________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव 216 के द्वारा निश्चित होने की बात कही गयी है। आश्रम व्यवस्था . जैन साहित्य में आश्रम व्यवस्था का उल्लेख प्राप्त होता है। पुराणों में दो आश्रमों - सागराश्रम एंव “निर्गराश्रम" क्रमशः गृहस्थों एंव मुनियों के लिए वर्णित किया गया है। जो ऋषभ के राज्यकाल से ही बने हुये थे। रविषेण ने दो प्रकार के आचारों श्रावकाचार एंव मुनिआचार का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त तीसरे आचार का भी उल्लेख किया है जो मायावी आचार कहलाता था"५ | हिन्दू पौराणिक आश्रम व्यवस्था का अप्रत्यक्ष रुप से वर्णन किया है जिसमें जीवन के चार स्तर विशेष उपाधियों से वर्णित किये गये हैं। जीवन के ये चार आश्रम--ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एंव भिक्षुक नाम से जाने जाते हैं जो कि जैनधर्मानुयायियों को एक स्तर से दूसरे स्तर में अधिक शुद्ध बनाते है१५६ | जिनसेन द्वारा वर्णित ये आश्रम एंव वर्ण व्यवस्था जो वैदिक संस्थाओं पर आधारित है को वैदिक व्यवस्था के विरोध में जैन प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरुप वर्णित किया गया है | धार्मिक संस्कार जिनसेन ने व्यक्ति के जीवन को उन्नत एंव सफल बनाने के लिए धार्मिक संस्कारों को अधिक महत्व दिया है। हिन्दू स्मृतिकारों की तरह उसने कहा है कि आचारों की पवित्रता को बिना प्राप्त किये कोई व्या है / शारीरिक, मानसिक एंव आध्यात्मिक उन्नति नहीं प्राप्त कर सकता है | जै। पुराणकारों ने गर्भान्वय एंव दीक्षान्वय दो प्रकार के संस्कारों का उल्लेख किया है। गर्भान्वय जैन समुदाय (समाज)में उत्पन्न व्यक्तियों के लिए एंव दीक्षान्वय जैनधर्म में दीक्षित होने वाले के लिए"" / गर्भान्वय संस्कारों की संख्या 53 एंव दीक्षान्वय संस्कारों की संख्या 48 बतायी गयी है | मनुस्मृति में जन्म से लेकर मरण तक जिन गर्भधानादि आदि क्रियाओं का वर्णन मिलता है वे सभी हिन्दू संस्कार इनके अन्तर्गत आ जाते हैं। हिन्दू स्मृतिकारों की तरह ही" जिनसेन संस्कारों का प्रारम्भ गर्भस्थ शिशु के आचारों से ही करते हैं। जैनधर्म के अन्तर्गत संस्कारों को सीमावद्ध नहीं किया गया है जबकि हिन्दू धर्म में अन्तिम दो आश्रमों का सेवन करने वाले व्यक्तियों के लिए किसी विशेष संस्कार की व्यवस्था नहीं की गयी / गर्भाधान __ जिनसेन के अनुसार यह मन्त्रपूर्वक किया जाता था। जिसे "आधान" कहा जाता था। हिन्दू संस्कार गर्भाधान की अपेक्षा अधिक क्रियाएँ सम्पन्न की जाती थी।