Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

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Page 223
________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव . 205 सहानुभूति पूर्वक चित्रित करके उन्हें दया, ममता एंव वात्सल्य का स्त्रोत सिद्ध किया है। रामचरित को ऊँचा उठाने हेतु उनके हाथ से भरत के सिर पर राजपट्ट बंधवाते हैं। दशरथ जिनभक्त बतलाये गये हैं। रामायण की तरह ही जैन पद्मपुराण में चार वंशों की उत्पत्ति का वर्णन दिया गया है। रामायण के समान ही महाभारत सम्बन्धी कथाओं को जैनपुराणकारों द्वारा अपनाया गया। ये रचनाएँ "हरिवंशपुराण या पाण्डव पुराण' नाम से प्रसिद्ध हैं। इन पुराणों में 22 वें तीर्थकर नेमिनाथ, वासुदेवकृष्ण, बलदेव, जरासिन्धु तथा कौरव एवं पाण्डवों का वर्णन है। स्वयम्भू ने अप्रभंश में हरिवंश अपरनाम "रिट्ठनेमिचरिउ* एंव धवल ने "हरिवंशपुराण' लिखा। कथा का आधार हरिवंशपुराण है। जिनसेन ने संस्कृत में हरिवंशपुराण' लिखा। हिन्दू धर्म के कृष्ण का वर्णन जैनों द्वारा अत्यधिक किया गया। कवि गुणवर्मन् ने कन्नड़ भाषा में 'हरिवंश" नामक रचना की इसमें हरिवंश एंव कुरुवंश की कथा वर्णित है जिसमें कृष्णचरित का वर्णन किया गया है। पम्प ने “पम्पभारत' में कृष्ण को लौकिक महापुरुष के रुप में चित्रित किया है। कविकर्णमार्य ने अपने अपने “नेमिनाथ पुराण में कृष्ण चरित का बहुत सजीव वर्णन किया है नेमिचन्द्रकृत “नेमिनाथ पुराण" में भी कृष्णचरित प्राप्त होता है। होय्यसल नरेश वीर वल्लाल देव के दरबारी कवि ने “जगन्नाथ विजय” नामक नाटक में कृष्णचरित कृष्ण जन्म से शाल्ववध करके द्वारिकागमन तक की कथा तक वर्णित किया है। इसमें कृष्ण लोकरक्षक के रुप में आये हैं। रामायण एंव महाभारत की तरह अन्य ख्यातिप्राप्त काव्यकृतियों से प्रेरणा प्राप्त कर उसी अनुकरण पर या शैली पर काव्य रचनाएं की। बाण की कादम्बरी पर धनपाल ने “तिलकमंजरी एंव ओडयदेव वादीभसिंह ने “गद्यचिन्तामणि", एवं "किरातार्जुनीय" एंव "शिशुपालवध" की शैली पर हरिचन्द्र ने “धर्माशर्माभ्युदय एवं मुनिभद्रसूरि ने “शान्तिनाथ चरित” की रचना की। जिनसेन ने अपने “पार्वाभ्युदय" की रचना कालिदास के मेघदूत ग्रन्थ की समस्याओं को लेकर की। . जैनमूर्तिकला पर हिन्दू प्रभाव जैनधर्म निवृत्तिमार्गी होने के कारण आध्यात्मिकता से अनुप्राणित है। समन्वयवाद की विशेषता जैनधर्म को अक्षुण्ण बनाये रखने में सफल सिद्ध हुयी। जैनधर्म की विशेषता है कि सांसारिक जीवन एंव जन्मजन्मान्तरों से मुक्ति पाने के साधनों को धार्मिक उपाख्यानों के माध्यम से जनसाधारण तक पहुँचाते रहना। धार्मिक भावनाओं को मूर्त रुप देने के लिए जैन मूर्तियों एवं मन्दिरों का निर्माण किया गया। शनैःशनैः ये तीर्थकर ही उपास्यदेव के रुप में सामने आये। मूर्तियों के साथ ही उपासना के प्रतीकों का भी प्रादुर्भाव हुआ। चैत्यस्तम्भ, चैत्यवृक्ष, त्रिरत्न, स्तूप एवं

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