________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव . 217 बतलाया गया है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में प्रथम तीन को अन्तिम पुरुषार्थ मोक्ष का साधन माना गया है। जिसे त्रिवर्ग कहा गया है। __ जैनधर्म के अन्तर्गत जीवन का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष ही मान्य किया गया है - सामाजिक जीवन व्यतीत करने के पश्चात् मानव मोक्ष की ओर अग्रसर होता था। उसके लिए धर्माचरण, तप, संयम, मूर्तिपूजा, एंव भक्ति उपासना दान, त्याग, मन्दिर एंव मूर्ति निर्माण इत्यादि को आवश्यक बतलाया है जो धर्म एंव अर्थ साधन की ओर संकेत करते हैं। हिन्दू पुराणों में मान्य काम को जैनधर्म में मानवी रुप दिया गया है एंव 24 कामदेवों को जैनपुरुष माना है। जैनाचार्यो ने इनके चरित्र पर ग्रन्थ भी लिखे। इनके माध्यम से मानव की दुर्बलताओं एंव उत्थान पतन के चित्रणों द्वारा मनुष्य को मोक्ष की ओर उन्मुख होने की दिशा प्रदान की है। धर्म अर्थ काम को ही मोक्ष प्राति का साधन माना है।२७ | धार्मिक दृष्टि से साहित्यिक कृतियों के समान ही अभिलेखीय क्षेत्र में भी हिन्दू धर्म का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। जैन अभिलेखों में प्रायः प्रशस्तियों का प्रारम्भ "ऊँ नमो वीतरागाय से होता है जिससे ज्ञात होता है कि यह जैनमत के समर्थकों का है। यह मंगलाचरण प्रसिद्ध वैष्णवमन्त्र-ऊँ नमो वासुदेवाय या ऊँ नमो नारायणाय के सदृश जैनमंत्र की विशेषता है। सम्भवतः यह हिन्दूमत का ही प्रभाव था कि लेखों में इस प्रकार के मंगलाचरण का प्रयोग होने लगा। हिन्दू ग्रन्थों में इष्टदेव की प्रार्थना पहले पद में की जाती थी इसी तरह जैन साहित्य में पहला पद तीर्थकर प्रार्थना के निमित्त लिखा जाता था। प्रायः सभी जैन अभिलेखों के अन्त में मनु के चार श्लोकों को स्थान दिया गया है जिसमें दान की गयी वस्तु की रक्षा करने वाले पुण्य के भागी एंव रक्षा न करने वाले पाप के भागी कहे गये हैं इनसे स्पष्ट होता है कि जैनाचार्य मनुस्मृति में वर्णित धार्मिक उपदेशों से प्रभावित थे। वर्णव्यवस्था जैन पुराणों में प्राप्त धार्मिक एंव दार्शनिक वर्णनों की भॉति ही सामाजिक वर्णन भी हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों से प्रभावित एंव समानता रखे हुए हैं। हिन्दू परम्परा में वर्णव्यवस्था का आधार कर्म रहा है। कर्म के द्वारा ही व्यक्ति उच्च एंव निम्न वर्ण को प्राप्त करता है। गीता में कहा गया है कि समदर्शी पण्डित ब्राह्मण एंव चाण्डाल में तथा गाय हाथी एंव कुत्ते में कोई भेद नहीं करते२ | मनु ने भी वेद का अध्ययन न करने वाले ब्राह्मण को परिवार सहित शूद्र होने का उल्लेख किया है। हिन्दू धर्म की भॉति ही जैनधर्म जन्मना वर्ण व्यवस्था का विरोध करता हुआ कर्मणा वर्णव्यवस्था में विश्वास करता है। जैन आगमिक साहित्य से ज्ञात होता है कि जन्म