Book Title: Jain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Author(s): Usha Agarwal
Publisher: Classical Publishing Company

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Page 222
________________ 204 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास . जैन पुराणों में हिन्दू पुराणों की ही भॉति राजाओं के वंश वर्णन को वंशानुचरित कहा जा सकता है। आदिपुराण में विभिन्न राजाओं की वंशावलियाँ प्राप्त होती हैं। जैन पुराणों के आख्यानों को भी उनका लक्षण कहा जा सकता है। जैन पुराणों में लोक, देश, नगर, राज्य, तीर्थ, दान, तप, गति एंव फल का वर्णन प्राप्त होता है। अवसर्पिणी एंव उत्सर्पिणी युग जैनपुराणों में वर्णित अवसर्पिणी एंव उत्सर्पिणी युग का वर्णन महाभारत एंव अन्य वैदिक ग्रन्थों में वर्णित उत्तरकुरु की व्यवस्था पर आधारित है। अवसर्पिणी युग की सामाजिक स्थिति का वर्णन पुराणों में प्राप्त होता है। मनुष्य भोगभूमि व्यवस्था में रहते थे। पुराणों में वर्णित इसके छह भेदों से स्पष्ट है कि धीरे धीरे ये व्यवस्था क्षय होती जा रही थी एंव अवसर्पिणी युग अपहरण एंव दोष युक्त वातावरण में बदल गया। जैनों की ये युगीन व्यवस्था ब्राह्मण ग्रन्थों में नैतिक एंव आध्यात्मिक मूल्यों के हासकाल कमशः सत्ययुग, त्रेता, द्वापर एंव कलियुग से मिलती है | जैन पुराणों में वर्णित ऋषभ द्वारा कर्मभूमि व्यवस्था में असि, मसि कृषि वाणिज्य एंव शिल्प की शिक्षा देने का वर्णन प्राप्त होता है | वैदिक ब्राह्मण ग्रन्थों से भी ब्रह्मा के पास व्यक्तियों के जाने एंव प्रजा के लिए उनके द्वारा भूमि को धनधान्य से पूर्ण करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। रामायण एंव महाभारत के पात्रों पर साहित्य सृजन ___ जैन इतिहास लेखकों ने अपने धर्म को व्यापक एंव स्थायी रुप देने के लिए एवं हिन्दू पुराणों में वर्णित पात्रों को उन्नत एंव उदात्त रुप देने के लिए जैनीकरण की प्रकिया अपनायी। रामायण को आधार बनाकर सर्वप्रथम विमलसूरि ने प्राकृत ग्रन्थ “पउमचरिय’ की रचना की। उसके पश्चात् स्वयम्भू ने अपभ्रंश में एवं रविषेण ने संस्कृत में पदमपुराण की रचना की। रामायण में प्राप्त होने वाले पात्र-दशरथ, राम, सीता, हनुमान, लक्ष्मण, रावण, त्रिजटा, मन्दोदरी, कुम्भकर्ण मेघवाहन एंव विभीषण आदि का ज्यों की त्यों उल्लेख स्वयम्भू ने किया है। रावण का बहुरुपिणी विद्या सिद्ध करने हेतु शान्ति जिनालय में ध्यान मग्न होने पर अंगद, नील, एवं स्कन्द द्वारा उसका ध्यान भंग करने के लिए लंका में उपद्रव करने का वर्णन प्राप्त होता है। इसी तरह वानर वंश में हनुमान के पिता पवनदेव की उत्पत्ति विवाह एवं वीरता का उल्लेख किया गया है। जैन पद्मपुराण में रामायण में वर्णित राक्षस एंव वानर वंश को विद्याधर वंश से, एंव कैकेयी, अंजना, सीता एंव मन्दोदरी आदिनारी पात्रों के चरित्र को

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