Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

View full book text
Previous | Next

Page 234
________________ 216 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास गीता के अनुरुप ह / जैन दर्शन में मान्य क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, तप, त्याग, अकिंचन, संयम एंव ब्रह्मचर्य इन दस धर्मो का वर्णन गीता में विस्तृत रुप से प्राप्त होता है / जिनसेन द्वारा वर्णित जैन योगी आत्मसुख से बिल्कुल परे थे, सन्तोषीवृत्ति द्वारा उनकी सभी इच्छाएं नष्ट कर दी गयी थी, वे आध्यात्मिक अध्ययन में लीन रहते", अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति से प्रसन्न एंव अप्राप्ति से दुखी नहीं होते। वे मान अपमान, सुख-दुःख, प्रसन्नता अप्रसन्नता, प्रशंसा अनिन्दा ' आदि को समान रुप से अनुभव करते थे / योगियों के ये व्यवहार गीता में वर्णित वर्णनों से पूर्णरुपेण मिलते हैं।१४ | जिसमें सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय, प्रिय को प्राप्त कर हर्षित न होना अप्रिय को प्राप्त कर उद्विग्न न होना अर्थात् सुख-दुःख को समान समझने वाला धीरपुरुष मोक्ष का अधिकारी होता है। जैन धर्म के अन्तर्गत सामयिक की अत्यन्त प्रतिष्ठा है। अणुव्रती गृहस्थ के चार शिक्षाव्रतों एंव महाव्रती साधु के पॉच चारित्रों में सामयिक का समावेश है। रागद्वेष की निवृत्ति परक आवश्यक कर्तव्यों में समता भाव का अवलम्बन सामायिक है | आचार्य अमितगति ने “सामायिक पाठ" में सामायिक के स्वरुप का अच्छा प्रतिपादन किया है | आचार्य कुन्दकुन्द सम्भाव को श्रमणत्व का मूल मानते है 17 संयम एवं तप से युक्त वीतराग श्रमण जब सुख दुख में समान अनुभूति करने लगता है तभी वह मोक्षोपयोगी कहा जाता हे यह गीता के सुख-दुख की समत्व के अनुभूति का 'प्रभाव है। स्थितप्रज्ञ एंव वीतराग श्री मद्भगवद्गीता में वर्णित “स्थित प्रज्ञ” न. तो दुःख में उद्विग्न होता है और न सुख में स्पृही। इस तरह रागद्वेष से रहित इन्द्रिय संयमी आत्मा वाला अन्तः करण ही निर्मलता को प्राप्त करता है | जैनाचार्यो ने “स्थितप्रज्ञ को ही वीतराग" की संज्ञा दी है और वीतरागता को ईश्वर (आप्त) का लक्षण माना है११६ | गीता की तरह ही जिनसेन कहते हैं कि कर्मो से विमुख होना मिथ्याचार है, विजय नहीं२० / स्नेह एंव राग से दूर एंव संसार से विरक्तता ही उनकी विजय है। उन बुद्धिमानों की इन्द्रियाँ वश में होती है। जिसकी इन्द्रियाँ वंश में नहीं होती वह कष्ट उठाता है / गीता के ये वर्णन जैन पुराणों में वीतरागी द्वारा मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक बताये गये हैं। 3 मुक्ति जो परमात्मा की वास्तविकता है वह आत्मा स्वभाव की स्थिरता (साम्य) द्वारा प्राप्त कर सकते हैं / मोक्ष एंव पुरुषार्थ हिन्दू धर्म के अन्तर्गत मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति

Loading...

Page Navigation
1 ... 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268