________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव 206 गया। लेकिन जैन पुराणों में इनके नाम में कुछ भिन्नता पायी जाती है | जैनपुराणों में ये ईश्वर रुप में स्वीकार नहीं किये गये हैं। महावीर के जीवन वर्णन में गुणभद्र ने इनके "रशनु” नाम एंव रुप का वर्णन किया है। शिव के इस प्रसिद्ध नाम का उल्लेख महाभारत में किया गया है। त्रि० श० पु० चरित में कहीं शिव को नृत्य करते हुए तो कहीं गंगा एंव उमा के साथ अपने गण समूहों के साथ नृत्य करते हुए दिखाये गये है३ | भरत एंव बाहुबलि के बीच होने वाले युद्ध को इन्द्र एंव शिव द्वारा देखे जाने के उल्लेख मिलते हैं | गणेश ब्राह्मण देवता गणेश को अपनाया गया / जैन पुराणों में इसे मंगलकारक देवता माना गया है५ | प्रस्तर एंव कास्य प्रतिमाएं प्राप्त होती है। गणेश की मूर्ति को प्रायः अम्बिका के साथ स्थान दिया गया है जिसमें हिन्दू परम्परा के अनुसार उनके बाएं हाथ में लड्डू हैं जिसे सूंड स्पर्श कर रही है। अम्बिका शिव की शक्ति अम्बिका को जैनाचार्यो द्वारा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। अम्बिका को तीर्थकर नेमिनाथ की यक्षिणी माना गया है। इसकी सबसे प्राचीन व विख्यात मूर्ति का उल्लेख समन्तभद्र ने खाचरयोषित (विद्याधरी) नाम से किया है६ | जिन सेन ने भी अपने हरिवंश पुराण में इस देवी का स्मरण किया है। सरस्वती - जैनाचार्यो द्वारा सरस्वती की अत्यन्त प्राचीनकाल से पूजा की जाती रही है। जैन मन्दिरों में सरस्वती की मूर्ति स्थापित की जाती थी। हिन्दू मान्यता के अनुसार ही ये हंसवाहिनी पायी जाती हैं जिसके हाथ में पुस्तक अवश्य रहती है। जैन ग्रन्थों में इस देवी के लक्षण भिन्न भिन्न पाये गये हैं | कृष्ण बलराम जैन पुराणों में कृष्ण एंव बलराम को ऑठवें एंव नवें वासुदेव माना गया है। तीर्थकंर नेमिनाथ के पार्श्ववर्ती देवताओं के रूप में किये गये इनके अंकन में कृष्ण चतुर्भुज एंव बलराम हाथ में मदिरा का प्याला लिए हुए हैं साथ ही इनके मस्तक पर नागफण है। कृष्ण को हिन्दू परम्परा के अनुसार ही शंख, चकादि से युक्त चित्रित किया गया है।