________________ 218 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास के आधार पर ब्राह्मण वर्ण की श्रेष्ठता स्वीकार नहीं की जा सकती। ऋषभ ने ब्राह्मण के गुणों का वर्णन किया है। ऋषभ द्वारा भरत से माहन् माहन् कहे जाने के कारण ये माहन कहे जाने लगे / हेमचन्द्र ने इसका समर्थन किया है कि ये माहन् धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे ये बाद में ब्राह्मण कहलाने लगे। वैदिक पुराणों की भाति ही जैनाचार्यों ने द्विजों का भी उल्लेख किया है जो कुछ संस्कारों के सम्पन्न करने से इस संज्ञा को धारण करते थे। द्विज पवित्र धागे का प्रयोग करते थे४ एंव असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, द्वारा जीविकोपार्जन करते थे। हिन्दू धर्म में मान्य ब्राह्मण उत्पत्ति विषयक सिद्धान्त को भी जैन पुराणकारों द्वारा मान्य किया गया है 36 | रामायण" बताती है कि प्रारम्भ में समस्त समाज एक वर्ग से सम्बन्धित था। महाभारत में भी कहा गया है कि प्रारम्भ में भिन्न भिन्न वर्ग नहीं थे सभी मानव ब्रह्मा से सम्बन्धित थे। अपने अपने कार्यो के अनुरुप ये विशेष वर्गों में विभाजित कर दिये गये। वायुपुराण में भी कहा गया है कि सत्ययुग मे वर्ण संस्था एंव उसके कार्य विभाजित नहीं थे। मानव जाति का विभिन्न वर्गों में स्तरीकरण त्रेतायुग में हुआ / जैन महापुराण में भी हिन्दुओं के अनुरुप ही प्रारम्भ में एक जाति होने एंव जीविकोपार्जन के विभिन्न साधनों के अपनाने के कारण ये वर्गों में विभक्त होने के वर्णन प्राप्त होते हैं / जो भगवद्गीता की तरह ही गुणकर्मो के अनुसार चारों वर्णो की सृष्टि होने की बात बतलाते हैं। जैन पुराणों में वर्णो के बतलाये गये कर्तव्य रामायण महाभारत एंव गीता से पूर्णतः मिलते है। जैनपुराणों में प्राप्त क्षत्रियों के कार्य कालिदास के द्वारा की गयी छत्र शब्द की व्याख्या पर आधारित है।४३ | पुरुष सूक्त एंव महाभारत की तरह ही ऋषभ द्वारा अपने भुजाओं से शस्त्र धारण करने वाले क्षत्रियों एंव जंधाओं से व्यापारिक कार्य करने वाले वैश्यों एंव निम्न जीवन बिताने वाले शूद्रो की उत्पत्ति पैरों द्वारा करने की जानकारी होती है | शीलांक ने समाज को ऋषभ द्वारा दो वर्गो 1 राजन् एवं 2 प्रकृतिलोक में विभाजित करने की बात कही है।४७ / हेमचन्द्र ने क्षत्रियों के चार वर्गो - उग्र, भोज, राजन्य एंव क्षेत्र का वर्णन किया है१४ / ___ वैदिक धार्मिक ग्रन्थों की तरह ही जैन पुराणों में शूद्रों (श्वपाकों) को पर्याप्त सम्मान दिया गया है। उत्तराध्ययन सूत्र में हरिकेशव नाम चाण्डाल के गुण सम्पन्न मुनि होने के उल्लेख मिलते हैं। इस चतुर्थ वर्ण का मुख्य कर्तव्य तीनों वर्णो की सेवा करना था" | शूद्रों को दो वर्गो - छूत एंव अछूत में विभाजित किया है। छूत शूद्र के अन्तर्गत धोबी एंव नाई को सम्मिलित किया है। मनुस्मृति के समान ही शीलांक ने चार वर्णो के अतिरिक्त 60 वर्गो (मिली जुली जाति) की उत्पत्ति का उल्लेख किया है। इस तरह हिन्दू धर्म के अनुकूल ही एक व्यक्ति का वर्ण कर्म