________________ चरितकाव्य 136 दर्शन मोहनीय की तीन उत्तर प्रकृतियों की जानकारी चरितकाव्यों से होती है। चारित्र मोहनीय की चार उत्तर प्रकृतियों कोध, मान, माया लोभ के चार चार प्रकारों की जानकारी चरितकाव्यों से होती है११ / कर्मानुसार प्राप्त होने वाली देव, नरक, तिर्यच एंव मनुष्य गतियों में आयु का निर्धारण करने वाले कर्म "आयु कर्म" कहलाते हैं३१२ / देवायु, नरकायु, मनुष्यायु एंव तिर्यवायु ये चार आयु कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ है३१३।। मोहनीय कर्मो की भॉति ही "अन्तराय कर्म' बाह्य पदार्थ एंव भोगोपभोग की . वस्तुओं के विकास में बाधाएं उत्पन्न करते हैं। दान, भोग, लाभ, उपभोग, वीर्य ये पॉच उत्तर प्रकृतियाँ हैं / अन्तराय कर्मो के नष्ट हो जाने पर ही इन की प्राप्ति होती है१५/ __ चरितकाव्यों से “नाम कर्मो से शारीरिक गुणों का विकास होने की जानकारी होती है। नामकर्म के 42 भेद एंव उपभेदों की 63 उत्तर प्रकृतियों की जानकारी होती है१६ / ___"गोत्र कर्म" का सम्बन्ध लोक व्यवहार सम्बन्धी आचरण से सम्बन्धित है। लोकपूजित आचरण होने वाले कुल को उच्च गोत्र एंव लोकनिन्दित आचरण होने वाले कुल को नीच गोत्र कहा जाता है३१७ / / ___ चरितकाव्यों में प्राप्त आठ कर्मो में साता वेदनीय, नामकर्म की 42 प्रकृति एंव उच्च गोत्र इन कर्म प्रकृतियों को पुण्य प्रकृति एंव शेष को पाप प्रकृति कहा गया है३१८ | मोहनीय कर्म को सर्वाधिक शक्तिशाली बतलाया गया है क्योंकि जीवन की आदि क्रियाओं का स्त्रोत जीवन की मनोवृत्ति ही है। ' चरितकाव्यों से कषायों के भेद एंव उनके स्वरुप की जानकारी होती है३१६ | जैन दर्शन ___ चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि प्रत्येक जीवात्मा अपनी स्वतंत्र सत्ता को लिए मुक्त हो सकता है। मुक्त जीव अनन्त ज्ञान के अधिकारी होते हैं इसी कारण जैनधर्म में इनका ईश्वर रुप में उल्लेख है३२० / तीर्थकंर के जन्म से पूर्व जिनमाता को 16 स्वप्न दिखायी देने एंव सुरांगनाओं द्वारा सेवा करने के उल्लेख प्राप्त होते है२१ / चरितकाव्यों से तीर्थकरों की उत्पत्ति, जन्माभिषेक, बालकीड़ा, विवाह, साम्राज्य प्राप्ति के साथ ही सांसारिक क्षणभंगुरता देखकर दीक्षा ग्रहण करने एंव निर्वाण प्राप्ति की जानकारी होती है३२२ / इन अवसरों पर इन्द्रादिक देव सम्मिलित होते एंव पूजा करते थे२३ | पंचकल्याणरुप पूजा के कारण इन्हें "अर्हत्” एंव मुक्ति होने से पूर्व मुक्ति का मार्ग बताने के कारण "तीर्थकर कहा गया हैं। ये समवसशरण सभा में धर्म के आचार विचारों एंव मोक्ष के मार्ग से प्राणीमात्र को उपदेश देते थे।२४ | जो कर्मवन्धन