________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव 211 सुकेशी, सहाजनया, चित्रलेखा, मारीचि सुमुखी, गान्धर्वी एंव दिव्या आदि स्वर्ग की अप्सराओं द्वारा नृत्य करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं / इसी तरह ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णित नारद", वृहस्पति', आदित्य', अश्विनी, जयन्त , गणेश किन्नर एंव राहू को जैनाचार्यों ने अपने पुराण ग्रन्थों में स्थान दिया एंव उनकी उत्पत्ति विषयक विचार ब्राह्मण ग्रन्थों के ही अनुरुप दिये हैं। धर्म एंव दर्शन के सिद्धान्तों पर प्रभाव ___हिन्दू पुराणोंकारों का मूल उद्देश्य मानवीय नैतिक मूल्यों एंव आदर्शों.को चित्रित करना था। वैदिक पौराणिक उपदेश इन्हीं मानवीय मूल्यों एंव आदर्शो में सन्निहित है। महाभारत में की गयी धर्म की परिभाषाएँ इसी सत्य को प्रकट करती है। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, दया, इन्द्रियसंयम, :... आर्जव आदि धर्म के विशिष्ट लक्षण कहे गये है। धर्म एंव नीति सम्बन्धी आचरण युक्त समाज में नियन्त्रण रहता है धर्म सभी प्राणियों से सम्बन्ध रखता है। धर्म दुष्कर्मो एंव दुराचरणों से प्राणीमात्र की रक्षा करता था। जैनपुराणों के उपदेश हिन्दू धर्म के अनुरुप ही है। जिनसेन ने आदि पुराण में दो जगह धर्म की परिभाषा दी है। प्रथम परिभाषा वैशेषिक सूत्र से मिलती है जिसमें भौतिक एंव आत्मिक कल्याण करने वाला ही धर्म कहा गया है"। दूसरी परिभाषा मनुस्मृति से पूर्णरुपेण मिलती है जिसके आधार पर महापुराण में वेद, पुराण, स्मृति, चरित्र, कियाविधि, मन्त्र, देवता, शुद्ध, आहार आदि जहाँ हों वही धर्म है कहा गया है। महाभारत में प्राप्त धर्म की परिभाषा का अनुकरण गुणभद्र ने किया है। जिसमें धर्म को उच्च व्यक्तियों द्वारा धारण करने एंव सम्यक ज्ञान, दर्शन चारित्र एंव तप को धर्म के चार तत्व बतलाये गये हैं | अहिंसा जैनधर्म के आचार का मूल है अहिंसा / अहिंसा एक केन्द्र बिन्दु है जिसके चारों और जैन मत घूमते हैं। जैन धर्म के अन्तर्गत मन, वचन एंव कर्म किसी भी प्रकार से होने वाली हिंसा अहिंसा नहीं हो सकती है लेकिन अहिंसा का व्यावहारिक रुप परवर्ती वैदिक धर्म के समान है। हिन्दू पुराणों में अहिंसा को महानधर्म के रुप में स्वीकार किया गया है। जैनाचार्यों ने अहिंसा को अति सूक्ष्मता के साथ एवं हिन्दुओं ने कुछ लचीलेपन से धर्म में स्थान दिया है / वैदिक परम्परा में मनु ने सब कार्यो में अहिंसा को प्रधानता दी एंव मानव संस्कृति को अहिंसा पर आधारित किया। जैनों की इस अहिंसात्मक भावना या सिद्धान्त पर “हिन्दू सांख्य” का प्रभाव स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। वैदिक काल में “वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" जैसी