Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

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Page 225
________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव 207 दिखायी गयी है जो जैन मूर्ति की अपनी विशेषता है। आसनस्थ तीर्थकर जो सिंहासनों पर बैठाये दिखलाये गये हैं। वे चक्रवर्तित्व का बोधक होते हुए भी हिन्दूधर्म में मान्य पूजा पद्धति से प्रभावित हैं। कुछ मूर्तियाँ जो वस्त्रयुक्त अथवा हाथ से वस्त्र पकड़े हैं पर हिन्दू मूर्तियों का प्रभाव है। जैन मूर्तियाँ भी हिन्दू मूर्तियों की भॉति विशेष चिन्हों से जानी जाती थी। ब्राह्मण धर्म में विष्णु एंव अन्य देवी देवताओं की मूर्तियों के पृष्ठ भाग में ज्योतिपुन्ज का निर्माण किया जाता था। जब जैन धर्म में तीर्थकर प्रतिमाएं बनने लगी तब अपने उपास्य देव को प्रभावयुक्त, कान्तियुक्त एंव जनसामान्य को आकर्षित करने के लिए ज्योतिपुज्ज को प्रभामंडल के रुप में चित्रित किया गया। इसके साथ ही तीर्थकर के जन्म के समय तीर्थकर की माताओं को जो 16 स्वप्न दिखायी देते उसमें श्वेत हस्ति भी था उसे प्रदर्शित करने के लिए प्रभामंडल हस्तिनख से अलंकृत किये गये। जैन प्रतिमाओं में चौकी पर नव ग्रहों की आकृतियाँ भी दृष्टिगोचर होती हैं जो हिन्दूमत के नवग्रहों का अनुकरण था। यक्ष यक्षिणियाँ एंव गन्धर्व मूर्तियाँ __ बाह्मणधर्म में मान्यता है कि उपास्य देवों की मूर्तियों के साथ में उनकी शक्ति अर्थात् सम्बन्धित देवियों की मूर्तियाँ भी स्थापित की जाती थीं। इसके साथ ही विशेष देवों की विशेष प्रयोजनों से पूजा की जाती थी। इसी के परिणाम स्वरुप जैन तीर्थकंर की मूर्ति के पास यक्ष यक्षिणियों एंव गन्धवों की मूर्तियों का अंकन प्राप्त होता है | जैनमतानुसार इंद्र ने प्रत्येक तीर्थकंर की सेवा हेतु यक्षिणियों को नियुक्त किया है। ये गन्धर्व तथा विद्याधर की श्रेणियों में रखे गये हैं। ये बहुमूल्य रत्नों से अलंकृत की गयी हैं। इन यक्षिणियों में मुख्यतः चकेश्वरी, पद्मावती, अम्बिका आदि एंव यक्षों में अनुषंगी, धरनेन्द्र आदि हैं। इनसे स्पष्ट है कि पूर्वमध्यकाल में देवी की पूजा विशेष रुप से लोक प्रचलित थी। हिन्दू देवी देवताओं का जैन देवता समूह में समावेश जैन धर्मानुयायियों के मतानुसार धार्मिक पुरुषों की प्रतिमाएं मनुष्यों को सत्कार्य की ओर प्रेरित करती हैं। अतएव उनके द्वारा अपने धर्म से ही सम्बन्धित नहीं अपितु हिन्दूधर्म से सम्बन्धित अन्य मूर्तियों का उल्लेख अपने साहित्य में किया गया है। इसके साथ ही उन मूर्तियों को ऐसे स्थान पर रखा गया जिस स्थान से महापुरुषों का सम्बन्ध हो इसी कारण जैनों द्वारा तीर्थकर प्रतिमा के अतिररिक्त ब्राह्मण मूर्तियों - श्री गणेश, अम्बिका, बलराम, वासुदेव एंव तान्त्रिक देवों एंव देवियों

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