वर्णन दिया गया है। इसी तरह आदि पुराण में वर्णित अवसर्पिणी एंव उत्सर्पिणी युग के क्रमशः मनुष्यों के बल, आयु एंव शरीर के बढ़ने एंव कम होने की जानकारी होती है। इन युगों के छह छह भेद कालचक के परिभ्रमण से कृष्ण एंव शुक्ल पक्ष की तरह घूमते रहते हैं। वंश शब्द वंश परम्परा को स्पष्ट करता है। पूर्वमध्यकालीन जैनआचार्यो ने भी अपने धर्म प्रचार का माध्यम पूर्वकाल से चली आती हुई वंश परम्परा को बनाया है। हरिवंशपुराण में विभिन्न वंशों का विस्तृत वर्णन किया गया है / जैन पुराणों में 14 कुलकरों (मनुओं) की गणना की गयी है। इन्होंने भोगभूमि के नष्ट होने के पश्चात् विभिन्न प्रकार के कार्यो में व्यक्तियों को प्रवृत्त कराया। जैन पुराणों में 14 मनुओं का विस्तृत वर्णन न करके अन्तिम कुलकर इक्ष्वाकु ऋषभ के पिता नाभि का विस्तृत वर्णन दिया है। जैन पुराणों में वर्णित इन मनुओं अथवा कुलकरों के वर्णन में वैदिक साहित्य से कुछ भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। आगमिक साहित्य में किसी भी प्रकार के विभिन्न युगीन मनुओं की अवधारणा का उल्लेख नहीं है। पौराणिक साहित्य में प्राप्त मनुओं की यह अवधारणा महाभारत में भी प्राप्त होती है।

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