________________ 220 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास जिसमें तीन चक, तीन छत्र, एंव तीन पवित्र अग्नि की रेखाएं जिनमूर्ति के बायें एंव दाये चित्रित की जाती थी। जिनसेन ने हिन्दू पुसंवन एंव गर्भाधान दोनों को "आधान” संस्कार में सम्मिलित रुप दिया है। वैदिक सीमन्तोन्नयन को भी संस्कारों में सम्मिलित नहीं किया है। प्रियोद्भव हिन्दू परम्परा के अनुसार ही यह संस्कार जन्म लेने के बाद मनाया जाता था" | जैन इसे प्रियोद्भव कहते हैं। हिन्दू पद्धति से कुछ भिन्नता लिए पिता द्वारा कुछ क्रियाएं की जाती थी। महाभारत में: जातकर्म के समय उच्चारण किया जाने वाला मंत्र महापुराण में ज्यों की त्यों पाया जाता है जो इस संस्कार के समय बोला जाता था। नामकर्म मनुस्मृति की भांति ही महापुराण में जन्म के 12 वें दिन नामकरण संस्कार सम्पन्न करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं।७० / महापुराण के अनुसार बच्चे एंव मातापिता के कल्याण के लिए यह एक शुभ दिन में मनाने का निर्देश दिया गया है। परिवार की समृद्धि वर्द्धक बच्चे का नाम रखा जाता था१७२ | बहिरिना यह संस्कार हिन्दू संस्कार निष्कासन की ही भांति है जो जन्म के बाद दूसरे, तीसरे एंव चौथे माह में शुभ दिन में मनाया जाता था जिसमें बच्चा पहली बार घर से बाहर जाता था७३ | अन्नप्राशन हिन्दू संस्कार अन्नप्राशन की भांति जैनों में यह संस्कार जन्म के बाद छठे मास में सम्पन्न किया जाता था१७५ | वर्षावर्धन __ महापुराण के अनुसार यह जन्म के एक वर्ष बाद मनाया जाता था। मनुस्मृति, सूत्रसाहित्य एवं याज्ञवलकय स्मृति में इस संस्कार का उल्लेख नहीं है लेकिन भवभूति के रामचरितमानस में इसका उल्लेख प्राप्त होता है | यह संस्कार प्रतिवर्ष मनाया जाता था एवं इस संस्कार में बच्चे की कलाई पर बीते हुए वर्षों की संख्या के अनुसार धागे में गांठें बाँधकर बाँधा जाता था। उत्तररामचरित मानस में