Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव 215 भक्ति ___ जैनधर्म में उपासना के तृतीय आयाम भक्ति धारा की उत्पत्ति हिन्दूधर्म की भक्तिधारा से हुयी। भागवतपुराण वर्तमान भक्ति धारा का स्त्रोत है। दक्षिण पूर्व में यामुनाचार्य एंव रामानुजाचार्य द्वारा भक्तिवाद को एक सुनिश्चित दार्शनिक आधार प्रदान किया गया। हिन्दू धर्म की भक्तिधारा से प्रेरित होकर जैन मन्दिरों में भक्ति उपासना होने के साथ ही भक्ति काव्य साहित्य की रचना की गयी। इसी. कारण पूर्वमध्यकाल में जैनधर्म में पंचव्रतों का पालन उतना मुख्य नहीं रहा जितना कि मन्दिर, चैत्य बनवाना, मूर्तियाँ प्रतिष्ठित कराना एंव भक्ति भाव स विभोर होकर मूर्तियों के सामने पूजा एंव कीर्तन करते हुए मदमस्त हो जाना -पा। इसके लिए अन्तरंग एंव बहिरंग शुद्धि के बाद देवपूजा, दान, व्रत अभिषेक आदि करना आवश्यक हो गया०४ | हिन्दू धर्म के अन्तर्गत साधना मार्ग - ज्ञान, भक्ति एंव किया पर समान बल दिया गया है। जैन साधना में एकान्त ज्ञान, भक्ति या क्रिया को महत्व नहीं दिया गया है। वहाँ सम्यकदर्शन ज्ञानचारित्रणि मोक्षमार्गः कहकर रत्नत्रय आराधना का विधान प्राप्त होता है। सगुण एंव निर्गुण भक्ति का प्रभाव जैनदर्शन में निराकार आत्मा एंव वीतराग साकार भगवान के स्वरुप में एकता के दर्शन होते हैं। पंचपरमेष्ठी महामन्त्र में सगुण एंव निर्गुण भक्ति का समन्वय प्राप्त होता है। अर्हन्त सकल सगुण परमात्मा जाने जाते हैं उनके शरीर होता है वे दिखायी देते हैं। सिद्ध निराकार होते हैं उनके कोई शरीर नहीं होता, उन्हें हम देख नहीं सकते। लेकिन जैनधर्म समान रुप से अर्हन्त एंव सिद्ध की पूजा एंव भक्ति करने का उपदेश देते हैं। योग हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित योग का प्रभाव जैन पौराणिक साहित्य में वर्णित जैन योगियों के व्यवहार एंव आचार पर स्पष्ट दिखायी देता है। भगवद्गीता में “समत्व” ही योग है, कहा गया है / कृष्ण ने अर्जुन को जो शिक्षा दी कि तू अनासक्त भाव से योग में स्थित होकर कर्म कर / यही कर्मबन्धन से छूटने का उपाय है।५। इसी तरह जैनाचार्यों ने मोह एंव क्षोभ से रहित आत्म परिणाम रुप रामत्व ही धर्म है, बतलाया है यह सम्यक् चारित्र ही मोक्ष का मूल है''। महापुराण में जैन योगियों के व्यवहार एंव आचार विचारों का जो वर्णन प्राप्त होता हे वह गीता में वर्णित आचार व्यवहार के अनेक तत्वों को लिए हुए है। जैन योगी द्वारा सत्य अहिंसा, अस्तेय, ब्रहचर्य, विमुक्तता एंव रात्रिभोजन त्याग का जो व्रत लिया जाता है। वह

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268