________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव 221 इसे संख्यामंगल ग्रन्थि कहा गया है। केशवा या चोल संस्कार हिन्दू संस्कारों में वर्णित चूडाकर्म एंव मुंडन संस्कार को जैन शास्त्रों में केशवा संस्कार कहा गया है इसमें शुभ दिन में बच्चे के बाल काटे जाते है" जैनों का यह नाम आश्वालयन गृहयसूत्र के आधार पर रखा गया है जिसमें बाल काटने के कार्य को केशवापन कहा गया है | स्मृतियों में वर्णित चोल नाम भी जैनों द्वारा इस संस्कार को दिया गया है-" | स्मृतियों के अनुसार यह संस्कार एक वर्ष से पाँचवे वर्ष के बीच में सम्पन्न किया जाता था जिनसेन के अनुसार भी यह संस्कार तीसरे वर्ष या पांचवे वर्ष में सम्पन्न किया जाता था। उपनयन हिन्दू उपनयन संस्कार को जैनों द्वारा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है यह जन्म के सातवे वर्ष में सम्पन्न होता था। हिन्दुओं में तीनों वर्गों के उपनयन संस्कार का समय अलग अलग दिया गया है | इस संस्कार में बच्चे के बाल काटकर, एक कौपीन एंव सादा वस्त्र पहनने को दिया जाता था। इसके साथ ही पवित्र मंत्रों से शुद्ध किये हुए धागे से बना जनेऊ (मुंजग्रास) उसके वक्षस्थल पर लपेटा जाता था। जो कि ब्रह्मचारी द्वारा पवित्र व्रत धारण करने का सूचक था-४ | इसी संस्कार के कारण तीनों वर्णो में जन्म लेने वाला द्विज कहलाता था५ / यहाँ से एक महत्वपूर्ण जीवन प्रारम्भ होता है जो ब्रह्मचर्याश्रम कहलाता है | व्रताचार्य ' हिन्दू संस्कार "व्रतादेश-७ की भॉति ही इस “व्रताचार्य संस्कार में ब्रह्मचारी को व्रतों का पालन करने के लिए शिक्षा दी जाती थी / इनका पालन विद्यार्थी जीवन की समाप्ति तक करता था | व्रताव्रतरण - जैनों के इस संस्कार पर हिन्दुओं के “समावर्तन संस्कार का स्पष्ट प्रभाव है जो ब्रह्मचारी द्वारा अध्ययन समाप्त कर लेने के बाद किया जाता था। जिनसेन के अनुसार विद्यार्थी जीवन प्रारम्भ होने से 12 या 16 वर्षो तक व्रतों का पालन किया जाता था | हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार 24 वर्ष की आयु के बाद "समावर्तन संस्कार सम्पन्न करने का समय माना जाता था। इस संस्कार के समय अपने गुरु की आज्ञा से वस्त्र आभूषण आदि पहनता था /